स्वतंत्रता प्रभात-4
इस्लामी क्रांति से पहले नई पीढ़ी को भ्रष्टाचार की ओर ले जाने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाए जा रहे थे।
पवित्र क़ुरआन में इस काल को प्रथम अज्ञानता के नाम से याद किया गया है। उस काल के लोग एकेश्वरवाद को नकारते हुए मूर्ति पूजा और अपनी परंपराओं पर ही चलने पर ज़ोर देते थे। अज्ञानता के उस काल में हिंसा, मूर्खता, इरादे की कमज़ोरी और इसी प्रकार की बहुत सी बुराइयों ने मानवीय गरिमा पर नियंत्रण कर लिया था। एसे में मानवता और नैतिकता को लगभग भुला दिया गया था। हर प्रकार का भ्रष्टाचार, दासता, जातिवाद, अहंकार, स्वार्थ, पड़ोसियों का उत्पीड़न और महिलाओं के अनादर जैसी बुराइयां अपने चरम पर पहुंच चुकी थी।
हालत यह हो चुकी थी कि एक बाप अपनी बेटी को ज़िंदा दफ़्न कर देता था और अपने इस घृणित काम पर गर्व भी किया करता था। इन हालात में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को इस संसार में भेजा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपनी पैग़म्बरी के माध्यम से तत्कालीन समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर किया। इस काम के लिए उन्होंने बहुत अधिक कठिनाइयां सहन कीं किंतु वे पीछे नहीं हटे।
आपने एकेश्वरवाद, ईमानदारी, दूसरों के साथ प्रेम से मिलना, परिवार के सदस्यों का सम्मान, पड़ोसियों का ध्यान रखना, हराम चीज़ों से बचना, अनाथों के माल को न खाना, भ्रष्टाचार से दूरी और ईश्वर की उपासना का संदेश दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने पूरे धैर्य के साथ हर प्रकार की समस्याओं को सहन करते हुए मुसलमानों को संगठित किया। आपने एकेश्वरवाद का प्रचार किया और एक इस्लामी सरकार का गठन किया।
इस बारे में ईश्वर, पवित्र क़ुरआन के सूरे जुमा की दूसरी आयत में कहता है कि वह तो वह है जिसने अज्ञानियों के बीच अपना रसूल भेजा जो उनके लिए उसकी आयतों को पढ़ता था और उनका प्रशिक्षण करता था। वह उनको किताब और तथ्यात्मक बातें सिखाता था जो पहले पथभ्रष्ट थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने मानव समाज का मार्गदर्शन करने वाली सरकार का गठन करते हुए मानवीय विशेषताओं को जीवित किया। उन्होंने महिलाओं को सम्मान दिया। आपने हिंसा के स्थान पर प्रेम को प्रचलित किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुसलमानों को एक-दूसरे का भाई बताया।
दोस्तो, जाहेलियत या अज्ञानता, केवल पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के काल से विशेष नहीं है बल्कि यह बहुत से समाजों में अब भी मौजूद है। जब भी कोई समाज, मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों से दूर हो जाए तो फिर वह अज्ञानता की दलदल में फंस जाता है चाहे उस समाज में तथाकथित पढ़े-लिखे लोग मौजूद हों। वर्तमान समय में हमको एसे बहुत से समाज देखने को मिल जाएंगे जहां पर आधुनिक अज्ञानता बहुत ही स्पष्ट रूप में दिखाई देती है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आन्दोलन को आए हुए 14 शताब्दियां गुज़र चुकी थीं। आधुनिक अज्ञानता या जेहालत, पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। ईरान में राजशाही व्यवस्था मौजूद थी। ईरान की शाही सरकार के लोग ऐशो-आराम की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। हालांकि इसी दौरान ईरान के बहुत से नगरों में आम लोगों के पास मूलभूत आवश्यकता की चीज़ें भी नहीं थीं। शाह स्वयं को मुसलमान बताता था जबकि वह ईश्वर के बदले अमरीका पर निर्भर था। पश्चिमी सभ्यता का वह दिलदादा था।
शाह की सरकार ईरान मेंं पश्चिमी सभ्यता को प्रचारित कर रही थी। ईरान में पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को लागू करने के लिए शाह, हर प्रकार के हथकण्डे अपनाता था। शाह की सरकार के दौरान ईरान में फैला हुआ नैतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार यह बता रहा था कि उसकी सरकार, जानबूझकर देश में पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। इस काम के लिए सरकार की ओर से बहुत पैसा ख़र्च किया जाता था।
शाह के काल में ईरान की स्थति के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि प्रचार के माध्यम से लोगों को नैतिक भ्रष्टाचार और वैश्यावृत्ति के लिए प्रेरित किया जाता था। उन स्थानों पर जहां पर लोग बहुत ग़रीब थे और उनके पास खाने के लिए रोटी तक नहीं थी, उन क्षेत्रों में भी नैतिक भ्रष्टाचार के लिए जगहें बनाई गई थीं। इस काम को जानबूझकर उन क्षेत्रों में किया जाता था जहां पर युवाओं का अधिक आनाजाना होता था जैसे विश्विद्यालय, छात्रावास और इसी प्रकार के स्थान।
