Apr १६, २०२४ ०९:२७ Asia/Kolkata
  • इस्राईली उपनिवेशवाद, मैल्कम एक्स की नज़र में ज़ायोनीवाद दुनिया के लिए ख़तरा है

मैल्कम एक्स का मानना था कि ज़ायोनी समझते हैं कि उन्होंने अपने नए उपनिवेशवाद को बड़ी ही चालाकी से छिपा लिया है और इसे "अधिक उदार" और "मानवीय" बना दिया है।

5 सितंबर, 1964 को मैल्कम एक्स ने ग़ज़ा की दो दिवसीय यात्रा की, जो उस समय मिस्र के नियंत्रण में था। इन दो दिनों के दौरान, मैल्कम ने ख़ान यूनिस शरणार्थी कैम्प और एक स्थानीय अस्पताल का दौरा किया और ग़ज़ा के लोगों से मुलाक़ात की।

ग़ज़ा में ख़ुदा की रूह

एक्स की इन मुलाक़ातों में अचानक और सबसे ज़्यादा प्रभावशाली मुलाक़ात मशहूर फ़िलिस्तीनी शायर हारून हाशिम रशीद के साथ हुई। इस मुलाक़ात में रशीद ने एक दशक पूर्व स्वेज़ संकट के दौरान इस्राईली सेना के हाथों हज़ारों फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार का भयानक अनुभव साझा किया। एक्स पर इस घटना का बहुत गहरा असर हुआ और उन्होंने रशीद की शायरी की भी तारीफ़ की।

एक्स ने ग़ज़ा की धार्मिक हस्तियों से भी मुलाक़ात की और उनके साथ नमाज़ भी अदा की। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा हैः मैंने ग़ज़ा में ख़ुदा की रूह को शिद्दत से महसूस किया है।

ख़ुफ़िया उपनिवेशवाद

ग़ज़ा की यात्रा के बाद, एक्स ने ज़ायोनीवाद के बारे में अपना सबसे मशहूर लेख लिखा। एक मशहूर मिस्री अख़बार में 17 सितम्बर 1964 को ज़ायोनीवादी तर्क को प्रकाशित किया गया, जिसमें ज़ायोनीवाद की कड़ी आलोचना की गई थी और ज़ायोनीवाद को न सिर्फ़ फ़िलिस्तीन बल्कि उससे भी बड़ा ख़तरा क़रार दिया गया। एक्स ने इस लेख में लिखाः

ज़ायोनियों को मानना है कि उन्होंने अपने नए उपनिवेशवाद को चालाकी से छिपा लिया है और उसे अधिक उदार और मानवीय बना दिया है। अपने शासन में वे अपने संभावित पीड़ितों को सिर्फ़ आर्थिक सहायता या अन्य आकर्षक उपहारों के प्रस्तावों के ज़रिए नियंत्रित करते हैं।

दूसरी ओर, नए स्वाधीन अफ़्रीक़ी देशों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं, इसीलिए कई अफ़्रीक़ी देशों में इस्राईल का वर्चस्व और हस्तक्षेप, 18वीं सदी के यूरोपीय उपनिवेशकों की ताक़त से भी कहीं अधिक है। नया ज़ायोनीवादी उपनिवेशवाद, रूप और शैली में अलग है, लेकिन प्रेरणा और उद्देश्य के संबंध में बिल्कुल नहीं बदला है।

उसके बाद एक्स यूरोपीय उपनिवेशवादियों और इस्राईल के बीच समानताओं का ज़िक्र करते हैं। उनका मानना था कि ज़ायोनीवाद और यूरोपीय उपनिवेशवाद के बीच गहरा संबंध है। उन्होंने इस ख़तरनाक उपनिवेशवाद से मुलाक़ाबले के लिए दुनिया भर के नेताओं से एकजुट होने की अपील की और उपनिवेशवादियों के झूठे प्रस्तावों को रद्द करने का आहवान किया।

अफ़्रीक़ा के लिए चिंता

जेनेवा स्थित इस्लामी केन्द्र के जनरल सेक्रेटरी ने जीवन, ईमान और भविष्य को लेकर आशावादी होने के बारे में 9 सवाल मैल्कम एक्स को भेजे थे, जिनका उन्होंने स्पष्ट और सटीक जवाब दिया। आख़िरी सवाल का जवाब 21 फ़रवरी 1965 की सुबह लिखा गया था। कहा जाता है कि एक्स के क़लम से लिखी गई वह अंतिम तहरीर थी, जिसमें इस्राईल को पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बताया गया है।

सवालः ऐसा लगता है कि अफ़्रीक़ा ने आपका ध्यान अपनी ओर खींचा है, क्यों? अब जब आपने इस पूरे महाद्वीप की यात्रा कर ली है तो आपकी नज़र में इस्लाम की क्या स्थिति है? आपके विचार में इस्लाम को कुछ आधारहीन दावेदारों के कार्यों और ज़ायोनीवाद, नास्तिकता और धार्मिक कट्टरता के साज़िशी गठजोड़ से बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?

जवाबः मैं अफ़्रीक़ा को अपने पुरखों का वतन मानता हूं। सबसे पहले तो मैं इसे विदेशियों के आर्थिक और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त देखना चाहता हूं, जिन्होंने उस पर पंजे गाड़ रखे हैं और उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। अफ़्रीक़ा अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण गंभीर संकट से जूझ रहा है। उपनिवेशवादी बिना संघर्ष और युद्ध के पीछे हटने वाले नहीं हैं और उनका असली हथियार क़ौमों के बीच फूट डालनाच है। मिसाल के तौर पर पूर्वी अफ़्रीक़ी लोगों के बीच, एशिया विरोधी भावना पैदा की जाती है। इसी तरह से पश्चिमी अफ़्रीक़ा में अरबों विरोधी भावना को उभारा जाता है। जहां भी अरब या एशियाई लोग हैं, वहां मुलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाई जाती है। यह दुश्मनी लोगों की तरफ़ से नहीं है, क्योंकि उन्हें इसका कोई लाभ नहीं पहुंचता है। बल्कि पूर्वी यूरोपीय उपनिवेशवादी और वर्तमान ज़ायोनी इसका भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं।

ज़ायोनी हमारी सरज़मीन से सबसे ज़्यादा लाभ उठा रहे हैं। वे चेहरे पर मानवीय और परोपकारी का मास्क लगाकर यहां आते हैं, जिसके कारण उनकी साज़िशों की बलि चढ़ने वाले उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। क्योंकि अरब समाज की तस्वीर, इस्लाम की तस्वीर से जुदा नहीं की जा सकती है, इसलिए अरब जगत की ज़िम्मेदारी कई गुना है, जिसे उसे पूरा करना चाहिए।

इस्लाम भाईचारे का धर्म है

इस्लाम भाईचारे और एकता का धर्म है और जो लोग इस ईश्वरीय धर्म का संदेश आगे बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें भाईचारे और एकता की मूर्ति होना चाहिए। क़ाहिरा और मक्का को एक धार्मिक सम्मेलन आयोजित करना चाहिए और इस्लामी जगत की समस्याओं और वर्तमान स्थिति को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए।

दूसरी स्थिति में मुस्लिम जवानों के बीच से ऐसे लोग पैदा होंगे, जो सत्ता के केन्द्रों को वर्तमान शासकों से छीन लेंगे। ख़ुदा आसानी से इस काम को अंजाम दे सकता है।

इस जवाब के लिखने के कुछ ही घंटों के बाद, 39 वर्षीय मैल्कम एक्स को न्यूयॉर्क में गोली मार दी गई। msm

 

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