किरमान आतंकी हमला, दाइश ने ली ज़िम्मेदारी, लेकिन असली ज़िम्मेदार कौन?
(last modified Fri, 05 Jan 2024 09:42:58 GMT )
Jan ०५, २०२४ १५:१२ Asia/Kolkata

ईरान के किरमान प्रांत में शहीद जनरल क़ासिम सुलेमानी की बरसी के मौक़े पर आतंकवादी हमले की योजना, ज़ायोनी शासन ने बनाई थी और इस हमले को आईएसआईएस यानी दाइश के तकफ़ीरी एजेंटों की मदद से अंजाम दिया गया।

किरमान प्रांत में प्रतिरोध के शहीदों के मज़ारों की ओर जाने वाले रास्ते पर आतंकवादी हमले के एक घंटे बाद ही मीडिया में हमले का आरोप ज़ायोनी शासन पर लगाया जाने लगा और इस जघन्य अपराध पर ईरान के मुंहतोड़ जवाब के बारे में गंभीर अटकलें लगाई जाने लगीं। जब हम इस हमले में इस्राईल के लिप्त होने का दावा कर रहे हैं तो हमें अपने दावे पर दलील भी पेश करनी होगी।  

इस कार्रवाई के ख़तरनाक परिणामों से बचने के लिए हमले के कुछ घंटों बाद, ज़ायोनी शासन ने आईएसआईएस के ख़लीफ़ा को इस हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने का आदेश दिया जबकि इस हमले के कुछ ही मिनट बाद ही ज़ायोनी शासन के  कुछ अधिकारियों और इससे जुड़े तंत्रों की टिप्पणियां सामने आने लगीं और इन टिप्पणियों से ही पता चलने लगा कि ईरानी जनता के ख़िलाफ़ इस हमले का मुख्य ज़िम्मेदार ज़ायोनी शासन है।

यह गुत्थी उस समय खुली जब किरमान के गुलज़ारे शोहदा क़ब्रिस्तान के रास्ते पर हमले के अपराध को स्वीकार करने में आईएसआईएस के इस बयान में और इस तकफ़ीरी ग्रुप के दूसरे बयानों में काफ़ी बुनियादी अंतर पाए गये और हम इनमें से कुछ मतभेदों की ओर इशारा करते हैं।

सबसे पहली बात तो यह कि आईएसआईएस या दाइश द्वारा अपने बयानों में "ईरान" शब्द का इस्तेमाल करने का कोई इतिहास नहीं है बल्कि यह तकफ़ीरी ग्रुप हमेशा ईरान को "बेलादे फ़ार्स" या "विलायते ख़ुरासान" कहता है।

दूसरी बात यह है कि कार्यवाही के दौरान मारे गए आतंकवादी की तस्वीर धुंधले रूप में जारी करने की कोई मिसाल नहीं है!

तीसरी बात यह है कि आईएसआईएस कार्यवाहियों की जिम्मेदारी स्वीकार करने का बयान कभी भी 30 घंटे की देरी से जारी नहीं करता बल्कि हर कार्यवाही से पहले आईएसआईएस अपनी बैय्यत या निष्ठा की प्रतिज्ञा और ज़िम्मेदारी स्वीकार करने के बयान की तस्वीरें भी तैयार करता है और उसे हमले के तुरंत बाद जारी कर देता है। मूल रूप से,  कार्यवाही करने के लिए आईएसआईएस का तरीक़ा पहले धमकी, फिर फ़तवा और फिर कार्यवाही और उसके बाद कार्यवाही की ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए तुरंत बयान जारी करना है जबकि इस कार्यवाही में  आरंभ में एक आतंकवादी हमला हुआ और फिर फ़तवा, धमकी और बयान देरी से जारी किया गया!

चौथी बात यह है कि इस बयान का राजनीतिक साहित्य है जो मूल रूप से आईएसआईएस के सामान्य साहित्य से अलग है और इससे यह स्पष्ट है कि बयान तैयार करने वाला किसी भी तरह से आईएसआईएस नहीं था।

वास्तव में, दाइश ने किरमान में आतंकवादी घटना की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने में देरी के साथ जो बयान जारी किया था, वह ज़ायोनी शासन की ख़ुफ़िया एजेन्सी द्वारा तैयार किया गया था और दाइश का ख़लीफा केवल अपने आधिकारिक मीडिया के माध्यम से इसे जारी करने का ही ज़िम्मेदार था।

ज़ायोनियों का यह कृत्य, सबसे पहले अपने कृत्यों के दुष्परिणामों के डर और भय को दर्शाता है और यह भी साबित करता है कि तकफ़ीरी-आतंकवादी गुट आईएसआईएस वास्तव में ज़ायोनी शासन का एक चेला और हथकंडा है। (AK)

 

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