Aug १४, २०२३ १७:१३ Asia/Kolkata
  • आख़िर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों को क्यों नहीं लगता डर? हज़रत ज़ैनब ने किस लिए खाई थी सौगंध?

जैसे-जैसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों का चेहलुम क़रीब आ रहा है वैसे-वैसे हुसैनियों के दिलों की धड़कनें तेज़ी होती जा रही हैं। यह ऐसा मौक़ा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा रखने वाला हर व्यक्ति यह चाहता है कि वह अरबईन के दिन पवित्र नगर कर्बला में मौजूद रहे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के कथनों में बताया गया है कि मोमिन की एक निशानी, अरबईन की ज़ियारत है। 

इमाम हुसैन के चेहलुम के दिन कर्बला में उपस्थिति का अपना एक विशेष महत्व है।  हालांकि हदीसों की किताबों में साल के कुछ विशेष दिनों के लिए ख़ास चीज़ें और दुआओं को बयान किया गया है, लेकिन इमाम हुसैन के चेहलुम का विषय इन सबसे बिल्कुल अलग है।  अरबईन के दिन विश्व के कोने-कोने से इमाम हुसैन के श्रद्धालु कर्बला पहुंचते हैं।  वे लोग मीलों दूर का सफर तय करके पूरी निष्ठा और हर प्रकार के ख़तरों को अनदेखा करते हुए पवित्र नगर कर्बला आते हैं।  इनमे बहुत से इमाम के चाहने वाले एसे भी हैं जो दसियों नहीं बल्कि सैकड़ों मील का सफ़र तय करके कर्बला पहुंचते हैं।  यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि हर तरह के ख़तरे को मोल लेकर लोग विश्व के विभिन्न हिस्सों से चेहलुम या अरबईन के दिन कर्बला क्यों पहुंचते हैं? इस सवाल के वैसे तो कई जवाब हैं लेकिन जहां तक हुसैनियों की बात है तो उनका यह मानना है कि यदि इमाम हुसैन का बलिदान न होता तो इस समय सही या शुद्ध इस्लाम मिट गया होता।  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में अपनी और अपने परिजनों की क़ुर्बानी देकर वास्तविक इस्लाम की रक्षा की और इसे बचा लिया।  इस बारे में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि इमाम हुसैन ने इस्लाम को अज्ञानता और पथभ्रष्टता से बचाने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया और मुट्ठी भर पथभ्रष्ट लोगों ने इमाम का विरोध करते हुए उन्हें शहीद कर दिया।  इमाम हुसैन ने मानवता की रक्षा करते हुए ईश्वर की राह में तन, मन,धन सबकुछ लुटा दिया।

सीरिया में यज़ीद की हुकूमत थी जहां उसका महल था।  जब इमाम हुसैन और उनके साथी कर्बला में शहीद कर दिए गए तो यज़ीद ने उनके परिजनों को सीरिया बुलवाया।  जब सीरिया में यज़ीद के दरबार में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजन पहुंचे तो यज़ीद ने बड़े ही घमण्ड में इमाम के बारे में कुछ अपशब्द कहे।  इसके जवाब में इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब ने अपने भाषण में कहा कि ईश्वर की सौगंध तू चाहे कोई भी चाल चले लेकिन तू कभी भी हमारी याद को दिलों से निकाल नहीं सकता। सच्चाई यह है कि  कूफ़े और शाम में हज़रत ज़ैनब और इमाम सज्जाद के भाषणों से लोगों को धीरे-धीरे वास्तविकता का पता चलने लगा था किंतु लोग उमवी शासकों के अत्याचारों के डर से अपने मन की बात कहने से भयभीत थे। 20 सफ़र अर्थात चेहलुम के दिन इमाम के परिजनों का क़ाफेला, शाम से मदीने की वापसी में कर्बला पहुंचा।  चेहलुम के दिन जाबिर बिन अब्दुल्लाह, अतिया ऊफ़ी और बनी हाशिम के कुछ लोग कर्बला में उपस्थित थे।  इस प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पहला चेहलुम कर्बला में इमाम की क़ब्र पर मनाया गया। पवित्र क़ुरआन में मोमिनों से कहा गया है कि वे “अय्यामुल्लाह” को याद रखें ताकि ईश्वर के यह महान दिन भुलाए न जा सकें।  अरबईन या इमाम हुसैन का चेहलुम भी अय्यामुल्लाह है।  चेहलुम के दिन इमाम के चाहने वाले उनके प्रति अपनी श्रद्धा और निष्ठा का भरपूर प्रदर्शन करते हैं।  इमाम हुसैन ने दुनिया को ज़ुल्म और ज़ालिम की पहचान बताने और मानवता की रक्षा की ख़ातिर अपने पूरे परिवार की क़ुर्बानी दे दी।  वे मानवता के लिए महान आदर्श हैं।  ईश्वर ने उनकी इस क़ुर्बानी के बदले मोमिनों के दिलों में उनका प्रेम भर दिया है। (RZ) 

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