ईरान के विरुद्ध अमरीका के हाईब्रिड युद्ध के आयाम/ वैश्विक प्रतिरोध की विचारधारा के विरुद्ध उपनिवेशवाद का संघर्ष
पार्सटुडे- पश्चिम की औपनिवेशिक प्रवृत्ति के कारण उसकी वर्चस्ववादी नीतियों के कट्टर विरोधी के रूप में ईरान पर पश्चिमी वर्चस्ववाद प्रक्रिया की ओर से दबाव डालने वालों के प्रमुख की हैसियत से संयुक्त राज्य अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र ईरान की शासन व्यवस्था को गिराने के लिए अबतक यथासंभव प्रयास किये हैं।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के गठन के समय से ही इन हथकण्डों को विभिन्न रूपों में अलग-अलग तरह से प्रयोग किया जाता रहा है जैसे विध्वंस और राजनीतिक अस्थिरता, प्रतिबंधों के माध्यम से आर्थिक दबाव डालना, गोपनीय ढंग से हत्याएं करना, छापामार गुटों का समर्थन, सैन्य कार्यवाहियां, ईरान के विरुद्ध अतिक्रमण करने वालों का समर्थन, साइबर युद्ध, ईरान पर मानवाधिकारों के हनन के झूठे आरोप और सांस्कृतिक आक्रमण आदि।
जटिल प्रतिबंध कई आयामों वाले आर्थिक प्रतिबंध ही इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध युद्ध के जटिल और एक संयुक्त पैटर्न की पुष्टि करते हैं।
संयुक्त युद्ध की एक विशेषता, विगत में उसके आदर्श का न होना है। इस तरह का युद्ध वास्तव में विगत के आदर्शों के अधीन नहीं होता बल्कि यह कुछ महत्वपूर्ण एंव विशिष्ट सिद्धांतों की एक श्रंखला का हिस्सा होता है जिसको प्रयोग करके टारगेटेड समाज को लक्ष्य बनाना होता है।
इस संबन्ध में हाईब्रिड युद्ध के घटकों का विशेलेषण करके यह नतीजा निकाला जा सकता है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध युद्ध का आदर्श, उन्नत और विशिष्ट माडेल है जो विशेष सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के उद्देश्य से जटिलतम सूचनाओं पर आधारित है।
इसका एक उदाहरण ईरान में अराजकता और अशांति फैलाने के लिए अमरीका की ओर से सद्दाम का समर्थन करके आठ वर्षीय युद्ध थोपना और साथ ही आतंकवादी गुट मुजाहेदीने ख़ल्क़ का समर्थन करना।
अमरीकी रक्षामंत्रालय की डाक्ट्रीन में गोपनीय आपरेशनों को आपस में जुड़े तीन आयामों में रखा गया है जो लगातार लोगों, संगठनों और व्यवस्थाओं के साथ संपर्क में रहते हैं। यह तीन आयाम हैं भौतिक, सूचनाएं और पहचान।
भौतिक आयाम ही सबसे प्रमुख आयाम है जो मुख्य फैसले लेता है। सूचनाओं से संबन्धित विभाग सूचनाओं को एकत्रित करने, उनके पंजीकरण, उनके वितरण और उनकी सुरक्षा से संबन्धित होता है। तीसरा आयाम लोगों की ओर संकेत करता है। इसमें वास्तव में उसका दिमाग़ शामिल होता है जो जानकारियां एकत्रित करके उनको स्थानांतरित करता है और फिर उनको जवाब भी देता है और बाद में उसी के आधार पर काम करता है।
संयुक्त राज्य अमरीका, अवैध ज़ायोनी शासन और ब्रिटेन सहित कुछ यूरोपीय देशों पर आधारित इस्लामी गणतंत्र ईरान के शत्रुओं ने इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभिक काल में ही ईरान में मौजूद तत्वों का आर्थिक और सैनिक समर्थन करते हुए युद्ध में परोक्ष रूप में भाग लेना आरंभ कर दिया। उन्होंने ईरान को टुकड़ों में बांटने, उसे जातीय युद्ध में झोंकने, विद्रोह करवाने और नूज़े विद्रोह करवाया और तबस की घटना में हिस्सा लिया।
शत्रुओं ने मुजाहेदीन ख़ल्मक नामक आतंकी संगठन का सहयोग करते हुए इस्लामी क्रांति के नेता को हमेशा के लिए हटाने जैसी घृणित कार्यवाहियां करके इस्लामी गणतंत्र ईरान की शासन व्यवस्था को गिराने के अथक प्रयास किये। इन प्रयासों में पूरी तरह से विफल रहने के बाद ईरान पर आठ वर्षीय युद्ध थोप दिया गया।
पश्चिमी उपनिवेशवाद विशेषकर अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के बारे में जो रणनीति अपनाई वह कभी भी एक आयामी नहीं रही बल्कि वह आरंभ से ही बहुआयामी रही है। अमरीका की यह रणनीति तीन आयामों का संयोजन है भौतिक, सूचना और संज्ञानात्मक। इनको ईरान के कमज़ोर बिंदुओं और केन्द्रित किया गया है। अमरीका की इस रणनीति में ईरान के प्रभाव वाले क्षेत्रों में विविध प्रकार के दबाव बनाने, अशांति फैलाने, तोड़फोड़ करवाने, साइबर युद्ध तथा युद्ध भड़काने जैसे कृत्यों को शामिल किया गया है।
एसा लगता है कि मुख्य लक्ष्य इस्लामी गणतंत्र ईरान की शासन व्यवस्था को बदलना या फिर उसको गिराना है। स्पष्ट सी बात है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध पश्चिमी दबाव की नीति और ट्रम्प सहित कई अमरीकी राष्ट्रपतियों के क्रियाकलापों को हाईब्रिड युद्ध के संदर्भ में समझा जा सकता है।
सूचना तंत्र में घुसपैठ का मुद्दा, हमेशा ही ईरान के विरुद्ध अधिकतम दबाव डालने वाली दुश्मन की नीति का एक प्रमुख हथकण्डा रहा है। इन सारी बातों के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि अमरीका की ओर से ईरान के साथ वार्ता के लिए कभी-कभी दिखाई जाने वाली तत्परता भी हाईब्रिड युद्ध का ही एक भाग है जिसको वार्ता के हथियार के रूप में भी याद किया जा सकता है।
वास्तव में इस प्रक्रिया में सारे ही घटक मिलकर ईरानी राष्ट्र और ईरानी अधिकारियों के लिए संकट पैदा करते हैं। जैसाकि ट्रम्प प्रशासन में इसका पता लग चुका था कि इस दौरान हाईब्रिड युद्ध को प्रभावी बनाने के लिए अनुकूल परिस्थतियों का विस्तार किया गया।
इस लेख को "आफ़ाक़े अमनियत" नामक वैज्ञानिक पत्रिका के एक लेख से लिया गया है जिसका शीर्षक है, "इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध पश्चिम के हाईब्रिड युद्ध की समीक्षा"
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