ईरान में तीन हफ़्ते में तीन आतंकी हमले, साज़िश की नाकामी से मायूस दुश्मन अब ख़ूनख़राबे पर उतर आया
पिछले तीन हफ़्ते में ईरान के तीन शहरों शीराज़, इस्फ़हान और ईज़े में तीन आतंकी हमले हुए जिनमें महिलाओं और बच्चों समेत 24 लोग शहीद और दर्जनों ज़ख़्मी हो गए।
बुधवार की शाम मोटरसाइकिल पर सवार आतंकियों ने क्लाशनकोफ़ गन से ख़ूज़िस्तान प्रांत की ईज़े काउंटी के बाज़ार में आम नागरिकों पर फ़ायरिंग कर दी जिसके नतीजे में 7 लोग शहीद और 10 घायल हो गए। बुधवार की शाम इस्फ़हान नगर में भी मोटरसाइकिल पर सवार आतंकियों ने सुरक्षाकर्मियों पर हमला कर दिया जिसमें तीन सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए और एक ज़ख़्मी हो गया। इससे पहले गत 26 अक्तूबर को शीराज़ के शाहचेराग़ मज़ार पर दाइश से जुड़े आतंकी ने मौत का तांडव किया और 2 बच्चों सहित 13 लोगों की जान ले ली। इस हमले में 30 लोग घायल हुए।
ईरान में पिछले दो महीने से हिंसक हंगामें चल रहे हैं। कई विदेशी एजेंसियों से सपोर्ट पाने वाले दंगाई पूरे ईरान में दंगे और हिंसा फैलाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन दंगाइयों को अमरीका, कनाडा, यूरोपीय देशों, कुछ अरब सरकारों और इस्राईल का समर्थन हासिल है। ईरान के ख़िलाफ़ सक्रिय आतंकी संगठन भी इस आपराधिक प्रकरण में पूरी तरह शामिल हैं।
यह सारे हंगामे ईरान पर कमर तोड़ दबाव डालने की योजना का हिस्सा है जिसे 2018 में अमरीका की ट्रम्प सरकार ने शुरू किया था और जिसका लक्ष्य ईरानी जनता को देश की इस्लामी शासन व्यवस्था के ख़िलाफ़ बग़ावत पर मजबूर करना है। इस समय बस यह फ़र्क़ हुआ है कि दंगे करने का बहाना बदल गया है। पहले आर्थिक मुद्दों को बहाना बनाया जाता था और अब सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को हथियार बनाया जा रहा है।
दो महीने गुज़र चुके हैं मगर ईरान को दंगों की आग में झोंक देने की साज़िश नाकाम रही है क्योंकि इन योजनाबद्ध दंगों के नतीजे में गिनती के कुछ लोग सड़कों पर निकल कर नारेबाज़ी करने लगते हैं लेकिन देश की जनता बड़ी सूझबूझ से दुश्मन की साज़िशों का जायज़ा ले रही है और आम नागरिकों ने ख़ुद को दंगाइयों से अलग कर लिया है। यही वजह है कि साज़िश में लिप्त बाहरी ताक़तें और आतंकी संगठन अब आतंकी हमले करवाने पर तुल गए हैं। दंगाइयों का समर्थन करने वाली ताक़तों की मदद से चलने वाले टीवी चैनल बड़ी मेहनत से लगे हुए थे कि पूरे ईरान में आम हड़ताल हो जाए और कारोबार बंद हो जाए मगर उनकी काल पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इससे तिलमिलाए दंगाइयों ने आगज़नी शुरू कर दी। कुछ दुकानदारों ने आग की चपेट में आने से अपनी दुकानों और कारोबार को बचाने के लिए दंगे के समय अपनी दुकाने बंद कर दीं मगर इसके अलावा पूरे दिन दुकानें खुली रहीं तो इस तरह दुश्मन का यह मंसूबा भी फ़ेल हो गया।
बार बार साज़िश नाकाम होने के बाद अब दुश्मनों ने आतंकी हमलों का सहारा लिया है ताकि देश के भीतर झड़पें शुरू हो जाएं। आतंकी हमले की क्या वजह है और यह हमले करवाने में दुश्मन कैसे कामयाब हो गए?
आतंकी हमलों का एक मक़सद यह है कि ईरान के अलग अलग इलाक़ों में अभी और कुछ मुद्दत तक हिंसा का माहौल रहे। इसी वजह से बच्चों और महिलाओं को निशाना बना रहे हैं ताकि लोगों के जज़्बात और ज़्यादा भड़कें। दूसरी तरफ़ क़तर में फ़ुटबाल विश्व कप प्रतियोगिता भी नज़दीक आ गई है तो दुश्मनों और दंगाइयों की कोशिश यह है कि ईरान की टीम पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़े और विश्व समुदाय ईरान पर दबाव बढ़ाने की दिशा में क़दम उठाए।
आतंकी हमले शुरू करवाने का एक मक़सद यह भी है कि देश का हर इलाक़ा अशांति में उलझ जाए। इसफ़हान और ख़ूज़िस्तान में पिछले दो महीने के हंगामों के दौरान माहौल पूरी तरह शांत था। दुश्मनों की ख़ास तवज्जो ख़ूज़िस्तान पर है जहां अरब जाति की संख्या अधिक है और दुश्मनों का उम्मीद है कि यहां अरब ग़ैर अरब की भावना भड़काई जा सकती है।
दुश्मन आतंकी हमले करवाकर ईरान की जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि देश में शांति का माहौल नहीं है जिसका उल्लेख ईरान के अधिकारी अपने बयानों में करते हैं। आतंकी हमलों को रोक पाना हर देश के लिए बहुत कठिन होता है। हाल ही में तुर्की के इस्तांबूल में बड़ा आतंकी हमला हो गया।
ईज़े और इस्फ़हान में तो आतंकी हमले करवाने में दुश्मन कामयाब हो गए मगर ईरान की सुरक्षा एजेंसियों ने कई आतंकी हमलों की योजनाएं नाकाम बना दी हैं। अब हंगामों में दुशमन की भूमिका और भी स्पष्ट होती जा रही है और उसे भी अपने आतेंकियों जैसे अंजाम के लिए तैयार रहना चाहिए।