आख़िरकार अमेरिका ने स्वीकार की दंगाईयों के समर्थन की बात, ईरान में अशांति की आग लगाने वाले अब होने लगे हैं बेनक़ाब, यूक्रेन की चोट का तेहरान से बदला
(last modified Sun, 11 Dec 2022 16:54:05 GMT )
Dec ११, २०२२ २२:२४ Asia/Kolkata
  • आख़िरकार अमेरिका ने स्वीकार की दंगाईयों के समर्थन की बात, ईरान में अशांति की आग लगाने वाले अब होने लगे हैं बेनक़ाब, यूक्रेन की चोट का तेहरान से बदला

ईरान में इसी साल सितंबर के महीने में एक कुर्द लड़की की मौत का बहाना बनाकर जिस तरह योजनाबद्ध तरीक़े से देश के अलग-अलग शहरों में दंगे शुरू हुए और अशांति का माहौल बनने लगा था उससे यह साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि यह कोई अचानक से हुई घटना नहीं है बल्कि इसकी प्लानिंग बहुत पहले ही तैयार की जा चुकी थी। इस बात में कोई शक नहीं है कि ईरानी पुलिस ने जितनी सहनशीलता के साथ दंगाईयों और उपद्रवियों का मुक़ाबला किया है वह सराहनीय है।

ईरान में जारी अशांति की आग को अमेरिका और कुछ यूरोपीय और अरब देश किसी भी स्थिति में बुझने नहीं देना चाहते हैं। लेकिन पैसे लेकर हर हथकंड़े अपनाने के बावजूद उनकी सारी साज़िशों पर पानी फिरता जा रहा है। इस मामले में इस्लामी गणराज्य के नेतृत्व और ईरान जनता की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। समय रहते देश के नेतृत्व के साथ-साथ जनता भी दुश्मनों के षड्यंत्रों को भांप गई और एक बार फिर वह कर दिखाया जो इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा। 40 साल से ऊपर हो गए शायद ही कोई ऐसा समय नहीं रहा होगा जब इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों ने ईरान के नुक़सान पहुंचाने की कोशिश नहीं की होगी। लेकिन हर बार अमेरिका और उसके सहयोगियों को पहले से भी ज़्यादा शर्मनाक तरीक़े से हार का सामना करना पड़ता है। ईरान में सार्वजनिक अशांति को बढ़ावा देने में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों और कुछ अरब देशों की दिलचस्पी का एक लंबा इतिहास रहा है। पश्चिम के रुख में शासन परिवर्तन का एजेंडा होता है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि वाशिंगटन भी वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय हालात में, ईरान की विदेश और सुरक्षा नीतियों से संबंधित कुछ शर्तों के तहत तेहरान के साथ समझौता करने में रुचि दिखा रहा है। ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने हाल ही में अपने एक बयान में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि अमेरिका और कई अन्य पश्चिमी देशों ने ईरान में दंगों की आग को भड़काया है, क्योंकि "अमेरिका का उद्देश्य वार्ता की मेज़ पर ईरान को बड़ी रियायतें देने पर मजबूर करना था" ताकि परमाणु समझौते को दोबारा जीवित किया जा सके।

इस बीच ईरान के मामलों में अमेरिका के विशेष दूत रॉबर्ट मैले ने स्वीकार किया कि बाइडेन प्रशासन ईरान में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में ख़ुद एक हितधारक है। उन्होने संकेत दिया कि, यद्यपि ईरान ने कई निर्णायक निर्णय लिए हैं जो परमाणु समझौते को दोबारा जीवित कर सकते हैं और कुछ आर्थिक प्रतिबंधों को उठाया जा सकता है लेकिन वे अभी एक राजनीतिक असंभवता बने हुए है, शर्त यह है कि ईरान को रूस के साथ संबंधों को बदलना होगा जिससे कूटनीति का रास्ता बंद नहीं होगा। मैले ने बताया, वाशिंगटन का लक्ष्य ईरान द्वारा रूस को हथियारों की आपूर्ति, और किसी भी प्रकार की आपूर्ति रूस में सैन्य उत्पादन सुविधाओं के निर्माण में मिसाइल या सहायता को "बाधित करना, विलंब करना, रोकना और प्रतिबंध लगाना" है, एक ऐसी रणनीति जो "नई सीमा लांघ रही होगी।" संक्षेप में, मैले ने, ईरान में चल रहे विरोध को, अमेरिका के दृष्टिकोण के तहत तेहरान की रूस और यूक्रेन में उसके युद्ध के संबंध में विदेश और सुरक्षा नीतियों के साथ जोड़ा है। स्पष्ट रूप से, मैले की टिप्पणी से यह साफ़ हो गया है कि ईरान में दंगाईयों और उपद्रवियों को अमेरिका का पूरा समर्थन है, लेकिन साथ ही वह अभी भी तेहरान के साथ व्यापार करने की इच्छा जता रहा है। शर्त यह कि ईरान को मास्को के साथ अपनी गहरी रणनीतिक साझेदारी को वापस लेना होगा, और यूक्रेन में संघर्ष में किसी भी तरह की भागीदारी से परहेज़ करन होगा।

वहीं वास्तविक्ता यह है कि  अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने भी हाल ही में अपने एक बयान में कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के निगरानीकर्ता के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ईरान परमाणु हथियार कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है, जिसका अर्थ है कि वियना में वार्ता की बहाली में कोई "प्रणालीगत" बाधा नहीं है। कुल मिलाकर इस बात में अब कोई शक नहीं रह गया है कि ईरान में दंगे, अराजकता, अशांति और उपद्रव के पीछे अमेरिका और कुछ यूरोपीय एवं अरब देशों का हाथ है। अमेरिका की हमेशा से यही नीति रही है कि जो भी देश या सरकार उससे आंखे मिलाकर बात करने का साहस करती हैं वह उसकी बर्बादी की कहानी लिखना शुरू कर देता है। फिर न मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र संघ और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत, लेकिन अब अमेरिका की सच्चाई दुनिया के समने आ चुकी है और वह दिन दूर नहीं है कि जब दुनिया उसके एक-एक जुर्म का हिसाब लेगी। (रविश ज़ैदी R.Z)

 

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