ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब, क़ुरआनी आंदोलन का नया जीवन
(last modified Thu, 03 Feb 2022 10:08:58 GMT )
Feb ०३, २०२२ १५:३८ Asia/Kolkata

क़ुरआन सर्वोत्तम साधन है इस्लाम को समझने का। यह ग्रंथ अन्य धार्मिक शिक्षा स्रोतों की भांति इंसान के व्यक्तिगत जीवन और उपासना पद्धति में सहारा देने के साथ ही राजनैतिक और सामाजिक विषयों में भी समाज का फ़्रेमवर्क तय करती है।

तानाशाही पहलवी शासन के ख़िलाफ़ ईरान का जनान्दोलन क़ुरआन के सूरए राद की आयत संख्या 11 से मिलने वाली इस सीख से प्रभावित होकर शुरु हुआ कि अल्लाह किसी भी क़ौम की क़िस्मत को उस वक़्त तक नहीं सवांरता जब तक वह ख़ुद को परिवर्तित न करे।

बहुत से विचारक ईरान की इस्लामी क्रांति को क़ुरआन की वापसी का आंदोलन मानते हैं अर्थात यह एसा आंदोलन है जिसमें क़ुरआनी शिक्षाओं ने अपनी भूमिका के ज़रिए उसे धार्मिक आंदोलन बना दिया। क़ुरआन की ओर वापसी का नतीजा यह होता है कि मुसलमान इस आसमानी ग्रंथ की शिक्षाओं से अपना पोषण करें और साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए उठ खड़े हों। इस संघर्ष के नतीजे में प्रतिष्ठा, गौरव, सरबुलंदी और सबसे बढ़कर अल्लाह का सामिप्य हासिल होता है। पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि क़ुरआन और अवाम की कहानी बारिश और ज़मीन की कहानी है। जब ज़मीन सूख कर मुर्दा हो जाती है तो अचानक अल्लाह उस पर बारिश करवा देता है और ज़मीन में फिर हरकत पैदा हो जाती है। फिर अल्लाह की इच्छा से तेज़ बारिश होती है और ज़मीन फिर हरकत में आती है। इसके बाद दर्रों से नहरें और नदियां बहने लगती हैं जिससे ज़मीन पर पेड़ पौधे अंकुरित होते हैं, वनस्पतियां अंगड़ाई लेती हैं। फिर अल्लाह ज़मीन से वह चीज़ें पैदा करता हैं जिनसे धरती की सजावट होती है और इंसानों और मवेशियों तथा अन्य प्राणियों को आहार प्राप्त होता है। सूरए मुहम्मद की आयत संख्या 7 में अल्लाह कहता है कि हे ईमान लाने वालो अगर तुम अल्लाह की मदद करो तो अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दमों को मज़बूती प्रदान करेगा।

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इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इमाम ख़ुमैनी ने ईरान और दुनिया के मुसलमानों को क़ुरआनी ज्ञान और शिक्षाओं से क़रीब करने की कोशिश की जो अल्लाह की ओर से भेजा गया ग्रंथ है। इसलिए कि अगर समाज क़ुरआन और उसकी प्राणदायक शिक्षाओं से दूर हो जाए तो धार्मिक समाज में वैचारिक और व्यवहारिक गुमराही की स्थिति पैदा होगी। इसीलिए इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद जिसमें सत्य और आज़ादी पर ख़ास ताकीद थी क़ुरआन की ओर जनता और शासन व्यवस्था का रुजहान बहुत अधिक बढ़ा। इसके नतीजे में क़ुरआन की संगोष्ठियों, क़ुरआन के विषय में प्रतियोगिताओं, क़ारियों के प्रशिक्षण की क्लासों की संख्या तेज़ी से बढ़ी। क़ुरआन टीवी चैनल और क़ुरआन रेडियो शुरू कर दिया गया। ख़ुद क़ुरआन का प्रकाशन बढ़ा और क़ुरआन की क्लासें बहुत आम हो गईं। इस्लामी गणतंत्र ईरान आज गौरवान्वित है कि विश्व स्तर की क़ुरआन प्रतियोगिताओं में उसकी भागीदारी सराहनीय रूप से बढ़ी है और वैश्विक रैंकिंग के हिसाब से ईरान का स्थान बहुत ऊंचा है।

