मौजूदा दौर में इस्लामी उम्मत की मुश्किलें मुसलमानों की आपसी फूट का नतीजा हैं
पैग़म्बरे इस्लाम (स) और इमाम सादिक़ (अ) के मुबारक जन्म दिन पर ईरान के इस्लामी सिस्टम के ओहदेदारों और इस्लामी युनिटी इंटरनैश्नल कान्फ़्रेन्स के मेहमानों ने इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अहम तक़रीर की जिसके कुछ बिंदु निम्नलिखत हैं,
पैग़म्बरे अकरम की शख़्सियत कायनात की बेमिसाल शख़्सियत है। पैग़म्बर की विलादत का दिन बड़ी अज़मतों वाला दिन है। हज़रत की विलादत के दिन ईद मनाने का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि जश्न मना लिया जाए और याद कर लिया जाए बल्कि यह सबक़ लेने और पैग़म्बर को अपना आइडियल बनाने का दिन है।
इस्लामी उम्मत के लिए पैग़म्बर का एक सबक़ यह हैः ‘तुम्हारी तकलीफ़ें देखकर पैग़म्बर को दुख होता है।’(सूरए तौबा आयत 128) ज़ाहिर है यह सिर्फ़ पैग़म्बर के ज़माने के मुसलमानों की बात नहीं है। यानी आज फ़िलिस्तीन, म्यांमार वग़ैरा में मुसलमानों की तकलीफ़ों से पैग़म्बर की रूह को तकलीफ़ पहुंचती है।
साम्राज्यवादी सिस्टम मुसलमानों की तकलीफ़ें देखकर ख़ुश है। मुस्लिम क़ौमें इतनी मुश्किलों में क्यों घिरी हैं? इकानामिक और पालीटिकल मुश्किलें, साम्राज्यवाद का हमला व क़ब्ज़ा, सिविल वार वग़ैरा। मुसलमानों की इन मुसीबतों की क्या वजह है? एक बड़ी वजह मुसलमानों की आपसी फूट है।
मौजूदा दौर में इस्लामी उम्मत की मुश्किलें मुसलमानों की आपसी फूट का नतीजा हैं। जब हम बटे हुए हैं, एक दूसरे का भला नहीं बल्कि अकसर बुरा चाहते हैं तो नतीजा यही होगा। क़ुरआन साफ़ शब्दों में कहता हैः जब आपस में लड़ोगे तो रुसवा होगे और अपने ऊपर दूसरों के ग़लबे का रास्ता खोलोगे।
आज दुश्मन मुसलमानों को मुत्तहिद नहीं देखना चाहता। इस इलाक़े में उन्होंने #ज़ायोनी_शासन के नाम से एक कैंसर का बीज बो दिया जो इस्लाम के दुश्मन वेस्ट का अड्डा हो। ख़ूंखार और बेरहम ज़ायोनियों को #मज़लूम फ़िलिस्तीन में बसा दिया और इस काम के लिए एक जाली हुकूमत बना दी।
दुश्मनों की अब यह कोशिश है कि ज़ायोनी हुकूमत यानी इस कैंसर को दुश्मन न समझा जाए और वह इलाक़े के मुल्कों के बीच विवाद की आग भड़काए। यह सामान्य रिश्ते क़ायम करना मुसलमानों के साथ बहुत बड़ी ग़द्दारी है।
मुसल्मानों के बीच एकता से क्या मुराद है? मुराद इस्लामी उम्मत के हितों की हिफ़ाज़त में एकता है। इस्लामी उम्मत के हित क्या हैं, किस से दुश्मनी और किस से दोस्ती रखना है, इस बारे में आपसी बातचीत से सहमति बने। इससे मुराद हैः साम्राज्यवाद की साज़िशों के मुक़ाबले में एकजुट कोशिश।
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