अगर पैग़म्बरे इस्लाम ज़िन्दा होते तो आज वे क्या सोचते?/ पैग़म्बर और इमाम हुसैन इस समय किस चीज़ से दुःखी हैं?
(last modified 2024-07-20T12:44:42+00:00 )
Jul २०, २०२४ १८:१४ Asia/Kolkata
  • पैग़म्बरे इस्लाम के हरम का गुंबद/ इमाम हुसैन अलै. के हरम का गुंबद
    पैग़म्बरे इस्लाम के हरम का गुंबद/ इमाम हुसैन अलै. के हरम का गुंबद

पार्सटुडे- आशूरा के महाआंदोलन के दौरान हज़रत सैय्यदुश्शोहदा के जो दृष्टिकोण और जो शिक्षायें थी वे आज तक इस्लामी प्रतिरोधक बलों के दृष्टिकोणों और कार्यवाहियों में प्रभावी हैं।

कर्बला समय को पहचानने और अंतरदृष्टि की पाठशाला है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इंसान इस चीज़ को समझे कि इस समय सबसे उचित व उपयुक्त काम क्या है? यह वह चीज़ है जिससे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफ़ादार साथी पूरी तरह समृद्ध व सम्पन्न थे।

 

यहां हम इस महत्वपूर्ण बिन्दु सहित दूसरे कुछ बिन्दुओं की ओर संकेत कर रहे हैं।

 

सन् 61 हिजरी क़मरी में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों ने आशूर के दिन जो क़ुर्बानी और बलिदान पेश किया उसने मानवता को आज़ादी का मापदंड पेश किया ताकि वह ग़लत से सही और असत्य से सत्य को समझने का मार्गदर्शक बन सके। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक एतिहासिक और व्यापक चीज़ की परिभाषा कर गये और इस चीज़ के समझने से न केवल मुसलमान बल्कि ईसाई और हिन्दू भी दूसरे धर्मों के मोमिनों को सही तरह से पहचान सकते हैं।

 

अलबत्ता इस चीज़ में कोई संदेह नहीं है कि मुसलमानों के मध्य एकता में विभिन्न चीज़ें कारक हैं परंतु इस्लामी एकता व इस्लामी पहचान की रक्षा में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से मुसलमानों की श्रद्धा ने केन्द्रीय भूमिका निभाई है।

 

कुछ अध्ययनकर्ता 10 मोहर्रम को अहलेबैत और शिया आंदोलन का आरंभ मानते हैं। आशूर के बाद अत्याचार और भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन ने नई दिशा प्राप्त कर ली। हर दिन आशूरा है और हर ज़मीन कर्बला है यह मशहूर जुमला इसी वास्तविकता की ओर संकेत है। यह ऐसी चीज़ है जिसकी झलक को ईरान की इस्लामी क्रांति और पश्चिम एशिया विशेषकर इस्लामी आंदोलन और फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन में देखा जा सकता है।

 

इस संबंध में ईरान के महान बुद्धिजीवी और विद्वान उस्ताद शहीद मुर्तुज़ा मुतह्री 1390 हिजरी क़मरी में आशूर के दिन ज़ायोनिज़्म के ख़िलाफ़ अपने एतिहासिक भाषण में ईरानी शाह को संबोंधित करते हुए कहते हैं"

क्या तू अल्लाह और रसूल के निकट कोई मूल्य व महत्व पैदा करना चाहता है? अगर तू मूल्य व महत्व पैदा करना चाहता है तो तुझे भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना चाहिये, सहानुभूति रखनी चाहिये, इस्लामी भाईचारे को ज़िन्दा करना चाहिये। निश्चेत व कमज़ोर रहने और लाओबालीपन से परहेज़ करना चाहिये। यह निश्चेतना और लापरवाही किस लिए कर रहा है? यह इसलिए है कि जागरुक न रहे और न समझे, न जाने, कमज़ोर रहे और क़ुद्रत व ताक़त न रहे।

