Jun २७, २०१८ ०८:४७ Asia/Kolkata

सीरिया के दक्षिणी इलाक़े दरआ में सीरियाई सेना और घटक बलों ने आप्रेशन शुरू कर दिया है। इस आप्रेशन के तहत सीरियाई और रूसी युद्धक विमानों ने अन्नुस्रा फ़्रंट के ठिकानों को निशाना बनाया। यह ठिकाने दरआ शहर के आस पास तथा शहर के भीतर कुछ भागों में स्थित हैं।

सीरियाई सेना ने मुख्य रूप से उन क्षेत्रों को निशाना बनाया है जो विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले इलाक़े के बीच संपर्क पुल का काम करते हैं। इस तरह विद्रोही संगठनों के बीच बिखराव की स्थिति पैदा हो गई है। वैसे भी कुछ विद्रोही संगठनों ने सीरियाई सरकार के साथ सहमति कर ली है और वह सीरियाई सेना से मिल कर अन्नुस्रा जैसे आतंकी संगठनों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं।

दक्षिण पश्चिमी क्षेत्रों दरआ और कुनैतरा को चरमपंथियों के क़ब्ज़ा से आज़ाद कराने के लिए सैनिक आप्रेशन की कमान सीरिया के विख्यात कमांडर जनरल सुहैल हसन को सौंपी गई है जो अपनी बहादुरी और रणनैतिक दक्षता के कारण बहुत अधिक ख्याति रखते हैं।

इस इलाक़े में बताया जाता है कि लगभग 12 हज़ार विद्रोही मौजूद हैं जिन्हें सीरियाई सरकार ने यह अवसर दिया कि वह हथियार डालकर इस इलाक़े से इदलिब की ओर रवाना हो जाएं जो विद्रोहियों के नियंत्रण वाला इलाक़ा है लेकिन विद्रोहियों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जिसके बाद सीरियाई सेना ने घटकों के साथ मिलकर आप्रेशन शुरू कर दिया है।

जिस इलाक़े में आप्रशन चल रहा है उसकी सीमा जार्डन और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन से मिलती है। इस इलाक़े में मौजूद चरमपंथियों को अमरीका और इस्राईल की ओर से आर्थिक और सामरिक सहायता दी जा रही थी लेकिन जब सीरियाई सेना ने देश का 85 प्रतिशत भाग आज़ाद करा लिया है तो अब आतंकी संगठनों के अमरीका और इस्राईल जैसे समर्थक यह देख रहे हैं कि सीरिया में उनकी योजना फ़ेल हो चुकी है और अब चरमपंथी संगठनों से यह उम्मीद लगाना कि वह बश्शार असद की सरकार का तख़्ता उलट देंगे एक बड़ी भूल होगी।

सीरिया के ख़िलाफ़ मार्च 2011 से भयानक साज़िश शुरू हुई जिसका इस देश ने बड़ी बहादुरी से सामना किया। इस लड़ाई में सीरिया को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है और लाखों की संख्या में लोग मारे गए और दसियों लाख लोग बेघर हो गए।

सीरिया का संकट संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भी बहुत बड़ी विफलता है जिन्होंने इस संकट को हल करने और सीरियाई जनता और सरकार का साथ देने के बजाए उन चरमपंथी संगठनों के पक्ष में काम किया जिन्हें अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन इस्राईल इसी प्रकार सऊदी अरब, इमारात और क़तर का समर्थन प्राप्त था और जो किसी भी क़ीमत पर बश्शार असद की सरकार को ख़त्म कर देना चाहते थे।

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