सर्वोच्च नेता ने महिलाओं को लेकर पश्चिमी सोच से उठाया पर्दा, इस्लाम में महिलाएं शक्ति का प्रतीक हैं
(last modified Wed, 27 Dec 2023 12:46:50 GMT )
Dec २७, २०२३ १८:१६ Asia/Kolkata
  • सर्वोच्च नेता ने महिलाओं को लेकर पश्चिमी  सोच से उठाया पर्दा, इस्लाम में महिलाएं शक्ति का प्रतीक हैं

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्ला अलैहा के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष में समाज के विभिन्न वर्गों की हज़ारों महिलाओं ने बुधवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर सुप्रीम लीडर ने परिवार में महिलाओं की उपस्थिति के विभिन्न आयामों और समाज, राजनीति और विभिन्न स्तरों पर प्रबंधन में उनकी असीमित गतिविधि के बारे में इस्लाम के तार्किक और तर्कसंगत दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने समाज के विभिन्न वर्गों की हज़ारों महिलाओं के साथ मुलाक़ात में सबसे पहले हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन पर रोशनी डालते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की प्राण प्रिय बेटी की महानता को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि एक प्रामाणिक हदीस के अनुसार, ईश्वर हज़रत फ़ातेमा (स) के क्रोध से क्रोधित होता है और उनकी ख़ुशी से प्रसन्न होता है, इससे बढ़कर किसी इंसान के लिए किसी प्रशंसा और उसके सम्मान की कल्पना नहीं की जा सकती। सर्वोच्च नेता ने कहा कि इसीलिए अब अगर कोई भी जो ईश्वर की स्वीकृति चाहता है, उसे चाहिए कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) द्वारा परिवार, बेटी, मां, पत्नी, समाज और राजनीति के क्षेत्र में उनकी सिफ़ारिशों, पाठों और निर्देशों का पालन करे। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एक महिला की पहचान, उसके मूल्यों, अधिकारों, कर्तव्यों, स्वतंत्रता और सीमाओं को एक महत्वपूर्ण और बहुत निर्णायक मुद्दा माना और कहा कि इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर दुनिया में पश्चिमी और इस्लामी दो दृष्टिकोण हैं और दोनों एक दूसरे के मुक़ाबले में हैं।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पश्चिमी सभ्यता और सांस्कृतिक प्रणाली द्वारा महिलाओं के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बचने की ओर इशारा किया और कहा कि क्योंकि पश्चिमी लोगों के पास महिलाओं के बारे में कोई तर्क नहीं है, वे राजनीतिक और ग़ैर-राजनीतिक हस्तियों को ख़रीदकर, विवादों और शोर-शराबे से अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा कला, साहित्य और सोशल मीडिया का उपयोग करके महिलाओं से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों पर हावी होने का भरपूर प्रयास करते हैं। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिम में नैतिक भ्रष्टाचार के भयानक आधिकारिक आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए सवाल पूछा कि, क्यों पश्चिम में परिवार को तोड़ने वाला हर मुद्दा दिन-ब-दिन प्रमुख होता जा रहा है और दूसरी ओर, हिजाब पहनने वाली महिलाओं पर हमला करने वालों के ख़िलाफ़ कोई निंदा या गंभीर कार्यवाही नहीं होती है? उन्होंने महिलाओं के मुद्दे पर इस्लाम के दृष्टिकोण को पश्चिमी दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत बताया और कहा, महिलाओं का मुद्दा इस्लाम की शक्ति का प्रतीक और मज़बूत बिंदुओं में से एक है, और हमें यह सोचना भी नहीं चाहिए कि महिलाओं के मुद्दे के लिए हम जवाबदेह हैं।