तालेबान से वार्ताः अफ़ग़ानिस्तान में ईरान की भूमिका का नया रुख़
(last modified Tue, 08 Jan 2019 15:20:11 GMT )
Jan ०८, २०१९ २०:५० Asia/Kolkata
  • तालेबान से वार्ताः अफ़ग़ानिस्तान में ईरान की भूमिका का नया रुख़

अबू धाबी में अमरीकी अधिकारियों और तालेबान के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता होने के कुछ ही दिन बाद ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शमख़ानी ने काबुल की यात्रा और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हम्दुल्लाह मुहिब्ब से मुलाक़ात के साथ ही घोषणा की कि तालेबान से बातचीत हो रही है।

उनका कहना था कि अफ़ग़ान सरकार को विश्वास में लेकर ईरान ने तालेबान से वार्ता की है जिसका उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा समस्याओं का समाधान है।

तालेबान से ईरान की वार्ता के क्या आयाम हैं और वार्ता में किन विषयों को उठाया गया है यह अपनी जगह महत्वपूर्ण है मगर खुद इस वार्ता का एलान भी विशेष महत्व रखता है क्योंकि इससे ईरान के नए रुख़ का पता चलता है। नया रुख अफ़ग़ान सरकार के साथ सहयोग के साथ ही क्षेत्र में शांति स्थापना पर केन्द्रित है।

यह सवाल महत्वपूर्ण है कि ईरान ने इस समय तालेबान से वार्ता क्यों की?

हालिया महीनों में हमने देखा कि अफ़ग़ानिस्तान में हमले तेज़ हुए हैं और इन हमलों की ज़िम्मेदारी दाइश ने स्वीकार की है। कई महीनों से यह बात हो रही है कि दाइशी आतंकी इराक़ और सीरिया से अफ़ग़ानिस्तान भाग रहे हैं और हालिया महीनों के धमाकों से पता चलता है कि अफ़ग़ानिस्तान में दाइश की ताक़त बढ़ी है। यहां यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अफ़ग़ानिस्तान में दाइश की शक्ति बढ़ना ईरान तथा अन्य पड़ोसी देशों के लिए चिंता का विषय है और ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस विषय की गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए अमरीका तथा क्षेत्र के कुछ देशों की इस ख़तरनाक साज़िश पर अंकुश लगाने के लिए व्यवहारिक क़दम उठाना शुरू कर दिया है।

इस समय तालेबान से ईरान की जो वार्ता हुई है वह संभावित रूप से इस बारे में है कि यदि दाइश ने ईरान के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही करने की कोशिश की तो ईरान तालेबान के सहयोग से दाइश का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुक़ाबला करेगा। इस संदर्भ में ईरान का संदेश पूरी तरह स्पष्ट है। ईरान अपने पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में आंतरिक बातचीत से शांति स्थापित करने की कोशिश में है और इस देश में दाइश का अस्तित्व किसी भी हालत में वह बर्दाश्त नहीं करेगा।

दूसरी बात यह है कि अमरीका, सऊदी अरब और इमारात ने पाकिस्तान के सहयोग से एक ग्रुप बनाया है जो तालेबान से बातचीत कर रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में यह सहमति तो बनी है कि शांति की स्थापना होनी चाहिए साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर भी यही राय पायी जाती है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति की स्थापना ज़रूरी है। इस संदर्भ में यह माना जा सकता हे कि ईरान, रूस, चीन और संभावित रूप से भारत की ओर से कोशिश होगी कि अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के साथ सहयोग करते हुए और किसी सीमा तक पाकिस्तान से भी समन्वय बनाकर अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए प्रयास किया जाए।

ईरान की रणनीति यह है कि शांति वार्ता अफ़ग़ान सरकार और तालेबान के बीच हो तथा इस प्रक्रिया में बाहरी शक्तियों को हस्तक्षेप का मौक़ न दिया जाए।

ईरान ने यह संदेश दे दिया है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमरीका के चले जाने के बाद वह अफ़ग़ानिस्तान में शांति की स्थापना में पूरी गंभीरता और पारदर्शिता के साथ काम करना चाहता है। ईरान ने यहां यह भी दर्शा दिया है कि ज़रूरत पड़ने पर वह उन गुटों को भी वार्ता की मेज़ पर ला सकता है जो ईरान से वैचारिक तालमेल नहीं रखते।

ईरान ने इराक़ और सीरिया में शांति की बहाली में अपनी निर्णायक भूमिका अदा करने के बाद अब अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए जो कोशिश शुरू की है वह साबित करती है कि ईरान क्षेत्रीय शांति में एक स्तंभ की भूमिका रखता है।

 

मुहम्मद नीकबख़्श

वरिष्ठ ईरानी टीकाकार

 

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