बहरैन की जनता का प्रतिरोध जारी
आले ख़लीफ़ा शासन के अत्याचारों के मुक़ाबले में बहरैन की जनता निरंतर विरोध कर रही है।
पिछले 121 दिनों से बहरैनी, इस देश के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शेख़ ईसा क़ासिम के घर के बाहर धरना दिये हुए हैं। यह विषय, आले ख़लीफ़ा शासन के लिए नया सिर दर्द बन गया है। पिछले चार महीनों से बहरैनी एसी स्थिति में धरने पर बैठे हुए हैं कि उनको इस धरने से हटाने के लिए बहरैन की तानाशाही सरकार ने हर प्रकार के हथकण्डे अपनाए हैं। सरकार की ओर से हर प्रकार की यातना और दमनकारी नीतियों के बावजूद बहरैनवासी अपने अधिकारों की प्राप्ति तक आन्दोलन को जारी रखने के प्रति कटिबद्ध हैं।
बहरैन वासियों का वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शेख ईसा क़ासिम के घर के बाहर धरना अब पांचवे महीने में प्रविष्ट हो चुका है जबकि सरकारी मीडिया यह दुष्प्रचार कर रहा है कि अपने नेताओं के बारे में बहरैनियों का प्रतिरोध टूटता जा रहा है। आले ख़लीफ़ा शासन ने जून 2016 में वरिष्ठ धर्मगुरू शेख़ ईसा क़ासिम की नागरिकता रद्द कर दी थी। टीकाकारों का कहना है कि बहरैनी जनता बड़ी ही समझदारी से इस धरने के आगे बढ़ा रही है। इस प्रकार वहां की जनता ने आले ख़लीफ़ा शासन की चालों को विफल बना दिया।
बहरैन फरवरी सन 2011 से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का साक्षी रहा है। इस देश की जनता बहरैन में राजनीतिक सुधार, स्वतंत्रता, न्याय की स्थापना और भेदभाव समाप्त करने के उद्देश्य से निरंतर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करती आ रही है। बहरैनियों की वैध मांगों के बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी बहरैन के वरिष्ठ धर्मगुरू की नागरिकता रद्द किये जाने पर आले ख़लीफ़ा सरकार की निंदा की है। राष्ट्रसंघ ने बहरैन सरकार से मांग की है कि इस देश में किये जाने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का सम्मान किया जाए। इतना सब होने के बावजूद बहरैन की सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाही कर रही है। हिंसक कार्यवाहियों के बावजूद बहरैन वासियों का प्रदर्शन यह दर्शाता है कि वे सब अपने दृष्टिकोण पर अडिग हैं और अत्याचार के सामने झुकने वाले नहीं।