क़ुरआन की तफ़सीर या विवरण भी इस्लामी ज्ञानों में महत्वपूर्ण ज्ञान है। यह ज्ञान दरअस्ल क़ुरआन की बेहद गहरी बातों को विस्तार से बयान करता है और क़ुरआन की आयतों में छिपी सुंदरता के बारे में बताता है। चूंकि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है इसलिए उसकी व्याख्या की ज़रूरत है। आसमानी ग्रंथों में क़ुरआन एसी किताब है जिसकी सबसे ज़्यादा व्याख्याएं लिखी गई हैं और बहुत बड़ी संख्या में व्याख्याकारों ने बड़ी श्रद्धा से यह काम किया है। इस्लामी क्रांति के बाद क़ुरआन की बातों और शिक्षाओं को आसान शब्दों में बयान करने के लिए पूरे देश में क़ुरआन की तफ़सीर की क्लासों का आयोजन किया जाने लगा। क़ुरआनी शिक्षाओं के प्रसार के लिए दारुल क़ुरआन संस्था की ओर से कार्यक्रमों का आयोजन भी एक महत्वपूर्ण काम था जो अंजाम दिया गया। उसताद अबुल फ़ज़्ल बहराम पुर ने वर्ष 2016 से पूरे देश में 700 से अधिक तफ़सीर की क्लासों का आयोजन किया। इन क्लासों का नाम क़ुरआनी जीवन शैली रखा गया। इन क्लासों में 20 से 30 लोग शामिल होते थे और आपस में क़ुरआनी विषयों पर बहस करते थे। इन क्लासों में क़ुरआन को प्रशिक्षण की किताब के रूप में शोधपूर्ण नज़र से देखा जाता था और उसके बारे में बहस होती थी। इन क्लासों में शामिल होने वाले लोग क़ुरआन की आयतों के विवरण से अवगत होने के साथ ही इसका जायज़ा लेते थे कि क़ुरआनी शिक्षाओं को अमली ज़िंदगी में कैसे उतारा जा सकता है।

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क़ुरआन की समृद्ध संस्कृति का प्रसार, दुनिया के मुसलमानों का इस्लामी गणराज्य ईरान में होने वाले परिवर्तनों और प्रगति से अवगत होना और अन्य देशों की क़ुरआनी गतिविधियों के अनुभवों से लाठ उठाना वे महत्वपूर्ण कारक थे जिनकी वजह से ईरान की वक़्फ़ व कल्याणकारी संस्था ने क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन और व्यापक कर दिया। क़ुरआन के अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन मुक़ाबले इस्लामी गणराज्य व्यवस्था की महान उपलब्धियों में से एक हैं और इन्हें विश्व स्तर पर क़ुरआन से जुड़े महत्वपूर्ण आयोजन के रूप में देखा जाता है। यह प्रतियोगिताएं वर्ष 1982 से शुरु हुईं और अब तक जारी हैं। केवल दो साल 1983 और 1986 में एसा हुआ कि देश में जंग के हालात और सद्दाम शासन की ओर से ईरान के शहरों और बस्तियों पर बमबारी और मिसाइल हमलों की वजह से इन प्रतियोगिताओं का आयोजन नहीं किया जा सका।

दुनिया में इस्लामी गणराज्य ईरान ने महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया और इसे इस्लामी देशों में क़ारियों का केन्द्र कहा जाने लगा। इस वजह से क़ुरआन बारे में अधिक महारत और गहराई से शोध कार्य तथा दूसरी गतिविधियां अंजाम पाने लगीं। इसी संदर्भ में संस्था की ओर से विशेषज्ञों की टीमें अलग अलग ज़रूरतों पर काम करने लगीं। इनमें क़ुरआन की लिखावट से संबंधित शोध कार्य, कलात्मक विषयों से संबंधित शोध कार्य, इसे कम्प्युटराइज़्ड करने संबंधी कार्य, कुरआन के प्रकाशन संबंधी कार्य करने वाली टीमें शामिल थीं जो देश के भीतर और विश्व स्तर पर क़ुरआन के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओं से संपर्क और सहयोग का रास्ता साफ़ करने में लग गईं। इस्लामी क्रांति से पहले तक ईरान में क़ुरआन के पब्लिशर बहुत कम थे और उनके ज़रिए छपने वाले क़ुरआन की प्रुफ़ रीडिंग और दूसरे काम नहीं हो पाते थे। वर्ष 1985 में इस्लामी मार्गदर्शन संस्था ने क़ुरआन के प्रकाशन पर निगरानी की ज़िम्मेदारी संभाली। इसके बाद से आज तक यह काम इस तरह बढ़ा कि अब 1 हज़ार से ज़्यादा क़ुरआनी पब्लिशर ईरान में सक्रिय हैं। चार साल पहले तक लगभग 16 करोड़ 59 लाख 32 हज़ार 900 क़ुरआन के प्रकाशन का लाइसेंस दारुल क़ुरआन संस्था की ओर से जारी किया जा चुका है। अलबत्ता वर्ष 1985 से पहले जो लाइसेंस जारी किए गए उनको भी जोड़ लिया जाए तो यह संख्या लगभग 20 करोड़ तक पहुंच जाती है।

