Oct १५, २०२३ १४:२२ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को नाइजीरिया के लोक प्रिय इस्लामी आंदोलन के प्रमुख आयतुल्लाह शेख़ इब्राहीम ज़कज़की, उनकी धर्मपत्नी और बेटियों के साथ हुई मुलाक़ात में ग़ाज़ा की हालिया स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि फ़िलिस्तीन में हालिया दिनों में जो घटनाएं घटी हैं वही इस्लाम की शक्ति के प्रतीकों में से एक मुद्दा है।

सर्वोच्च नेता ने फ़िलिस्तीन में होने वाली भीषण बमबारी में शहीद होने वाली महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह हृदयविदारक घटनाएं इंसानी दिलों को तकलीफ़ पहुंचा रही है। लेकिन इसका एक और पहलु है और वह यह है कि यह सभी घटनाएं फ़िलिस्तीन में इस्लाम की अविश्वसनीय शक्ति को दर्शाती हैं। उन्होंने कहा कि यह वह समय है कि जब इस्लामी दुनिया में हर किसी का यह कर्तव्य बनता है कि वह फ़िलिस्तीनी लोगों की मदद करे।

फ़िलिस्तीन के वर्तमान घटनाक्रमों के बारे में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का यह बयान इस संदर्भ में है कि फ़िलिस्तीनी जियालों के सफल और अभूतपूर्व ऑपरेशन के बाद, जिसके परिणामस्वरूप आतंकी ज़ायोनी शासन के लिए एक बड़ी ख़ुफिया और व्यवस्थित हार हुई है। उसके बाद इस आतंकी शासन ने ग़ाज़ा की नागरिक आबादी को हवाई हमलों का निशाना बनाया है और अब तक हज़ारों फ़िलिस्तीनी शहीद या घायल हो चुके हैं। इसके आधार पर, फ़िलिस्तीन के लोगों और हितों के लिए इस्लामी देशों और संपूर्ण इस्लामी उम्माह के समर्थन की आवश्यकता पहले की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। निस्संदेह, इस्लामी एकता का मुद्दा पैग़म्बरे इस्लाम (स)  और मासूम इमामों (अ) की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक है। साथ ही धार्मिक नेताओं की प्राथमिकताओं में भी सबसे ऊपर है। क्योंकि इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा विभाजनकारी रणनीति और युद्ध का उपयोग करके मुसलमानों को कमज़ोर करने की कोशिश की है।

इसलिए, इस्लामी दुनिया के पहले मुद्दे के रूप में फ़िलिस्तीन के उत्पीड़ित और विस्थापित लोगों के संपूर्ण अधिकारों का समर्थन करना और पूरे फ़िलिस्तीन से ज़ायोनी हमलावरों को बाहर निकालने के लिए उनका व्यापक समर्थन करना धार्मिक और राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी के स्पष्ट उदाहरणों में से एक है, जो है सभी मुसलमानों का दायित्व बनता है। आतंकी ज़ायोनी शासन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित उसके समर्थकों ने दशकों से फ़िलिस्तीनी लोगों के वैध अधिकारों की अनदेखी की है और अपने अत्याचार जारी रखे हैं। हालिया दिनों में भी फ़िलिस्तीनी समूहों ज़रिए इस्राईल द्वारा दशकों से किए जाने वाले अत्याचारों और जघन्य अपराधों के जवाब में किए गए ऑपरेशन को बहाना बनाकर वे फ़िलिस्तीनी लोगों का नरसंहार करना चाहते हैं और ग़ाज़ा पट्टी के लोगों की घेराबंदी को कड़ी से कड़ी करना चाहते हैं।

यही वजह है कि आज फ़िलिस्तीनी लोगों को आतंकी ज़ायोनी कब्ज़ाधारियों के हाथों से अपनी भूमि को मुक्त कराने के लिए हमलावरों का विरोध जारी रखने के लिए दुनिया, विशेष रूप से मुस्लिम उम्माह के समर्थन की आवश्यकता है। इसलिए, इस्लामी देशों की ओर से इस संबंध में किसी भी प्रकार की उदासीनता को उचित नहीं ठहराया जा सकता है, ख़ासकर तब जब फ़िलिस्तीनियों ने इस्लाम की शिक्षाओं का उपयोग करके यह साबित कर दिया है कि अब, सभी दबावों के बावजूद, उनके पास एक मज़बूत प्रेरणा है जो उन्हें आतंकी ज़ायोनी आक्रमणकारी और विस्तारवादियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध की ताक़त प्रदान करती है। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने व्यापक साज़िशों के बावजूद दुनिया में इस्लाम की बढ़ती ताक़त को भी संघर्षों और प्रयासों का नतीजा माना है और हाल के दिनों में फ़िलिस्तीन की मौजूदा स्थिति के बारे में बात करते हुए कहा है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर की कृपा और उसकी अनुकंपा से फ़िलिस्तीन में शुरू हुआ यह आंदोलन आगे बढ़ेगा और फ़िलिस्तीनियों की पूर्ण जीत होगी। (RZ)

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