इमाम ख़ुमैनी की स्वदेश वापसी का दिन है ग्यारह फरवरीः रिपोर्ट
14 वर्षों के निर्वासन के बाद ग्यारह फरवरी को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ईरान वापस आए थे।
इमाम खुमैनी की स्वदेश वापसी, उस इस्लामी क्रांति की सफलत की भूमिका बनी जो हालिया शताब्दियों में अभूतपूर्व मानी जाती है। इसको बीसवीं अर्धशताब्दी की सबसे बड़ी क्रांति भी कहा जाता है। यह क्रांति वास्तव में वर्चस्ववादियों से मुक्ति पाने के लिए ईरानी राष्ट्र के संकल्प को दर्शाती है।
11 फरवरी 1979 को इस्लामी क्रांति सफल हुई थी। यह वह क्रांति थी जिसने भ्रष्ट राजशाही व्यवस्था को उखाड़ फेका। यह उस समय की बात है जब विश्व दो महाशक्तियों के बीच बंटा हुआ था। इस्लाम क्रांति की सफलता के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि 22 बहमन अर्थात 11 फरवरी एक हिसाब से ईरान में इस्लामी शक्ति के आरंभ का दिन है। हालांकि विदित रूप से उस दिन अत्याचारी व्यवस्था समाप्त नहीं हुई थी किंतु वास्तविकता यह है कि वह समाप्त हो चुकी थी।
इमाम ख़ुमैनी के ईरान में प्रवेश करने के साथ ही यह व्यवस्था पूरी तरह से धराशाई हो गई। ईरान में स्वर्गीय इमाम ख़ुमेनी के नेतृत्व में आने वाली क्रांति की तुलना विश्व में आने वाली अन्य क्रांतियों से नहीं की जा सकती। वास्तव में इस्लामी क्रांति के अतिरिक्त कोई भी अन्य किसी भी क्रांति में वास्तविक क्रांति के तत्व पूरी तरह से मौजूद नहीं थे। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी इस्लामी क्रांति के समय और उससे पहले के ईरान के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हालात से पूरी तरह से परिचित थे। उन्होंने ईश्वरीय परिवर्तन को सबसे महत्वपूर्ण कारक बताया था जो लोगों के दिलों में पैदा हो चुका था। उस दौरान लोग इमाम ख़ुमैनी की बातों से प्रभावित हुए और उनके भीतर से राजशाही सरकार का भय समाप्त हो गया।
समाज के उचित ढंग से संचालन के लिए कुशल नेतृत्व की बहुत ज़रूरत होती है। इस कुशल नेतृत्व की छत्रछाया में लोग आगे की ओर क़दम बढ़ाते हैं। इमाम ख़ुमैनी एक कुशल, निडर और जुझारू होने के साथ ही अपने समय के हालात से पूरी तरह से अवगत थे। यही कारण है कि उन्होंने विश्व की सबसे महान क्रांति का नेतृत्व किया।
इमाम ख़ुमैनी ने क्रांतिकारी विचारधारा को पेश करके ईरान की राजशाही व्यवस्था और उसके विदेशी समर्थकों को आश्चर्चचकित कर दिया जिसके कारण वे ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता को रोकने में पूरी तरह से विफल रहे। उसके बाद से यह क्रांति, विश्व में अत्याचारग्रस्त राष्ट्रों के लिए जागरूकता के आदर्श के रूप में स्थापित हुई है। इस बारे में जर्मनी के एक मश्हूर ओरिएंटलिस्ट यूडू एश्टाइन बाख़ कहते हैं कि इमाम ख़ुमैनी, एक चमत्कारिक महत्व के स्वामी थे। वे विश्व के आध्यात्मिक नेता भी थे। इस्लामी गणतंत्र की सारी आकांक्षाओं की मूल जड़ें स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के विचारों में निहित थीं।
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