पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमता सुरक्षित रखने पर अडिग
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा है कि आईएमएफ से पैसों के बदले अपना परमाणु कार्यक्रम बंद नहीं करेंगे।
शहबाज़ शरीफ़ का कहना है कि हमारी परमाणु क्षमता, पाकिस्तान की प्रतिरोधक शक्ति है।
पाकिस्तान की वर्तमान विषम आर्थिक परिस्थतियों के कारण इस देश को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इसी बीच पाकिस्तान के संचार माध्यमों में यह कहा जा रहा है कि आईएमएफ से क़र्ज़ लेने में इस्लामाबाद को अपने परमाणु कार्यक्रम बंद करने का आह्वान किया जा सकता है। आईएईए के महासचिव की हालिया पाकिस्तान की यात्रा के दौरान भी इस देश से परमाणु गतिविधियां जैसे मुद्दे पर चर्चा हुई है। इस बारे में हर प्रकार की अफवाहों को विराम देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा है कि परमाणु क्षमता, पाकिस्तान की प्रतिरोधक शक्ति है।
टीकाकार कहते हैं कि अपने पारंपरिक प्रतिद्वदवी अर्थात भारत के मुक़ाबले में पाकिस्तान, अपनी प्रतिरोधक शक्ति को मज़बूत करता रहा है। यह मामला पाकिस्तान की सेना के हाथ में है और इस देश की सरकार इस संबन्ध में कोई फैसला नहीं ले सकती। इस बारे में पाकिस्तान के मामले के जानकार मोहसिन रुईसिफत कहते हैं कि तीन प्रमुख मुद्दे पाकिस्तान की सेना के हाथों में हैं जिसमें वहां की सरकार को फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है जैसे अफ़ग़ानिस्तान का मामाल, कश्मीर का मुद्दा और पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियां।
पाकिस्तान और भारत दोनो ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। वे पड़ोसी होने के साथ ही एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी भी हैं। वैसे तो भारत और पाकिस्तान दोनो ही शीतकाल में परमाणु शक्ति संपन्न देश बने थे। उस समय भारत पूर्व ब्लाक मे था जबकि पाकिस्तान पश्चिम ब्लाक का हिस्सा हुआ करता था। अब शीत युद्ध तो समाप्त हो चुका है किंतु भारतीय उपमहाद्वीप मे दो परमाणु संपन्न शक्तियां मौजूद हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान परमाणु शक्ति को अपनी-अपनी प्रतिरोधक शक्ति भी मानते हैं किंतु इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं जिनमें से एक भारतीय उपमहाद्वीप पर फैलती निर्धन्ता है। दोनो ही देश अपनी परमाणु शक्ति की सुरक्षा और उसकी देखरेख पर बहुत अधिक धन ख़र्च करते हैं। यह बड़ा ख़र्च उन देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। बढ़ती हुई निर्धन्ता दोनो देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई।
पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक स्थति किसी से कोई ढकी छिपी बात नहीं है। अपनी आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए इस समय पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय सहायता की बहुत ज़रूरत है। विदेशी दबाव से बचते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करना अब पाकिस्तान के लिए मुश्किल होता जा रहा है। हालांकि इस बारे में किसी भी फैसले से पहले राष्ट्रीय हितों को निश्चित रूप से दृष्टिगत रखना होगा।
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