Aug २२, २०२३ १९:०१ Asia/Kolkata
  • बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, बड़ी आबादी और बड़ी महत्वाकांक्षाएं, क्या ब्रिक्स अमरीका की चौधराहट को ख़त्म कर पाएगा?

वे विशाल अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनकी आबादी भी बड़ी है और महत्वाकांक्षाएं भी बड़ी हैं।

मंगलवार से ब्रिक्स नाम से जाने जाने वाले देशों के समूह के नेता तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन के लिए जोहानसबर्ग में इकट्ठा हो रहे हैं।

ब्रिक्स में शामिल ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीक़ा के नेताओं की इस बैठक पर दुनिया भर की राजधानियों की गहरी नज़र होगी।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दक्षिण अफ्रीक़ा के जोहानसबर्ग में 22 से 24 अगस्त तक आयोजित होने वाले सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं। हालांकि वह शिखर सम्मेलन को मॉस्को से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करेंगे।

यूक्रेन में जारी युद्ध और अमरीका और चीन के बीच गहराते भू-राजनीतिक तनाव के दौरान आयोजित होने वाले ब्रिक्स समूह के नेताओं की इस बैठक को वाशिंगटन के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को चुनौती देने की एक कोशिश माना जा रहा है।

हालांकि ब्रिक्स का विस्तार, इस शिखर सम्मेलन के एजेंडे में शीर्ष पर रह सकता है। यह एक ऐसा संगठन है, जिसकी इस वक़्त दुनिया में सबसे ज़्यादा मांग है। अल्जीरिया से अर्जेंटीना तक, कम से कम 40 देशों ने समूह में शामिल होने में रुचि दिखाई है।

इस समूह के बढ़ते आकर्षण का मुख्य कारण, इसकी बढ़ती आर्थिक ताक़त है। पांच ब्रिक्स देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अब जी-7 से अधिक है। ब्रिक्स देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 26 प्रतिशत के हिस्सेदार हैं। इसके बावजूद, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) में सिर्फ़ 15 प्रतिशत मतदान की शक्ति हासिल है।

इस तरह के असंतुलन पर शिकायतों के साथ-साथ ग्लोबल साउथ में यह चिंता बढ़ रही है कि अमरीका प्रतिबंधों के माध्यम से डॉलर को उसी तरह हथियार बना सकता है, जैसे उसने रूस के ख़िलाफ़ बनाया है। यही कारण है कि ब्रिक्स देशों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपनी मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाते हुए अमरीकी मुद्रा पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है।

यहां सबसे महत्वपूर्ण बिंदू यह है कि समूह में इस बात पर सहमति है कि अमरीका के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था में बदलाव की ज़रूरत है, लेकिन साथ मिलकर कैसे काम किया जाए, अभी इस पर पूरी तरह से सहमति नज़र नहीं आती है।

इस समूह के दो महत्वपूर्ण सदस्यों भारत और चीन के बीच मई 2020 से सीमा पर गतिरोध जारी है। वहीं, भारत, दक्षिण अफ्रीक़ा और ब्राज़ील पश्चिम के साथ उतने ही मधुर संबंध चाहते हैं, जितना वे चीन और रूस के साथ चाहते हैं।

इसलिए यहां यह सवाल उठता है कि क्या ब्रिक्स अमरीका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के एक वैकल्पिक आर्थिक और भूराजनीतिक शक्ति के रूप में उभरेगा? या क्या उनके आंतरिक मतभेद समूह की उपलब्धियों को सीमित कर सकते हैं?

इसका संक्षिप्त जवाब यह है कि ब्रिक्स देशों का दबदबा बढ़ने की संभावना है, लेकिन इस गुट के द्वारा अमरीकी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था को नाटकीय रूप से बदलने के बजाए, टुकड़ों में आर्थिक और कूटनीतिक विकल्प पेश करने की अधिक संभावना है। इसका पश्चिम के साथ और अधिक तनाव पैदा हो सकता है, क्योंकि समूह के नेता परिवर्तनशील दुनिया में एक स्वतंत्र रास्ता तलाश करना चाहते हैं। लेकिन प्रभावी बने रहने के लिए ब्रिक्स को अपने सदस्य देशों के बीच असमान प्राथमिकताओं को प्रबंधित करने की ज़रूरत होगी। यह एक ऐसी चुनौती जिसे संबोधित करना समूह के लिए आसान नहीं होगा। msm

टैग्स