ज़ायोनी सैनिकों के आए बुरे दिन
ग़ज़्ज़ा के अलमग़ाज़ी क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की कार्यवाही के दौरान दसियों ज़ायोनी सेनिक मारे गए हैं।
ग़ज़्ज़ा के केन्द्र में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की कार्यवाही में जो दसियों ज़ायोनी सैनिक मारे गए हैं उससे पूरी दुनिया में तहलका मच गया है।
ग़ज़्ज़ा युद्ध को आंरभ हुए अब 109 दिन गुज़र चुके हैं। हालिया दिन ज़ायोनी सैनिकों के लिए बहुत ही कठिन होते जा रहे हैं। ग़ज़्ज़ा के अलमग़ाज़ी क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की कार्यवाही में 21 ज़ायोनी सैनिक ढेर हो गए। इसी बीच ज़ायोनी सेना ने घोषणा की है कि पिछले चौबीस घंटों के दौरान ग़ज़्ज़ा में अन्य कार्यवाहियों में उसके 17 और सैनिक मारे गए।
हिब्रो भाषा की एक वेबसाइट के अनुसार ज़ायोनी सैनिक, फ़िलिस्तीनियों के 10 घरों को विस्फोटक पदार्थ से विस्फोटित करना चाहते थे। इसी बीच फ़िलिस्तीनियों के राकेट हमले में दो इमारतों के ढह जाने से वहां पर मौजूद सारे ज़ायोनी सैनिक मारे गए। ज़ायोनियों ने कल के दिन को इस्राईल की सेना के लिए बहुत मनहूस दिन बताया है। यह दिन उनके हिसाब से ग़ज़्ज़ा युद्ध के दौरान ज़ायोनियों के लिए बहुत अधिक नुक़सान वाला दिन सिद्ध हुआ है।
ज़ायोनी सेना ने यह सोचकर अपना कल का अभियान आरंभ किया था कि उनको किसी बड़ी रुकावट का सामना नहीं करना पड़ेगा किंतु अलमग़ाज़ी में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की ओर से की जाने वाली कार्यवाही ने अजेय कही जाने वाली ज़ायोनी सेना की गुप्तचर सेवाओं को भी सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इस कार्यवाही में अपनी विफलता को स्वयं ज़ायोनी भी स्वीकार कर रहे हैं।
अलमग़ाज़ी की घटना ने यह बात भी सिद्ध कर दी है कि ग़ज़्ज़ा अब ज़ायोनियों के लिए एसी दलदल बन गया है जिसमें वे बहुत ही बुरी तरह से फंस चुके हैं। इस युद्ध को आरंभ हुए अब तीन महीने पूरे हो चुके हैं।चौथे महीने में प्रविष्ट हो जाने के बाद अवैध ज़ायोनी शासन को ग़ज़्ज़ा में अपना एक भी लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया है।
अलमग़ाज़ी की कार्यवाही ने साबित किया है कि 109 दिनों से लगातार ज़ायोनियों के हमलों का मुक़ाबला करने के बावजूद फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं का हौसला अब भी बुलंद है। वे कम संसाधनों के बावजूद अधिक संसाधनों और आधुनिक हथियारों से लैस ज़ायोनी सेना को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। एसे में युद्ध जारी रखने की स्थिति में ज़ायोनी सैनिकों को और अधिक नुक़सान होने की संभावना पाई जाती है।
दूसरी ओर ग़ज़्ज़ा युद्ध आरंभ करने वाले नेतनयाहू को इस समय गंभीर आंतरिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। युद्ध बढ़ने के साथ ही उनके त्यागपत्र की मांग बढ़ती जा रही है। पूरी तरह से दलदल में फंसे नेतनयाहू की ओर से दबाव में आने के बाद दो महीने के संघर्ष विराम के प्रस्ताव को हमास ने ठुकरा दिया है।
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