Dec २४, २०२३ १४:५५ Asia/Kolkata

तीन यूरोपीय देशों के निकलने से अमरीका के नेतृत्व वाला गठबंधन अब टूटता हुआ दिखाई दे रहा है। 

लाल सागर से अवैध ज़ायोनी शासन की ओर जाने वाले जहाज़ों को यमनियों के हमलों से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से अमरीका ने एक गठबंधन बनाने की सूचना दी थी। 

अब फ्रांस, स्पेन और इटली जैसे यूरोपीय देशों की ओर से इससे निकलने के फैसले से यह गठबंधन अब बिखरता हुआ दिख रहा है।  फ्रांस, स्पेन और इटली जैसे यूरोपीय देशों ने आधिकारिक रूप में अमरीका की ओर से बनाए जाने वाले Operation Prosperity Guardian नामक गठबंधन से अलग होने का एलान किया है। 

इन देशों ने इस गठबंधन को अपने युद्धपोत देने से भी इन्कार कर दिया है।  इन तीनों यूरोपीय देशों ने एलान किया है कि वे केवल संयुक्त राष्ट्रसंघ, नेटो या फिर यूरोपीय संघ द्वारा बनाए गए गठबंधन में ही कार्यवाही कर सकते हैं अमरीका के साथ नहीं।  इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन के कान में यह बात पहुंचा दी गई थी कि कोई भी तुम्हारे बहुराष्ट्रीय टास्क फोर्स को महत्व नहीं दे रहा है। 

अब तीन यूरोपीय देशों की ओर से इस गठबंधन के साथ सहयोग न करने के फैसले ने इसके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।  हालांकि कुछ समय पहले पेंटागन ने एलान किया था कि हम जो समुद्री गठबंधन बना रहे हैं उसमें बीस देश आ चुके हैं।  उन्होंने देशों के नाम की घोषणा नहीं की थी।  आस्ट्रेलिया तो पहले ही इस गठबंधन में भाग लेने से इन्कार कर चुका है। 

यमन की सेना ने ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध का समर्थन करते हुए लाल सागर और बाबुल मंदब जलडमरू मध्य में ज़ायोनियों के कई जहाज़ों पर हमले किये थे।  यमन की नौसेना ने एलान कर रखा है कि जबतब ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनियों के पाश्विक हमले रुक नहीं जाते उस समय तक वे ज़ायोनी हितों को लक्ष्य बनाते रहेंगे। 

अवैध ज़ायोनी शासन ने लाल सागर में अपने जहाज़ों की सुरक्षा के लिए अमरीका से गुहार लगाई थी।  इसी गुहार को सुनकर अमरीका ने एक समुद्री गठबंधन तैयार करने का फैसला किया था जो अब टूटता हुआ दिखाई दे रहा है।  यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य मुहम्मद अली अलहूसी कह चुके हैं कि अमरीका की ओर से बनाए जाने वाले समुद्री गठबंधन का उद्देश्य, इस्राईल की रक्षा करना है न कि अन्तर्राष्ट्रीय जहाज़रानी की सुरक्षा करना।  अलहूसी ने कहा कि उनका देश अमरीका के हर हमले का जवाब देने में सक्षम है। 

यमनियों के हमलों से इस्राईल का वह व्यापार 90 प्रतिशत से अधिक प्रभावित हुआ है जो समुद्री मार्ग से किया जाता है।  अब नेटो के तीन सदस्य देशों की ओर से अमरीका के समुद्री गठबंधन से निकलने का फैसला, वाशिग्टन पर उनके अविश्वास को दर्शाता है। 

यमन के हमलों के बारे में मध्यपूर्व मामलों के एक टीकाकार मजीद सफाताज का कहना है कि ग़ज़्ज़ा पर हमलों के बाद अंसारुल्ला, लाल सागर को अवैध ज़ायोनी शासन के विरुद्ध दबाव के एक हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रहा है।  इसी दबाव के कारण जहाज़रानी की 50 प्रतिशत से अधिक कंपनियां, अपने मार्ग को परिवर्तित कर चुकी हैं।  बहुत सी कंपनियों ने इस्राईल के लिए सामान ले जाने में अक्षमता का प्रदर्शन किया है।  यह काम ज़ायोनियों के लिए आर्थिक दृष्टि से बहुत ही हानिकारक सिद्ध हो रहा है।

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