Jun २८, २०२३ ०९:३२ Asia/Kolkata
  • आजका दिन बहुत ही ख़ास है, अरफ़ा दिवस, दुआ और इबादत का दिन

आज ज़िलहिज्जा की नवीं तारीख़ और अरफ़ा दिवस है, यह दिन इबादत और दुआ के दिन के रूप में जाना जाता है।

अरफ़ा इस्लाम की बड़ी और महत्वपूर्ण ईदों में से एक है, इस दिन अगर किसी को पवित्र शहर मक्का के निकट अरफ़ात के मैदान में उपस्थित होकर दुआ करने का अवसर प्राप्त होता है, तो इसे बड़ी अनुंकपा माना जाता है। इस दिन मुसलमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और अपनी ग़लतियों के लिए माफ़ी मांगते हैं, ईश्वर अपने बंदों की फ़रियाद सुनता है और उन पर अपनी नेअमतें नाज़िल करता है। आज के दिन लाखों हाजी सफ़ैद वस्त्र धारण किए अरफ़ात के मैदान में एकत्रित होते हैं और खुले आसमान के नीचे ईश्वर से दुआ करते हैं। हाजी सूर्य के ढलने तक अरफ़ात में ठहरते हैं और मग़रिब की नमाज़ के बाद, मुज़दलिफ़ा की ओर बढ़ते हैं और हज के अन्य संस्कारों को अंजाम देते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) अरफ़े के दिन के महत्व के बारे में बताते हुए फ़रमाते हैं कि “जब लोग अरफ़ात में ठहरते हैं और अपनी मांग को गिड़गिड़ा कर पेश करते हैं तो ईश्वर फ़रिश्तों के सामने इन लोगों पर गर्व करता है और उनसे कहता है, क्या नहीं देखते कि मेरे बंदे बहुत दूर से गर्द में अटे मेरे पास आए हैं। अपना पैसा मेरे मार्ग में ख़र्च किया है और अपने शरीर को थकाया है? मैं अपनी शान की क़सम खाता हूं कि उन्हें इस तरह पाप से पवित्र कर दूंगा जिस तरह वे मां के पेट से पैदा होते हैं।” यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) बल देते हैं, “अरफ़ात में वह व्यक्ति सबसे बड़ा पापी है जो वहां से लौटे और यह ख़्याल करे कि उसे क्षमा नहीं किया गया है।” इस प्रकार हाजी हज के पहले दिन अरफ़ात के मैदान में पापों से पवित्र हो जाते हैं ताकि हाजी बनने के योग्य हो सके। (RZ)

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