इस्लामोफोबिया के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र संघ में लिया गया बड़ा फ़ैसला, भारत ने जताई चिंता
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंगलवार को 15 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुक़ाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित करने वाला एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंगलवार को इस्लामोफोबिया का विरोध करने के लिए 15 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है। यह संकल्प, 193-सदस्यीय विश्व निकाय द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया और साथ ही यह प्रस्ताव मुस्लिम देशों द्वारा सह-प्रायोजित, धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार पर बल देता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित हुआ प्रस्ताव 1981 में जारी एक प्रस्ताव की याद दिलाता है कि जिसमें “धर्म के कारणों से असहिष्णुता और भेदभाव के सभी रूपों को ख़त्म करने” का आह्वान किया गया था। प्रस्ताव इस्लामी देशों द्वारा प्रस्तुत किया गया था जिसमें ईरान और पांच अन्य देशों ने इस प्रस्ताव पर वार्ता का नेतृत्व किया। पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब, जॉर्डन और इंडोनेशिया के साथ ईरान ने वार्ता का नेतृत्व किया और इस्लामोफोबिया से मुक़ाबले के अपने दृढ़ संकल्प की पुष्टि की।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस्लामोफोबिया का मुक़ाबला करने वाला प्रस्ताव “भेदभाव, असहिष्णुता और हिंसा के मामलों में व्यापक वृद्धि” पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करता है। प्रस्ताव सभी देशों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और धार्मिक संगठनों को “इस्लामोफोबिया के ख़िलाफ़ लड़ाई के सभी स्तरों पर प्रभावी ढंग से जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न हाई-प्रोफाइल घटनाओं को व्यवस्थित और समर्थन करने के लिए कहता है”, और इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए इस नए अंतर्राष्ट्रीय दिवस का जश्न मनाएं। संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरान के राजदूत मजीद तख़्त रवांची ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस्लामोफोबिया का मुक़ाबला करने वाले प्रस्ताव के पारित होने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस्लामोफोबिया के ख़िलाफ़ पारित प्रस्ताव का स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि यह संकल्प अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मुख्य चुनौतियों में से एक के रूप में इस्लामोफोबिया का प्रभावी और रचनात्मक रूप से सामना करने के हमारे दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करता है।
इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस्लामोफोबिया का मुक़ाबला करने वाले प्रस्ताव के पारित होने पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत को उम्मीद है कि अपनाया गया प्रस्ताव मिसाल क़ायम नहीं करेगा। यह धार्मिक शिविरों में संयुक्त राष्ट्र को विभाजित करेगा। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के 1.2 बिलियन से अधिक अनुयायी हैं, बौद्ध धर्म के 535 मिलियन से अधिक और सिख धर्म के 30 मिलियन से अधिक अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम केवल एक धर्म को अलग करने के बजाय धार्मिक भय के प्रसार को रोकना स्वीकार करें। इस दौरान तिरुमूर्ति ने यह भी कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र ऐसे धार्मिक मामलों से ऊपर रहे जो शांति और सद्भाव के एक मंच पर एक साथ लाने और दुनिया को एक परिवार के रूप में मानने के बजाय हमें विभाजित करने की कोशिश कर सकते हैं। इस बीच टीकाकारों का मानना है कि भारत इस प्रस्ताव के पारित होने से इसलिए चिंतित नज़र आ रहा है क्योंकि इस देश में जबसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई है तब से इस्लामोफोबिया के मामलों में कई गुना वृद्धि हुई है। (RZ)
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए
हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए