Nov २७, २०२३ १८:०५ Asia/Kolkata
  • ईरान और भारत के बीच दरार डालने वालों के लिए बुरी ख़बर, युद्ध की आग में रोटियां सेंकने वालों के टूटे सपने!

दुनिया भर में अशांति की आग भड़काने वाली शक्तियों का हमेशा यह प्रयास होता है कि वे इस अशांति की आग से जितना ज़्यादो हो सके लाभ उठा सके। यही हाल कुछ अवैध आतंकी इस्राईली शासन और फ़िलिस्तीन के लोकप्रिय जनांदोलन हमास के बीच ग़ज़्ज़ा में जारी युद्ध में भी देखा गया है। जहां इस्लामी गणराज्य ईरान समेत कुछ देश लगातार यह कोशिश कर रहे हैं कि ग़ज़्ज़ा में शांति स्थापित हो तो वहीं दुनिया की साम्राज्यवादी शक्तियां इस युद्ध की आग अधिक भड़काने के लिए हर स्तर को कोशिशें कर रही हैं।

ग़ज़्ज़ा युद्ध की आड़ में अवैध आतंकी इस्राईली शासन अपने अकाओं के इशारे पर लगातार यह प्रयास कर रहा था आया है कि किसी भी तरह से ईरान को दुनिया से अलग-थलग किया जा सके, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। क्योंकि भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा रविवार को जैसे ही तेहरान पहुंचे वैसे ही ईरान और भारत के बीच दरार डालने वालों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत के विदेश सचिव की ईरान यात्रा के महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं। विनय क्वात्रा ने ईरान के राजनीतिक मामलों के विदेश उप-मंत्री के साथ बैठक में हिस्सा लिया। यह बैठक 18वीं इंडिया-ईरान फ़ॉरन ऑफ़िस कंसल्टेशन (एफ़ओसी) के तहत हुई। वैसे तो यह एक सामान्य बैठक थी, लेकिन इसमें काफ़ी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान और ग़ज़्ज़ा में बने हालात पर विमर्श के अलावा द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की गई और कनेक्टिविटी से जुड़ी परियोजनाओं, जैसे कि चाबहार बंदरगाह पर भी बात हुई। चाबहार बंदरगाह पर बात होना इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह भारत, ईरान और रूस, तीनों के बीच हुए एक समझौते के लिए काफ़ी अहम है। यह बंदरगाह उस इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरोडिर (आईएनएसटीसी) के लिए अहम बिंदु है, जिसके तहत इसे मध्य एशिया और रूस तक रेल मार्ग से जोड़ा जाना है।

चाबहार बंदरगाह योजना को लेकर जहां इस्राईल सबसे ज़्यादा चिंता में था तो वहीं अमेरिका और उसके सहयोगी भी इस योजना को विफल बनाने के लिए लगातार साज़िशें रचने में लगे हुए थे। हाल ही में जब दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन में एक नया ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी थी, तो कुछ टीकाकारों ने यह कहना आरंभ कर दिया था कि नए ट्रेड रूट इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर योजना के आने से चाबहार परियोजना की महत्व लगभग समाप्त हो गया है। इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर योजना में भारत, संयुक्त अरब इमारात, सऊदी अरब, जॉर्डन, और ग्रीस के अलावा अवैध ज़ायोनी शासन भी शामिल था। इस कॉरिडोर पर सहमति बनाने में अमेरिका की अहम भूमिका थी। इस कॉरिडोर को ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा जाने लगा था, लेकिन हमास और इस्राईल की जंग से इन तमाम समीकरणों और अटकलों को अचानक बदल दिया। ऐसा भी माना जा रहा था कि भारत की दिलचस्पी ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी की बजाय इस नए व्यापारिक रास्ते में ज़्यादा हो सकती है। ऊपर से पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत के लिए उसके साथ कारोबार करना पहले ही काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा हो गया है, ऐसे में यह चर्चा होने लगी कि भारत ईरान वाले रास्ते को चुनेगा या फिर नए रूट को।

बता दें कि ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी। साल 2016 में इस समझौते को मंज़ूरी मिली और भारत इस समय यहां एक कार्गो टर्मिनल विकसित कर रहा है। यह बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) के लिए काफ़ी अहमियत रखता है। इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, आज़रबाइजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज़, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है। इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाएगी।  रूस के साथ-साथ ईरान को भी यह रूट पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से राहत पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। लेकिन इधर कुछ वर्षों से चाबहार परियोजना में सुस्ती देखी जा रही थी और इसकी वजह भी भारत की इस्राईस से बढ़ती नज़दीकी बताई जाती थी। लेकिन एक बार फिर इस योजना को लेकर तेज़ी दिखाई देने लगी है। भारतीय अधिकारी का कहना है कि भारत ने कई बार चाबहार और आईएनएसटीसी परियोजना में तेज़ी लाने को कहा, मगर उन्हें इन परियोजनाओं का महत्व तभी समझ आया, जब रूस और यूक्रेन में जंग छिड़ी। हालांकि, इससे पहले ईरान ने भारत पर सुस्ती बरतने का आरोप लगाया था। साल 2020 में ईरान ने भारत को चाबहार रेल प्रोजेक्ट से फंड मिलने में देरी का हवाला देते हुए अलग कर दिया था।

इस बीच अब ऐसी रिपोर्टें सामने आने लगी हैं कि ईरान और भारत के बीच दरार डालने वालों की नींदें उड़ गई हैं। इसी साल भारत ने भी चाबहार में 8 करोड़ डॉलर का निवेश करने का एलान किया है। इससे यह संकेत मिलते हैं कि भारत चाहता है कि आईएनएसटीसी सफल हो। आईएनएसटीसी में भारत की रुचि बने रहने का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि प्रस्तावित आईएमईसी को लेकर कई तरह की अनिश्चितताएं सामने आई हैं। वहीं इस्राईल और हमास के बीच जारी युद्ध ने एक बार फिर पश्चिमी एशिया की अस्थिरता को उभार दिया है। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक ग्रैसेटी ने पिछले हफ़्ते कहा था कि आईटूयूटू समूह के सदस्यों के बीच कनेक्टिवी बढ़ाने और जी20 सम्मेलन में तय किए गए इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर को आगे बढ़ाने में इस्राईल हमास संघर्ष के कारण ठहराव आ सकता है, हालांकि, आगे चलकर इसमें ज़रूर प्रगति होगी। प्रस्तावित ट्रेड रूट आईएमईसी की सफलता इस क्षेत्र की शांति पर निर्भर करती है। इस्राईल और सऊदी अरब के बीच संबंध स्थापित होने का भी काफ़ी सकारात्मक असर होता, मगर इस दिशा में प्रगति रुक गई है। ऐसा माना जा रहा है कि रियाज़ और तेलअवीव के बीच इधर वर्षों तक शायद ही कोई बातचीत हो सके। कुल मिलाकर फ़िलिस्तीन, ग़ज़्ज़ा और हमास को मिटाने और ईरान को दुनिया से अलग-थलग करने का सपना देखने वालों के सारे सपने टूटते हुए नज़र आ रहे हैं और ईरान-भारत, जो हमेशा से एक अच्छे दोस्त देश रहे हैं एक बार फिर अपनी मज़बूत दोस्ती को दुश्मनों की साज़िशों से बचाने में कामयाब हो गए हैं। (RZ)

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