यूएनएससी में अमरीका फिर अलग थलग पड़ा, ईरान की घटनाओं का क्षेत्र की सुरक्षा से कोई संबंध नहीं, यूएनएससी
संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरान के दूत ने अमरीका के दबाव में शुक्रवार की रात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ईरान के ताज़ा हालात की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में अपनी अमरीकी समकक्ष को इस बात की याद दिलायी कि अमरीकी सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
ईरानी दूत ने कहा कि अमरीकी सरकार दुनिया वालों की नज़र में नैतिक व राजनैतिक योग्यता नहीं रखती।
इरना के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरानी दूत ग़ुलाम अली ख़ुशरो ने कहा कि सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्यों के विरोध के बावजूद इस परिषद ने ख़ुद को मौजूदा अमरीकी सरकार के हाथ का खिलौना बनने दिया और एक एसे विषय पर बैठक की जिस पर चर्चा उसके कार्यक्षेत्र में नहीं आती और इस तरह सुरक्षा परिषद ने अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा क़ायम करने में अपनी अक्षमता को ज़ाहिर कर दिया।
उन्होंने बल दिया कि सुरक्षा परिषद को चाहिए कि ईरान के आंतरिक विषय की समीक्षा करने के बजाए फ़िलिस्तीन की भूमि के लंबे समय से जारी अतिग्रहण और यमन पर तीन साल से जारी अंधाधुंध बम्बारी पर चर्चा करे लेकिन वह छोटे से छोटा काम करने में भी आजिज़ है।
ईरान के राजदूत ने देश की उन घटनाओं का उल्लेख किया जिसमें अमरीका ने सीधे तौर पर हस्तक्षेप किया था और पूछा कि उन घटनाओं पर सुरक्षा परिषद ने बैठक क्यों नहीं की थी। ग़ुलाम अली ख़ुशरो ने गिनवाया कि अमरीका ने 1953 में तत्कालीन ईरानी प्रधान मंत्री के ख़िलाफ़ विद्रोह रचा, ईरान के ख़िलाफ़ इराक़ के बासी शासन द्वारा थोपी गयी आठ वर्षीय जंग में इस शासन का समर्थन किया और जुलाई 1988 में फ़ार्स खाड़ी में ईरानी मुसाफ़िर विमान को अमरीकी मीज़ाईल से गिराया गया था जिसमें 66 बच्चों सहित 290 बेगुनाह मुसाफ़िर मारे गए थे।
इसी प्रकार ईरानी दूत ने अमरीका में इस देश की सरकार के हाथों विगत में हुए अपराध गिनवाए, जैसे 2011 में वाल स्ट्रीट आंदोलन का दमन, 1993 में टक्सस राज्य के वाकू में डेविड संप्रदाय के ठिकाने पर एफ़बीआई के हमले और 83 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या और 1970 में केन्ट विश्वविद्यालय के छात्रों के विरोध प्रदर्शन पर राष्ट्रीय गार्ड के हमले और छात्रों के जनसंहार की घटना। (MAQ/N)