क़ुरआन के अनादर की घटना एक ख़तरनाक साज़िश, दोषी को इस्लामी देशों की अदालत के हवाले किया जाना चाहिए
स्वेडन में कुछ ही हफ़्तों के भीतर दो बार क़ुरआन के अनादर की घटना हुई। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वेडन की सरकाी गहराई को समझते हुए र की अनुमति से उसके संरक्षण में यह अपराधिक घटना हुई जो दुनिया की लगभग दो अरब आबादी वाले मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने वाली घटना है। इतना ही नहीं इस प्रकार की घटनाओं की निंदा ग़ैर मुस्लिमों ने भी की है।
पहली बार जब स्टाकहोम की जामा मसजिद के सामने क़ुरआन के अनादर की घटना हुई तो उस समय विश्व स्तर पर इसकी निंदा की गई मगर कुछ ही हफ़्तों के भीतर गत गुरुवार को इराक़ के दूतावास के सामने इस घटना को फिर दोहराया गया। इस बार भी स्वेडन के ख़िलाफ़ दुनिया भर में प्रतिक्रियाएं हुईं। कई देशों में स्वेडन के राजदूतों को विदेश मंत्रालयों में तलब करके गहरी आपत्ति जताई गई।
इराक़ में स्वेडन के दूतावास पर प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया और उसे आग लगा दी।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने इस घटना के बाद एक संदेश जारी करके इसकी कड़े शब्दों में निंदा की और कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का रेखांकित किया। उनका कहना था कि स्वीडन में क़ुरआन मजीद का अनादर, साज़िश से भरी एक ख़तरनाक कटु घटना है। इस जुर्म को अंजाम देने वाले को सबसे कठोर सज़ा दिए जाने पर सभी ओलमा-ए-इस्लाम एकमत हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने संदेश में लिखा कि स्वीडन की सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह इस मुजरिम को इस्लामी मुल्कों की अदालत के हवाले करे।
यह भी सच्चाई है कि स्वेडन की सरकार जान बूझ कर दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत कर रही है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने संदेश में कहा कि स्वीडन की सरकार भी जान ले कि उसने मुजरिम का समर्थन करके इस्लामी जगत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है और मुसलमान क़ौमों और उनकी बहुत सी सरकारों की नफ़रत व दुश्मनी मोल ली है।
इसी तरह की घटनाएं अमरीका, डेनमार्क और फ़्रांस सहित कुछ देशों में पहले भी हो चुकी हैं। इस्लामी दुनिया के विचारक और बुद्धिजीवी इस प्रकार की घटनाओं के बारे में एक बात कहते आ रहे हैं कि क़ुरआन मजीद का, पागलपन और नफ़रत से भरा निंदनीय अनादर, बहुत कड़वी घटना है जिसे कुछ बिके हुए तत्वों की बेवक़ूफ़ी भरी हरकत नहीं कहा जा सकता। यह उन केन्द्रों की योजनाबद्ध साज़िश है जो बरसों से इस्लाम की मुख़ालेफ़त और इस्लामोफ़ोबिया में लगे रहे हैं और सैकड़ों तरीक़ों तथा हज़ारों प्रचारिक हथकंडों से इस्लाम व क़ुरआन के ख़िलाफ़ सक्रिय हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता पहले भी कह चुके हैं कि इस्लाम और मुसलमानों से द्वेष का यह सिलसिला इस बात का नतीजा है कि कई दहाइयों से लेकर अब तक इस्लाम का नूर हमेशा से ज़्यादा चमकीला और इस्लामी जगत बल्कि पश्चिम में भी लोगों के मन में इसका असर पहले से ज़्यादा गहरा हो गया है, यह नतीजा है इस बात का कि इस्लामी जगत पहले से ज़्यादा जागरुक हो गया है और मुसलमान क़ौमों ने दो सदियों की साम्राज्यावदी ताक़तों की ज़ंजीरों को तोड़ देने का इरादा कर लिया है। क़ुरआन और अज़ीमुश्शान पैग़म्बरे इस्लाम की शान में गुस्ताख़ी अपनी तमाम कड़वाहटों के बावजूद अपने भीतर एक बड़ी ख़ुशख़बरी रखती है कि क़ुरआन का चमकता सूरज दिन ब दिन ज़्यादा बड़े क्षितिज पर निकल कर ज़्यादा चमकेगा।
दरअस्ल यह तो सच्चाई है कि पश्चिम के वर्चस्व का दौर डूब रहा है और नए क्षितिज सामने आ रहे हैं जिसमें पश्चिम की साज्राज्यवादी नीतियों के लिए गुंजाइश नहीं बची है। इसलिए अब इन नए हालात में ज़रूरती है कि इस्लामामी दुनिया ख़ुद को तैयार करे। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कई बार इस बिंदु को उठाया है कि इन बदलते हालात में अगर योजना और कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ा जाए तो इस्लमी दुनिया बहुत कुछ कर सकती है। उनका कहना है कि हम बहुत अहम रोल अदा कर सकते हैं। लेकिन एक शर्त है, एकता!
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