भारत-चीन विवाद पर केन्द्रीय मंत्री के बयान पर मचा बवाल, अपनी ही पीठ थपथपाई लेकिन...
भारत और चीन के बीच बीते साल पांच मई से पूर्वी लद्दाख़ में सैन्य गतिरोध चल रहा है।
गतिरोध ख़त्म करने लिए दोनों देशों के बीच कई दौर की सैन्य और राजनयिक स्तर की वार्ताएं हो चुकी हैं लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के ऊपरी सदन में चीन के साथ जारी सीमा विवाद पर सरकार का पक्ष रखा और सरकार की ओर से सफ़ाई पेश की।
पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के बीच जारी गतिरोध के बीच पिछले 20 जनवरी को उत्तरी सिक्किम के नाकू ला में भी दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आए गए थे। इस दौरान हुई झड़प में दोनों देशों के जवान घायल भी हुए थे।
इससे पहले अरुणाचल प्रदेश में चीन द्वारा एक गांव बसाए जाने की खबरों की पुष्टि करते हुए 19 जनवरी को भारत विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वह देश की सुरक्षा पर असर डालने वाले समस्त घटनाक्रमों पर लगातार नज़र रखता है और अपनी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठाता है।
इससे पहले पूर्वी लद्दाख के पेंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर भारत और चीन के सैनिक के बीच पिछले साल पांच और छह मई की रात हुई हिंसक झड़प के बाद नौ मई 2020 को नाकु ला में भी दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी। इन दोनों झड़पों में दोनों देशों के दर्जनों सैनिक घायल हुए थे।
सबसे गंभीर झड़प 15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई थी, जब एक हिंसक लड़ाई में 20 भारतीय सैनिक मारे गये थे। पिछले बीते 45 सालों में दोनों देशों के बीच यह सबसे हिंसक झड़प थी. वर्ष 1967 में सिक्किम के नाथू ला में झड़प के बाद दोनों सेनाओं के बीच यह सबसे बड़ा टकराव था। उस वक्त टकराव में भारत के 80 सैनिक मारे गये थे और 300 से ज्यादा चीनी सुरक्षा बलों के मारे जाने की सूचना थी।
गलवान घाटी में हिंसक झड़प के ढाई महीने बाद बीते 29 अगस्त की रात पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित ठाकुंग में एक बार फिर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध देखने को मिला था।
इसके बाद भारतीय सेना ने बयान जारी कर कहा था कि चीनी सेना ने 29-30 अगस्त की रात को यथास्थिति को बदलने के लिए उकसाने वाली सैन्य कार्यवाही को अंजाम दिया था।
इन झड़पों के बाद दोनों देशों ने अपनी 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ "एलएसी" पर लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सेना और टैंक की तैनाती शुरुआत कर दी थी।
लद्दाख में शुरू हुए गतिरोध के बाद भारतीय सेना ने 3,500 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा "एलएसी" पर अपनी ताकत मज़बूत की है।
भारत का कहना है कि चीन की ज़िम्मेदारी है कि वह सैनिकों को पीछे ले जाने की प्रक्रिया शुरू करे और पूर्वी लद्दाख के गतिरोध वाले इलाके में तनाव कम करे। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के करीब एक लाख सैनिक तैनात हैं। क्षेत्र में दोनों पक्षों की लंबे समय तक डटे रहने की तैयारी है. इस बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर भी सौहार्दपूण समाधान के लिए वार्ता चल रही है।
भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध पर विपक्षी दलों का कहना है कि चीन के मामले को लेकर केन्द्र सरकार जनता को गुमराह कर रही है और चीन के साथ जारी सीमा विवाद पर देश की जनता को अंधेरे में रखे हुए है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उस टिप्पणी के बाद आया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार ने ‘भारत माता का एक टुकड़ा’ चीन को दे दिया। कांग्रेस नेता ने सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पर हुए समझौते को लेकर भी सवाल उठाए। (राहुल) 2.04
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान पर भारतीय रक्षामंत्रालय और केन्द्र सरकार के कई मंत्रियों का बयान सामने आया। शुक्रवार 12 फ़रवरी को भारतीय रक्षामंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत ने पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग सो (झील) इलाके में सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पर समझौता करते हुए किसी भी इलाके से दावा नहीं छोड़ा है। बयान में कहा गया है कि देपसांग, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा सहित अन्य लंबित ‘समस्याओं’को दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच आगामी वार्ताओं में उठाया जाएगा। (इफ़ेक्ट)
कांग्रेस आरोप लगा रही है कि गोगरा और हाट स्पिंग में चीनी घुसपैठ निरंतर बनी हुई है और क्या वजह है कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री इन क्षेत्रों में चीन घुसपैठ पर रसह्यमयी चुप्पी साधे हुए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि रिपोर्ट में पता चला है कि चीनी सेना अब चुमुर और दक्षिणी लद्दाख़ तक पेट्रोलिंग कर रही है और क्या वजह है कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री राष्ट्रीय सुरक्षा के इस महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर एक शब्द बोलने से ही घबरा रहे हैं। भारतीय रक्षामंत्री पहले ही दावा कर चुके हैं कि भारत ने चीन के साथ वार्ता में कुछ भी खोया नहीं है।