स्वर्गीय श्रीमती दब्बाग़े, महिलाओं के लिए आदर्श हैंः सुप्रीम लीडर
वरिष्ठ नेता ने कहा है कि महिलाओं की गरिमा को कुचलने के लिए पश्चिम को जवाब देना चाहिए।
ईरान के हमादान प्रांत के शहीदों की दूसरी कांग्रेस का आयोजन करने वालों से भेंट में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने यह बता कही।
27 सितंबर को होने वाली इस मुलाक़ात में सुप्रीम लीडर ने कहा था कि यह बात बारंबार कही जा चुकी है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, महिलाओं के मुद्दे पर बचाव की स्थति में नहीं है बल्कि महिलाओं के अनादर के बारे में पश्चिम को इस संबन्ध में स्पष्टीकरण देना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि शहीदों के नामों को ज़िंदा रखने के लिए कलात्मक शैलियों का प्रयोग करना चाहिए। उनका कहना था कि इन आदर्शों में से एक, हमदान की रहने वाली स्वर्गीय श्रीमती दब्बाग़े भी हैं।
श्रीमती दब्बाग़े, इस्लामी जगत में महिलाओं के लिए एक स्पष्ट आदर्श हो सकती हैं। उन्होंने इस्लामी क्रांति से पहले और बाद में श्रीमती दब्बाग़े की सेवाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि पैरिस में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के आवास के दौरान वे उनके साथ वहीं पर अपनी गतिविधियां अंजाम दे रही थीं।
इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम अंजाम दिये। वरिष्ठ नेता ने बताया कि स्वर्गीय श्रीमती दब्बाग़े के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने पूर्व सोवियत संघ के नेता गोर्बाचेफ़ को पत्र भेजा था तो वे, उनका पत्र मास्को ले जाने वाले तीन सदस्सीय शिष्टमण्डल की एकमात्र महिला सदस्य थीं।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लामी क्रांति के आरंभिक वर्षों में कुछ लोगों ने इस्लाम और राष्ट्रवाद को परस्पर विरोधी दर्शाने के प्रयास किये जबकि हमारे शहीद, इस बात के ग़लत होने से पूरी तरह से अवगत थे।
सुप्रीम लीडर ने कहा कि जब ईरान पर हमला किय गया तो वे लोग जो ईरान के समर्थन का दावा किया करते थे वे या तो अपने घरों पर छिपे हुए बैठे थे या ईरान से भागकर विदेश चले गए थे। हालांकि उसी काल में क्रांतिकारियों और देश प्रेमियो ने ईरान की रक्षा की। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि ईरानियत और इस्लामियत एक ही वास्तविकता है।
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