बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन से जनता में बढ़ती नफ़रत
(last modified Fri, 07 Oct 2016 11:43:56 GMT )
Oct ०७, २०१६ १७:१३ Asia/Kolkata

बहरैनी सूत्रों ने गुरुवार को बताया कि इस देश की अदालत ने दो धर्मगुरुओं शैख़ फ़ाज़िल ज़ाकी और शैख़ मोहम्मद जवाद को 2 साल जेल की सज़ा दी है।

इसी प्रकार अदालत ने बहरैन की धर्मगुरु परिषद के अध्यक्ष मजीद मशअल को भी इस देश के वरिष्ठ धर्मगुरु शैख़ ईसा क़ासिम के समर्थन में राजधानी मनामा के देराज़ इलाक़े में आयोजित धरने में, भाग लेने के कारण एक साल क़ैद की सज़ाई सुनाई है।

बहरैन में फ़रवरी 2011 से जनता आले ख़लीफ़ा शासन से सत्ता से हटने और सुधार की मांग को लेकर इस देश के धर्मगुरुओं के नेतृत्व में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही है। जैसे ही बहरैन में जनक्रान्ति शुरु हुयी आले ख़लीफ़ा शासन ने पेनिनसुला शील्ड फ़ोर्स के सांचे में सऊदी अरब सहित कई अरब देशों के सैनिकों को प्रदर्शनों को कुचलने के लिए बुलाया। यह फ़ोर्स बहरैनी जनता की क्रान्ति को बुरी तरह कुचल रही है।

यह ऐसी हालत में है कि हालिया वर्षों में आले ख़लीफ़ा शासन ने बहरैनी जनता की इच्छा के ख़िलाफ़ क़दम उठाए हैं। आले ख़लीफ़ा शासन ने बहरैनी राष्ट्र के हितों की अनदेखी करते हुए इस देश की भूमि में अमरीकियों को सैन्य छावनी विस्तृत करने की खुली छूट दे दी है।

अभी हाल में यह ख़बर सुनने में आयी थी कि अमरीका मनामा के पूरब में स्थित सलमान नौसैनिक छावनी में विस्तार कर रहा है, जहां अमरीका का पांचवा बेड़ा तैनात है।

यह ऐसी स्थिति में है कि बहरैन सहित अरब देशों में इस्लामी जागरुकता की लहर के बाद ख़ास तौर पर जनता में अमरीका और ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ बढ़ती भावना यह दर्शाती है कि अरब देशों में मौजूद तानाशाही शासन के साथ अमरीका का व्यापक संबंध ही इन देशों पर अमरीका के वर्चस्व का कारण बना है और यह वर्चस्व ही बहरैन सहित अरब देशों में जनविरोध के मुख्य कारण में है। बहरैन सहित अरब देशों के शासकों के क्रियाकलाप से इन देशों की जनता में आक्रोश व्याप्त है।

बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन ने आंतरिक स्तर पर जनता के राजनैतिक व नागरिक अधिकारों के हनन की नीति अपना रखी है। इसी प्रकार इस शासन ने विदेश स्तर पर क्षेत्र में विदेशियों के हित में आगे बढ़ने, ख़ास तौर पर अमरीका से निकटता और ज़ायोनी शासन से गुप्त व ज़ाहिर संबंध बनाने की नीति अपना रखी है। यही कारण है कि बहरैन जनता आले ख़लीफ़ा शासन से बहुत से ज़्यादा नफ़रत करती है। (MAQ/T)