जापान के लोगों पर परमाणु बमबारी और ग़ज़्ज़ा की जनता पर बमबारी की प्रशंसा करना एक ख़तरनाक सोच
(last modified Fri, 26 Apr 2024 10:08:18 GMT )
Apr २६, २०२४ १५:३८ Asia/Kolkata
  • जापान के लोगों पर परमाणु बमबारी और ग़ज़्ज़ा की जनता पर बमबारी की प्रशंसा करना एक ख़तरनाक सोच
    जापान के लोगों पर परमाणु बमबारी और ग़ज़्ज़ा की जनता पर बमबारी की प्रशंसा करना एक ख़तरनाक सोच

पार्स टुडेः सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने फ़िलिस्तीन की आज़ादी के लिए जारी आंदोलन की तुलना जापानी साम्राज्यवाद से करने की आलोचना करते हुए ग़ाज़्ज़ा में परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी की कड़ी आलोचना की है।

टोमोमी किनुकावा (TOMOMI KINUKAWA) एक शोधकर्ता और मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं जो मूल रूप से ईस्ट एशियाई हैं और वर्तमान में सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय के महिला और जेंडर अध्ययन विभाग में शिक्षा दे रही हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ता ने काउंटरपंच वेबसाइट पर लिखा: फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार को उचित ठहराने के लिए, बिनयामिन नेतन्याहू सहित ज़ायोनी राजनेताओं ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और जापान पर हवाई बमबारी और हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी की ओर इशारा किया है। जैसा कि इस्राईल को जारी "बिना शर्त" अमेरिकी सैन्य सहायता के ख़िलाफ़ वैश्विक आक्रोश बढ़ रहा है, अमेरिकी सांसदों ने इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के लिए अमेरिकी समर्थन और वैध मानी जाने वाली मानवीय सहायता को अवरुद्ध करने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के समान संदर्भों को फिर से लागू किया है। उदाहरण के तौर पर, मिशिगन हाउस के प्रतिनिधि टिम वाह्लबर्ग ने 25 मार्च को टाउन हॉल मीटिंग में ग़ज़्ज़ा के विनाश के बारे में खुलकर बात की और कहा कि इस पर नागासाकी और हिरोशिमा की तरह बमबारी की जानी चाहिए।

जापान पर बमबारी के साथ-साथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस देश के दो सबसे बड़े शहरों पर परमाणु बम गिराए जाने का बढ़ता संदर्भ, अमेरिकी राजनीतिक झुकाव के बावजूद एक ख़तरनाक मुद्दा है। रिपब्लिकन के खुले बयान अमेरिकी राजनेताओं की ख़तरनाक भावना को दर्शाते हैं। जापानी साम्राज्यवाद और फ़िलिस्तीन के उपनिवेशवाद-विरोधी मुक्ति आंदोलन को एक नज़रिए से देखना और उसको जोड़कर पेश करना, एक निंदनीय और ख़तरनाक कार्य है। इस सोच की ज़ोर-शोर से निंदा करनी चाहिए और इसका खंडन करना भी आवश्यक है, जिसे ज़ायोनीवादियों और श्वेत नस्लवादियों द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के बड़े पैमाने पर नरसंहार और सामूहिक विनाश के हथियारों के उपयोग को वैध बनाने के लिए प्रचारित किया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय क़ानून फ़िलिस्तीनी लोगों को अपने भाग्य की निर्धारण में अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए सशक्त प्रतिरोध सहित विरोध करने का अधिकार देता है। ज़ायोनीवादी और नस्लवादी ग़लती से फ़िलिस्तीन के उपनिवेशवाद-विरोधी मुक्ति आंदोलन को "धार्मिक कट्टरता" कहते हैं। साथ ही, जापान का ग़लत विश्लेषण प्रस्तुत करके, ज़ायोनी फ़िलिस्तीनियों के पीड़ितों को नकारने के लिए होलोकॉस्ट के अपने दुरुपयोग को उचित ठहराने की कोशिश करते हैं।

ग़ज़्ज़ा में नरसंहार के समर्थन में देश की नीतियों के ख़िलाफ़ जापानी प्रदर्शनकारियों का विरोध प्रदर्शन।

दुनिया के लोग समझते हैं कि जापानी साम्राज्य 19वीं सदी से द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लोगों का उपनिवेशवादी था, लेकिन इसका आज की दुनिया में अमेरिका और इस्राईल की आक्रामकता से क्या लेना-देना है? आज जापानी लोगों में राजनीतिक और सभ्य चेतना है। जापानी लोगों के लिए, फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता का अर्थ है उनके द्वारा पूर्व साम्राज्य की आक्रामकता को अस्वीकार करना, साथ ही आज के अमेरिकी साम्राज्यवाद और इस्राईल के रूप में यूरोपीय उपनिवेशवाद को नाकार देना।

हम सभी के लिए फ़िलिस्तीन की आज़ादी के आंदोलन में एकजुटता से खड़ा होना और ग़ज़्ज़ा और शेष फ़िलिस्तीन पर इस्राईल के लगातार पाश्विक हमले को रोकना ज़रूरी है। अमेरिकी प्रभुत्व प्रणाली के समर्थन और जापान जैसी सरकारों के सहयोग से, इस्राईल ने अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों की अनदेखी की है और फ़िलिस्तीनी उपनिवेशवाद विरोधी मुक्ति आंदोलनों पर हमला किया है। दुर्भाग्य से, जापानी सरकार इतिहास के ग़लत पक्ष पर खड़ी है, जैसा कि पिछली शताब्दी में ग़लत चुनावों से पता चलता है, लेकिन यह जापानी संस्कृति और समाज की राय नहीं है।  इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के विश्लेषण के अलावा, यह ज्ञात होना चाहिए कि निर्दोष लोगों की हत्या की हमेशा निंदा की जाती है, और इसलिए अमेरिकी कथन यह है कि यदि जापान के निर्दोष लोगों पर परमाणु बम नहीं गिराया गया होता, तो द्वितीय विश्व युद्ध जारी रहता और अधिक लोग मारे जाते, यह एक दुष्ट धोखाधड़ी है और इसकी मूल सोच मानवता के ख़िलाफ़ है। (RZ)

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