नई पीढ़ी को भ्रष्टाचार की ओर ले जाने के लिए इस प्रकार के बहुत से कार्यक्रम चलाए जा रहे थे। जब किसी राष्ट्र की युवा पीढ़ी, भ्रष्ट हो जाती है तो फिर वहां पर किसी भी प्रकार का प्रतिरोध बाक़ी नहीं रहता और वह समाज नष्ट हो जाता है। देश के सरकारी ख़ज़ाने को जनता के लिए नहीं बल्कि शाह के ख़र्चों के लिए इस तरह से प्रयोग किया जाता था जैसे कि वह उसकी निजी संपत्ति हो। अमरीका और ब्रिटेन के बड़े-बड़े संस्थानों को भारी वित्तीय योगदान इसलिए दिया जाता था ताकि वे शाह से खुश रहें।
शाह के परिवार के सदस्य और उसकी सरकार के लोग विदेशों में मंहगी ख़रीदारी करते और अपने लिए वहां पर मंहगे अपार्टमेंट तथा घर ख़रीदा करते थे। हालांकि उसी दौरान ईरान के भीतर विश्वविद्यालयों के पास छात्रों को देने के लिए संभावनाएं नहीं थीं। छात्र भी सख़्ती में गुज़ारा करते थे। अमरीका और इस्राईल की मांगों के सामने शाह इतना अधिक नतमस्तक हो चुका था कि देश की जनता उससे घृणा करने लगी थी। इसी बीच लोगों में से एक व्यक्ति उठा जो सैयद था। उसने शाह की नीतियों का खुलकर विरोध आरंभ किया। वह कोई और नहीं बल्कि वरिष्ठ धर्मगुरू स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी थे। इमाम ख़ुमैनी धर्म और राजनीति को अलग-अलग नहीं मानते थे।
इमाम ख़ुमैनी ने अपने पहले भाषण में ईरान के तत्कालीन शासक शासक की तुलना बनी उमय्या और यज़ीद की सरकारों से की। उन्होंने लोगों से जागरूक रहने का आह्वान किया। इमाम ख़ुमैनी ने शाह से कहा था कि वह तत्कालीन महाशक्तियों पर भरोसा न करे और इस्राईल के साथ अपनी दोस्ती को छोड़ दे। वे कहते थे कि शाह को ईरान की जनता पर भरोसा करना चाहिए। इमाम ख़ुमैनी के इस भाषण पर शाह ने बहुत कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। इसके बाद से शाह ने जनता और धर्मगुरूओं का दमन आरंभ कर दिया। विरोध प्रदर्शनों में बहुत से ईरानी युवा शहीद हुए लेकिन ईरान की जनता ने अपना प्रतिरोध नहीं रोका यहां तक कि इस्लामी क्रांति को सफलता नसीबी हुई।
इमाम ख़ुमैनी की विचारधारा पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों पर आधारित थी। इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व, जादूई था। उन्होंने ईश्वरीय दूतों की ही भांति धर्म के नाम को ऊंचा रखने के लिए अथक प्रयास किये। इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी सरकार के लिए धार्मिक लोकतंत्र को आदर्श के रूप में प्रयोग किया। उन्होंने पश्चिमी मानवतावाद की संस्कृति और पूर्वी समाजवाद को खुला चैलेंज दिया जो उस समय की महा शक्तियां थीं। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व मेंं ईरान में इस्लामी क्रांति सफल हुई जिसका नेतृत्व अब इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के हाथों में है।
वर्तमान समय में आधुनिक अज्ञानता ने अपनी चमक-धमक के साथ पूरी दुनिया को अपने लपेटे में ले रखा है। वर्तामन युग में स्वयं को विकसित और आधुनिक होने का दावा करने वाले देश साम्राज्यवादी बने हुए हैं। यह देश मानवाधिकारों की रक्षा और लोकतंत्र के नाम पर राष्ट्रों की आस्थाओं और उनकी संस्कृतियों को नष्ट कर रहे हैं। वर्षों से फ़िलिस्तीनी, अवैध ज़ायोनी शासन के चंगुल में फंसे हुए हैं। चारों ओर नैतिक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। धर्म को व्यक्तिगत मामला बना दिया गया है। लोगों को धर्म से दूर करने के लिए तरह-तरह के षडयंत्र चलाए जा रहे हैं।
इस संबन्ध में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि वर्तमान समय में पश्चिमी सरकारों की ओर से जो कुछ प्रचलित किया जा रहा है वह वही अज्ञानता है जिसे मानव जीवन से दूर करने के लिए ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को भेजा था। पश्चिमी संस्कृति में उस अज्ञानता को स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। आज के दौर में कल की अज्ञानता के काल की भांति देखा जा सकता है। अन्याय, असमानता, जातिवाद, ज़ोर-ज़बरदस्ती, मानवीय मूल्यों का अपमान करना और भोग एवं विलास को सार्वजनिक करना वे काम हैं जो प्राचीनकाल की अज्ञानता के भाग थे। आज के युग मे हम मुसलमामनों को इसको समझकर इनसे संघर्ष करना चाहिए।
दोस्तो, फरवरी 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता से विश्व में एक नई आवाज़ सुनाई दी। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने आधुनिक अज्ञानता को ललकारते हुए इससे मुक़ाबले का संकल्प लिया। उन्होंने ईश्वरीय दूतों की भांति धर्म को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया जिसका नेतृत्व इस समय इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के उत्तराधिकारी आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के हाथों में है। इसी के साथ कार्यक्रम का समय समाप्त होता है अनुमति दीजिए।