 

ज्ञात रहे कि ईरान की शाही सरकार ने आशूर के दिन 1390 हिजरी क़मरी को उस्ताद शहीद मुर्तुज़ा मुतह्री को गिरफ़्तार कर लिया था।

 

वह कहते हैं कि अगर पैग़म्बरे इस्लाम ज़िन्दा होते तो आज वे क्या सोचते? मैं क़सम खाकर कहता हूं कि पैग़म्बरे इस्लाम आज अपने पवित्र रौज़े में यहूदियों से दुःखी हैं। यह ऐसी चीज़ है जिसने पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बहुत दुःखी कर रखा है। मामला यह है। अगर हम स्वयं को और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी को महत्व देना चाहते हैं तो हमें सोचना चाहिये कि अगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आज होते तो कहते कि अज़ादारी में किस चीज़ का नारा लगाते हो? निःसंदेह कहते कि अगर मेरे लिए अज़ादारी कर रहे हो, मातम कर रहे हो, ज़ंज़ीर कर रहे हो तो तुम्हारा आज का नारा फ़िलिस्तीन होना चाहिये। आज का शिम्र इस्राईल का प्रधानमंत्री Moshe Dayan है। शिम्र 13 सौ साल पहले मर गया। आज के शिम्र को पहचानना चाहिये।

 

पैग़म्बरे इस्लाम की शरीअत को बचाने के लिए आंदोलन

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से शरीअत की रक्षा की और शरीअत की हिफ़ाज़त करके एकता की रक्षा की। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सामना यज़ीद से हो गया था इसके बावजूद उन्होंने जंग आरंभ नहीं की। जब लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्लाम को बुलाया तो उन्होंने लोगों के निमंत्रण को क़बूल किया और जब बुलाने वालों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साथ छोड़ दिया तो आपने मदीना लौटने का इरादा किया मगर जब लौटने का रास्ता बंद कर दिया तो उन्होंने आत्म रक्षा की। कर्बला के मैदान में जंग की हालत में तमीम बिन क़हत्बा ने जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से पूछा कि हे अली के बेटे! कब तक दुश्मनी को जारी रखोगे? तो इमाम ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि क्या मैं तुमसे जंग करने के लिए आया हूं या तुम लोग मुझसे जंग करने के लिए आये हो? क्या मैंने तुम्हारा रास्ता बंद किया है? या तुमने हमारा रास्ता बंद किया है? और तुमने हमारे भाइयों और बेटों को मारा है।

 

एक शुब्हे व संदेह का जवाब

मोआविया के बेटे यज़ीद ने मदीना के गवर्नर वलीद बिन अक़बा को आदेश दिया कि अगर हुसैन बैअत नहीं करते हैं तो तुरंत उनके सिर को क़लम कर दो।

 

सर क़लम करने की नीति यज़ीद की सोच का परिणाम थी न कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन का नतीजा। क्योंकि जब यज़ीद ने यह आदेश मदीना में अपने गवर्नर को दिया था तो उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कुछ भी नहीं किया था। तो जो यह कहा जाता है कि सैय्यदुश्शोहदा ने ख़ुरूज किया था या इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने बहुत बड़ी ग़लती की थी। क्योंकि इमाम हुसैन की शहादत से उम्मते इस्लामी कमज़ोर हो गयी और उसमें फ़ूट पड़ गयी और विवाद की बुनियाद रखी गयी और आज तक यह जारी है। इस बात का अतार्किक होना इस हद तक स्पष्ट है कि अहले सुन्नत के अध्ययनकर्ताओं ने भी उस पर आपत्ति जताई और उसे रद्द कर दिया है। MM

कीवर्ड्सः इमाम हुसैन कौन हैं? इमाम हुसैन ने क्यों आंदोलन किया? इमाम हुसैन और पैग़म्बरे इस्लाम कौथे और यज़ीद कौन था?

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