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने आगे कहा कि गरिमा और मानवीय मूल्यों के मामले में पुरुषों और महिलाओं की समानता को इस्लाम के मज़बूत और तर्कसंगत  के तौर पर देखा जाता है। उन्होंने कहा कि मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक उत्थान के संदर्भ में, पुरुषों और महिलाओं को एक-दूसरे पर बिल्कुल कोई प्राथमिकता नहीं है, और वे दोनों समान प्रतिभा और अपने प्रयासों के अनुसार आध्यात्मिक उत्थान के स्तर तक पहुंचने में सक्षम हैं। सर्वोच्च नेता ने कहा कि आध्यात्मिक क्षेत्र में, पवित्र क़ुरआन में कुछ स्थानों पर ईश्वर ने पुरुषों की तुलना में महिलाओं को प्राथमिकता दी है और उसने फ़िरऔन की पत्नी और हज़रत मसीह की मां हज़रत मरियम जैसी महिलाओं को सभी विश्वासियों के लिए आदर्श के रूप में पेश किया है, जो यह सिद्ध करता है कि पुरुष अपनी भौतिक स्थितियों के कारण महिलाओं पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन्होंने समाज में उपस्थिति और सामाजिक ज़िम्मेदारियों के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी पुरुषों और महिलाओं की समान भूमिका बताई और कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी (र.ह) के अनुसार, देश की राजनीति और मौलिक नियति में हस्तक्षेप करना महिलाओं का अधिकार और कर्तव्य है, जबकि परंपराओं के अनुसार, मुसलमानों के मामलों पर ध्यान देने सहित समाज के मामलों से निपटना हर किसी का कर्तव्य है। जैसा कि आज ग़ज़्ज़ा का मुद्दा है, जिसके लिए सभी की ज़िम्मेदारी एक समान है। इसलिए, कर्तव्य और सार्वजनिक ज़िम्मेदारी की भावना में पुरुषों और महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पारिवारिक कर्तव्यों को एक ऐसी श्रेणी माना जिसमें पुरुषों और महिलाओं के अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के अनुसार अलग-अलग कर्तव्य होते हैं। उन्होंने कहा कि इसके आधार पर, "लैंगिक समानता" का नारा जिसे कुछ लोग निरपेक्ष रूप में व्यक्त करते हैं वह ग़लत है, और जो सही है वह "लैंगिक न्याय" है। अयातुल्लाह ख़ामेनेई ने न्याय की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि इसका सही अर्थ होता है सब कुछ अपनी जगह पर रखना, महिलाओं के विशिष्ट कर्तव्यों जैसे कि बच्चे पैदा करना और बच्चों का पालन-पोषण करना एक महिला की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक संरचना के अनुसार है। उन्होंने कहा कि यद्यपि पुरुषों और महिलाओं के पारिवारिक कर्तव्य अलग-अलग हैं, पवित्र क़ुरआन के अनुसार उनके पारिवारिक अधिकार समान हैं। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने उन सवालों की भी बात की कि जो विभिन्न नौकरियों और सामाजिक और सरकारी प्रशासनों में महिलाओं की उपस्थिति के बारे में पूछे जाते हैं, उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लिंग कोई मुद्दा नहीं है और महिलाओं की उपस्थिति पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी क्रांति से पहले की तुलना में आज विभिन्न वैज्ञानिक, साहित्यिक, खेल और कलात्मक क्षेत्रों में महिलाओं की प्रगति दस बराबर से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि हम अभी भी देश का वास्तविक अर्थों में इस्लामीकरण नहीं कर पाए हैं और देश आधा-अधूरा इस्लामी है, लेकिन उसके बावजूद यह सफलताएं प्राप्त हुई हैं और यदि इस्लाम को पूरी तरह से लागू किया गया, तो यह सफलताएं कई गुना बढ़ जाएंगी। अपने भाषण के अंत में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने आगामी फ़रवरी महीने के महत्वपूर्ण चुनावों का ज़िक्र करते हुए समाज और परिवार में इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि घर में आपकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अपने पती और बच्चों को चुनाव और शोध के मुद्दे पर सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करना है, क्योंकि कुछ ऐसे मुद्दे हैं, विशेष रूप से लोगों की पहचान, रणनीतियों और धाराओं को पहचानने सहित कुछ अन्य मुद्दे भी हैं कि जिसे पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक सटीक और बारीकी से देखती हैं। इसलिए, आप चुनाव में शामिल उम्मीदवारों को पहचानने और परिवार के सदस्यों को मतदान पेटियों तक ले जाने के लिए प्रोत्साहित करने में आप (महिलाएं) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। (RZ)

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