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क़ुरआनी समाज होने का मतलब यह है कि क़ुरआन लोगों को दिलों में उतर जाए और इस स्थिति की मदद से इस्लामी क्रांति अपने सभी बड़े उद्देश्यों को पूरा कर सकती है। ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं कि हमें यह बात माननी पड़ेगी कि हमारा समाज वर्षों तक क़ुरआन से दूर रहा। हम इस्लामी गणराज्य व्यवस्था में इस दूरी को ख़त्म कर रहे हैं और इस क्षेत्र में पिछड़ेपन की भरपाई कर रहे हैं। यह पिछड़ापन काफ़ी ज़्यादा था। शाही हुकूमत के दौर में समाज में औपचारिक रूप से क़ुरआन मौजूद नहीं था। कहीं किसी कोने में कोई एसा मिल जाता था जो क़ुरआन का ज्ञान रखता हो वह भी क़ुरआन की तिलावत करने की हद तक। क़ुरआन की आयतों के बारे में चिंतन वह भी समाज के स्तर पर बहुत कम था। इस्लामी क्रांति से पहले जिस तरह की परवरिश होती थी उसकी वजह से हम क़ुरआन से दूर हो गए थे। अब हम इस कमी की भरपाई करना चाहते हैं। क्रांति के बाद से अब तक इस संदर्भ में बहुत सारे काम हुए हैं जिनका नतीजा भी हम आज देख रहे हैं। लेकिन यह अभी शुरुआत है। सफ़र का आग़ाज़ है। क़ुरआन ज़िंदगी में रच बस जाना चाहिए। क़ुरआन की शिक्षाएं और बातें केवल जानकारी हासिल करने के लिए नहीं बल्कि ज़िंदगी में उतार लेने के लिए हैं। कभी देखने में आता है कि किसी इंसान के पास क़ुरआनी जानकारियां तो बहुत अधिक हैं लेकिन वह क़ुरआन को अपने जीवन में नहीं उतार सका है। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि क़ुरआन हमारी ज़िंदगी में चरितार्थ हो। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम की एक पत्नी जब पैग़म्बरे इस्लाम के अख़लाक़ की बात करती हैं तो कहती हैं कि उनका स्वभाव और अख़लाक़ कुरआन था। यानी वे क़ुरआन की मूर्ति थे। यही चीज़ हमारे समाज में आनी चाहिए।

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ईरान की इस्लामी क्रांति अपने नारों और लक्ष्यों के आकर्षण की मदद से क़ुरआन को हाशिए से समाज के जीवन की मुख्य धारा में लाने में कामयाब हुई और उसे व्यक्तिगत जीवन की सीमाओं से निकाल कर सामाजिक पटल पर लाकर रख दिया। जिसके नतीजे में आज दुनिया में एक महान हक़ीक़त सामने है। क़ुरआन जो इस्लामी क्रांति की बुनियाद और आधार है अपने इस संदेश के ज़रिए कि सरदारी तो मोमेनीन का अधिकार है समाज में तत्वदर्शिता पैदा करता है। विरोधियों ने क़ुरआनी शिक्षाओं को आघात पहुंचाने और उसे समाज से निकालने के लिए कोशिशें तो बहुत ज़्यादा कीं लेकिन क़ुरआन पर ख़ास तवज्जो और अमल की बरकत से इस्लामी गणराज्य ईरान चालीस साल से ज़्यादा समय से विश्व साम्राज्यवाद का डटकर का मुक़ाबला कर रहा है और अपनी शक्ति और क्षमता बढ़ाते हुए अपनी जड़े मज़बूत करता जा रहा है।

 

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