Jan ३१, २०२४ १६:३८ Asia/Kolkata

सात अक्तूबर से अलअक्सा तूफान आंदोलन आरंभ हुआ है यानी लगभग चार महीनों से यह आंदोलन जारी है और इस दौरान इस्राईल और उसके मुख्य समर्थक अमेरिका ने फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के खिलाफ किसी प्रकार की बर्बरतापूर्ण में संकोच से काम नहीं लिया है।

26 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी शहीद और 65 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं परंतु मानवाधिकारों का राग अलापने वाले इस्राईल की पाश्विक कार्यवाहियों का समर्थन कर रहे हैं और इस्राईल की बर्बरता का औचित्य दर्शाने के लिए कहते हैं कि इस्राईल को आत्मरक्षा का अधिकार प्राप्त है।

क्या किसी ने अब तक यह सोचा कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय और पश्चिमी देश इस्राईल का व्यापक समर्थन क्यों कर रहे हैं? इस्राईल के समर्थन में ये देश अंधे हुए हैं और अपने कृत्यों पर शर्मिन्दा होने के बजाये ये देश इस्राईल के नरसंहार का औचित्य दर्शा रहे हैं और पूरी ताकत के साथ इस्राईल के समर्थन में खड़े हैं।

इसकी एक वजह यह है कि इन देशों में यहूदियों व ज़ायोनियों का प्रभाव व पकड़ बहुत अधिक है। दूसरे शब्दों में इन देशों में रहने वाले यहूदी और जायोनी पूंजीपति हैं, वे बहुत सी कंपनियों के मालिक हैं और इसी प्रकार आधुनिकतम तकनीक पर भी उनका आधिपत्य है। इन देशों में रहने वाले यहूदी और जायोनी अगर अपनी पूंजी निकाल लें तो इन देशों के विकास की उल्टी गिनती आरंभ हो जायेगी। यद्यपि जनसंख्या की दृष्टि से यहूदी और जायोनी इन देशों में ईसाईयों से बहुत कम हैं परंतु इन देशों में उनकी पकड़ ईसाईयों से भी अधिक है। पकड़ के लिए जनसंख्या में अधिक होना ज़रूरी नहीं है। भारत की मिसाल सामने है। आरएसएस जनसंख्या की दृष्टि भारत की कुल जनसंख्या के मुकाबले में दो प्रतिशत भी नहीं है मगर आज भारत की राजनीति में उसकी क्या पकड़ है? यह किसी से ढ़का छिपा नहीं है।

अमेरिका, ब्रिटेन, पश्चिमी और यूरोपीय देश इस्राईल का जो समर्थन कर रहे हैं उसकी एक वजह है कि इस्राईल इन देशों के लिए हथियारों की मंडी ढ़ूंढने का काम करता है। इस्राईल कभी सूडान पर, कभी इराक पर, कभी मिस्र, कभी जार्डन पर हमला करता है और इस समय वह लेबनान और सीरिया पर भी हमले कर रहा है। सीधी सी बात है कि जब किसी भी देश पर हमला होगा तो वह देश अपनी रक्षा के लिए हथियार खरीदेगा और अमेरिका, पश्चिमी व यूरोपीय देश हथियारों के सबसे बड़े विक्रेता हैं और अगर इन देशों का हथियार नहीं बिकेगा तो इन देशों में हथियारों का निर्माण करने वाली कंपनियां बंद हो  जायेंगी या ठप्प पड़ जायेंगी इसलिए कुछ देशों में युद्ध व अशांति का होना ज़रूरी है ताकि इन देशों के हथियारों की बिक्री हो सके और ये देश मुनाफा कमा सकें और शांति व सुरक्षा स्थापित करने के बहाने ये देश विशेषकर अमेरिका और ब्रिटेन अपनी अवैध उपस्थिति का औचित्य दर्शा सकें। सीरिया की मिसाल सामने हैं। आतंकवाद से मुकाबले के बहाने अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी गठबंधन बनाया और अब वह सीरिया की सरकार के बुलाये बिना सीरिया में मौजूद है।

रोचक बात यह है कि सीरिया ने बारमबार अपने देश से अमेरिका के निकल जाने का आह्वान किया है पंरतु अमेरिका ने आतंकवाद से मुकाबले के बहाने उसके तेल के कुंओं पर कब्ज़ा कर रखा है। दूसरे शब्दों में अमेरिका सीरिया की राष्ट्रीय संपत्ति का दोहन व शोषण कर रहा है। सारांश यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय और पश्चिमी देश जो अंधे होकर इस्राईल के जघन्य अपराधों का समर्थन कर रहे हैं उसकी मुख्य वजह इन देशों में यहूदियों व जायोनियों की पकड़ और इन देशों के हित हैं। MM 

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