ईरान के आंतरिक मामलों में फ़्रांस का हस्तक्षेप
(last modified Tue, 29 Nov 2022 08:26:17 GMT )
Nov २९, २०२२ १३:५६ Asia/Kolkata
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फ़्रांसीसी संसद ने दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने पर आधारित अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन करते हुए ईरान में विरोध प्रदर्शनों के बहाने दंगे और हिंसा फैलाने वालों का समर्थन किया है।

यह सर्वसम्मति से पारित होने वाले इस प्रस्ताव में फ़्रांसीसी संसद ने ईरानी सुरक्षा बलों द्वारा तथाकथित विरोध प्रदर्शनकारियों को कुचलने का आरोप लगाया है और दंगाईयों के ख़िलाफ़ अदालती कार्यवाही को अस्वीकार्य बताया है।

फ़्रांसीसी सांसदों ने यह भी दावा किया है कि महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में भड़कने वाले दंगों को कुचलने के लिए ईरानी सरकार ने बल का प्रयोग किया है और यह स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति की आज़ादी और प्रदर्शनों की आज़ादी का उल्लंघन है।

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने हमेशा हस्तक्षेपपूर्ण नीतियां अपनाकर, ईरान के खिलाफ़ जनमत को उकसाने की कोशिश की है। यहां तक ​​कि ईरान में अशांति का हवाला देकर परमाणु वार्ता में एक समझौते पर पहुंचने की संभावना को कमज़ोर बताया है। मैक्रॉन के यह दावे ऐसे स्थिति में दोहराए हैं, जब उन्होंने तथाकथित छवि को औपचारिक रूप देने के लिए हाल ही में ईरान विरोधी कुछ लोगों से स्पष्ट रूप से मुलाक़ात की थी।

दर असल, क्षेत्र में ईरान के नेतृत्व में इस्लामी प्रतिरोधी मोर्चे के ख़िलाफ़ प्रॉक्सी युद्धों में नाकामी के बाद, अब प्रतिरोध के दुशमनों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान को उसके भीतर से नुक़सान पहुंचाने की एक नई साज़िश रची है। इसके लिए ईरान के दुशमनों ने महसा अमीनी की मौत को बहाना बनाया है।

फ़्रांस जैसे यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षे करने वाली नीति अपनाई है। ईरान विरोधी शक्तियों का मानना महसा अमीनी की पुलिस कस्टडी में मौत और उसके बाद देश में भड़कने वाले दंगों से ईरान को कमज़ोर करने के लिए उन्हें एक अनूठा अवसर प्राप्त हो गया है। फ्रांसीसी संसद ने ग़ैर-बाध्यकारी ही सही एक प्रस्ताव पारित करके ईरान के आंतरिक मामलों में दख़ल दिया है, जबकि मानवाधिकारों का दावा करने वाले फ्रांस में मानवाधिकारों और प्रदर्शनकारियों की स्थिति चिंताजनक है। फ्रांसीसी नेता ईरानी महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने का दावा करते हैं, जबकि इस यूरोपीय देश में महिलाओं की स्थिति पूरे यूरोप में सबसे ख़राब है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे इस देश की सरकारी संस्थाएं भी स्वीकार करती हैं।

इसके अलावा, फ़्रांस समेत पश्चिमी देशों में मुसलमानों और अश्वेतों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया किसी से ढका छिपा नहीं है।

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