वह महान लक्ष्य जिसके लिए इमाम हुसैन जैसी हस्ती ने क़ुरबानी दी
(last modified Mon, 08 Aug 2022 12:16:15 GMT )
Aug ०८, २०२२ १७:४६ Asia/Kolkata
  • वह महान लक्ष्य जिसके लिए इमाम हुसैन जैसी हस्ती ने क़ुरबानी दी

पूरी दुनिया में आशूर के अवसर पर इमाम हुसैन का नाम वातावरण में गूंज रहा है। या हुसैन या हुसैन की आवाज़ से लोगों के कान मानूस हैं क्योंकि हुसैन दरअस्ल एक विचारधारा का नाम है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने सन 61 हिजरी क़मरी के आशूर को कर्बला में बेमिसाल क़ुरबानी पेश की। क़ुरबानी पेश करने का मक़सद एक बहुत बड़े लक्ष्य को हासिल करना था। इस लक्ष्य की महानता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इमाम हुसैन जैसी महान हस्ती ने अपनी जान की क़ुरबानी पेश कर दी। यही नहीं अपने उन वफ़ादार साथियों की क़ुरबानी पेश कर दी जो पूरी तारीख़ में बेमिसाल हैं। इतना ही नहीं इस लक्ष्य के लिए इमाम हुसैन ने यह भी गवारा किया कि उनके कुनबे की प्रतिष्ठित महिलाएं भी दुश्मन के हाथों क़ैदी बन ली जाएं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई इस बिंदु को बहुत अच्छे ढंग से बयान करते हुए कहते हैं कि बेशक इस्लाम, आशूरा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की वजह से ज़िंदा है। जैसा कि पैग़म्बर की हदीस है: और मैं हुसैन से हूँ। इसका मतलब ये है कि मेरे दीन और मेरे मिशन का अगला दौर हुसैन के हाथों अंजाम पाने वाला है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई अपनी एक तक़रीर में कहते हैं कि बेशक कर्बला का ग़म बहुत बड़ा है, बहुत बड़ा नुक़सान है, हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती की ज़िंदगी, ज़मीन और आसमान से भी ज़्यादा क़ीमती है, उन असहाब, उन जवानों और अहलेबैत की पाकीज़ा जानों से किसी की भी ज़िंदगी की तुलना नहीं की जा सकती। ये हस्तियाँ उस मैदान में ख़ून में नहाईं, क़ुरबान हो गईं, फ़िदा हो गईं, पैग़म्बर और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर की औरतों को क़ैदी बनाया गया। ये घटनाएँ बहुत गंभीर हैं, बहुत कड़वी हैं, बहुत सख़्त हैं लेकिन इन कड़वी और सख़्त घटनाओं से जो नतीजा हासिल हुआ वह इतना बड़ा, इतना महान और इतना अमर है कि उसने हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम, उनके साथियों और उनके घर वालों की सख़्तियों को आसान कर दिया। बुज़ुर्गों ने इसे बयान किया है। मरहूम मीर्ज़ा जवाद आक़ा मलेकी, जिनकी बात ठोस होती है, अलमुराक़ेबात में लिखते हैं कि अशूरा के दिन जैसे-जैसे मुसीबतें अधिक कठिन होती जाती थीं, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नूरानी चेहरा और ज़्यादा चमकता जाता था,  और ज़्यादा नूरानी होता जाता था।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने क़ुरबानी पेश की और बड़ी शान से क़ुरबानी पेश की क्योंकि वह जानते थे कि इस क़ुरबानी के बदले इस्लाम को नई ज़िंदगी मिल रही है। इस क़ुरबानी से साबित हो रहा है कि यज़ीद और यज़ीदियत का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है अस्ली इस्लाम तो वह है जिसकी नुमाइंदगी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर रहे हैं।

इस तरह देखा जाए तो बेशक कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम क़त्ल कर दिए गए और यज़ीदी फ़ौज में शामिल लोग जीवित रहे लेकिन विजय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को मिली क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी की हिफ़ाज़त के लिए जंग की थी और वह महफ़ूज़ हो गया जबकि यज़ीद अस्ली इस्लाम को मिटा कर इस्लाम के नाम पर अलग ही तौर तरीक़ों को इस्लामी दुनिया पर थोपना चाहता था और वह इस मक़सद में नाकाम रहा।