इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने रमज़ान के पवित्र महीने को ईश्वरीय मेहमानी और असीमित ईश्वरीय कृपा का महीना बताया
(last modified Mon, 04 Apr 2022 04:56:09 GMT )
Apr ०४, २०२२ १०:२६ Asia/Kolkata
  • इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने रमज़ान के पवित्र महीने को ईश्वरीय मेहमानी और असीमित ईश्वरीय कृपा का महीना बताया

इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने रमज़ान को दिलों को पाक करने महीना बताते हुए कहा कि पवित्र कुरआन में चिंतन- मनन ईश्वरीय मेहमानी से लाभ उठाने का महत्वपूर्ण कारण है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पवित्र कुरआन के संबंध में आयोजित तिलावत सभा में कहा कि ईश्वरीय मेहमानी से लाभ उठाने के लिए ज़रूरी है कि इंसान महान ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करे और रमज़ान महीने की बरकतों और उसमें अंजाम दिये जाने वाले कार्यों की ओर संकेत के साथ कहा कि वास्तव में ये नेअमतें व अनुकंपायें महान ईश्वर का सामिप्त प्राप्त करने का बेहतरीन व बेजोड़ अवसर हैं। इस आधार पर पूरी निष्ठा के साथ इस महीने की नेअमतों से लाभ उठाने और गुनाहों से परहेज़ करने के लिए ईश्वर से दुआ करना चाहिये।

इसी प्रकार सर्वोच्च नता ने कहा कि पवित्र कुरआन की हमेशा तिलावत और उससे प्रेम ईश्वर के साथ संबंध के अधिक होने का कारण बनता है। उन्होंने पवित्र कुरआन को पैग़म्बरे इस्लाम का सर्वकालिक चमत्कार बताया और कहा कि कुरआन मानव इतिहास के समस्त कालों में इंसान को व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और अध्यात्मिक आदि समस्त क्षेत्रों में आवश्यक ज्ञान देता है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पवित्र कुरआन को सीखने और उसमें ग़ौर व फिक्र अर्थात चिंतन- मनन करने को उसके ज्ञान की गहराइयों से लाभ उठाने का कारण बताया और कहा कि इस ज्ञान से लाभ उठाने की शर्त, दिल और आत्मा की पवित्रता है और यह चीज़ जवानी में बहुत आसान है।

इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पवित्र कुरआन की तिलावत करने वाले कारियों से बहुत प्रसन्नता जताई और इसे इस्लामी क्रांति की देन बताया और कहा कि आज ईरानी कारी बहुत से दूसरे देशों के कारियों की अपेक्षा कुरआन की बहुत अच्छी तिलावत करते हैं और उनमें से कुछ को उस्ताद के रूप में दूसरे देशों में आमंत्रित किया जाता है और यह गर्व करने वाली वास्तविकता है।

उन्होंने कहा कि तिलावत एक पवित्र कला है और इस कला को ईश्वर की ओर आमंत्रित करने की सेवा में होना चाहिये और तिलावत को इस तरह होना चाहिये कि उससे सुनने वाले के ईमान में वृद्धि हो। इस आधार पर तिलावत को केवल एक कला के रूप नहीं देखा जाना चाहिये। MM

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