इस्लाम व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर क्यों देता है?
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पार्स टुडे – इस्लाम एक सामाजिक धर्म है जो इंसान की ज़िंदगी के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है, चाहे वह व्यक्तिगत पहलु हो या सामाजिक। इस दृष्टिकोण से, दोनों पहलुओं की अनदेखी के साथ जीवन न तो पूर्ण हो सकता है और न ही सुखद।
(last modified 2025-11-20T09:39:53+00:00 )
Nov २०, २०२५ १५:०६ Asia/Kolkata
  • इस्लाम व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर क्यों देता है?
    इस्लाम व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर क्यों देता है?

पार्स टुडे – इस्लाम एक सामाजिक धर्म है जो इंसान की ज़िंदगी के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है, चाहे वह व्यक्तिगत पहलु हो या सामाजिक। इस दृष्टिकोण से, दोनों पहलुओं की अनदेखी के साथ जीवन न तो पूर्ण हो सकता है और न ही सुखद।

इस्लाम कई अन्य धर्मों से इस बात में अलग है कि वह सामाजिक जीवन के पहलुओं पर अधिक ज़ोर देता है और यह स्वीकार नहीं करता कि लोग समाज के प्रति लापरवाह रहें। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस्लाम इस्लामी समाज को एक उम्मत मानता है यानी यदि समाज का कोई भाग किसी दर्द या समस्या से जूझ रहा हो, तो उसके प्रभाव से अन्य भाग भी प्रभावित होते हैं। यह दृष्टिकोण इस्लाम में सामाजिक एकजुटता के महत्व को दर्शाता है।

 

समाज में सुधार केवल सभी व्यक्तियों के सहयोग से ही संभव है। इस्लाम का मानना है कि जनता को सरकार के साथ मिलकर आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए एकजुट होना चाहिए। इस दृष्टिकोण में व्यक्ति समाज के प्रति और समाज व्यक्ति के प्रति ज़िम्मेदार है और दोनों में से कोई भी दूसरे के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। इस्लाम मनुष्यों में व्यक्तिगत और सामाजिक चेतना को जाग्रत करना चाहता है ताकि स्वार्थ और अहंकार को रोका जा सके।

 

पैग़म्बर इस्लाम ने फ़रमाया: इस्लामी समाज का हर व्यक्ति ज़िम्मेदार है और ईश्वर की नेमतों तथा अन्य मुसलमानों के साथ अपने संबंधों के बारे में उससे प्रश्न किया जाएगा। यह हदीस लोगों के बीच एकजुटता की भावना को जीवित करती है जिससे दूसरों का दुःख सबका दुःख और दूसरों की खुशी सबकी खुशी बन जाती है।

 

क़ुरआन में भी इस विषय पर ज़ोर दिया गया है। सूरह हश्र की आयतें 9 और 10 में कहा गया है:

 

और वे लोग जिन्होंने उनसे पहले घर और ईमान को अपनाया वे उन लोगों से प्रेम करते हैं जो उनकी ओर हिजरत करके आए वे दूसरों को अपने ऊपर तरजीह देते हैं, भले ही स्वयं उन्हें आवश्यकता हो और जो अपने नफ़्स की लालच से बचा लिए गए वही सफल हैं और वे लोग जो उनके बाद आए कहते हैं: ‘ऐ हमारे रब! हमें और हमारे उन भाइयों को क्षमा कर दे जो ईमान में हमसे पहले थे और हमारे दिलों में ईमान वालों के प्रति कोई बैर या किना न रहने दे। ऐ हमारे रब! तू बड़ा दयालु और रहम करने वाला है।

 

ये आयतें और रिवायतें दिखाती हैं कि इस्लाम लोगों के बीच हमदर्दी, त्याग और एकता पर अत्यधिक ज़ोर देता है। यदि हम पैग़म्बर और उनके साथियों के जीवन को देखें, तो पाते हैं कि वे हमेशा दया और करुणा के साथ दूसरों का मार्गदर्शन करते थे, उन्हें गिरने से बचाते थे और उनकी तरक़्क़ी व मुक्ति के लिए प्रयासरत रहते थे। यही एकजुटता और समझदारी की भावना मानव समस्याओं के समाधान का मार्ग है। MM