Sep ११, २०२३ १८:४९ Asia/Kolkata

11 सितंबर वर्ष 2001 में अमेरिका के सबसे हाई सिक्योरिटी वाले शहर न्यूयॉर्क और वॉशिंग्टन पर हुए आतंकवादी हमले को 22 वर्ष का समय बीत रहा है। यह एक ऐसी घटना थी कि जिसका असर न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका पर पड़ा बल्कि इसकी चपेट में पूरी दुनिया आ गई। अमेरिका के इतिहास का यह सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था। लगभग तीन हज़ार लोग इस आतंकी हमले की भेंट चढ़ गए थे।

अमेरिकी सरकार की आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक़, तकफ़ीरी आतंकवादी गुट अलक़ाएदा और ओसामा बिन लादेन जो उस समय अलक़ाएदा का सरग़ना था, उन्होंने न्यूयॉर्क स्थित दो गगनचुंबी व्यवासायिक इमारतों, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और वॉशिंग्टन में स्थित इस देश के रक्षा मंत्रालय की सबसे भव्यशाली इमारत को निशाना बनाया था। दिलचस्प बात यह है कि आतंकवादी गुट अलक़ाएदा को इसी अमेरिका ने उस समय पाला पोसा था कि जब वह अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ से दो-दो हाथ कर रहा था। वहीं ओसामा बिन लादेन को ट्रेनिंग भी अमेरिका की बदनाम ज़माना ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने अपने सैन्य ठिकानों पर ही रखकर दी थी। इस बीच जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से निकल गया तो उस समय ऐसे हालात पैदा हुए कि अमेरिका ने जिन्हें पाल पोसकर बड़ा किया था वही उसको आंखें दिखाने लगे। वैसे ऐसा होना ही था, क्योंकि कहते है न जब कोई किसी दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है तो वह ख़ुद ही उसमें गिर जाता है। अमेरिका ने जहां आतंकवादी गुटों को वजूद में लाकर अपने दुश्मनों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल की योजना बनाई थी उन्हीं आतंकी गुटों में से एक ने अपने आक़ा पर ही ऐसा हमला किया कि आज तक उसके दर्द से अमेरिका उभर नहीं पाया है।

हालांकि, 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर अल-क़ाएदा के आतंकवादी हमले दोनों पक्षों के बीच संबंधों का अंत नहीं था। क्योंकि इस हमले के बाद अमेरिका ने "आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध" के नाम पर आतंकवादी हमले शुरू किए, जिनके पीड़ित 11 सितंबर, 2001 की घटनाओं के पीड़ितों की तुलना में कई हज़ार गुना अधिक हैं। 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्धों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 45 लाख लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। सबसे पहले, इतिहास के सबसे असमान युद्धों में से एक में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने नाटो और कई अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, रक्षाहीन अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया  और तालेबान सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद, उन्होंने इस युद्धग्रस्त क्षेत्र पर अपना 20 साल का शासन शुरू किया। इसके बाद बारी आई इराक़ की, जबकि तात्कालीन इराक़ी शासकों ने 11 सितंबर 2001 के हमलों में कोई भूमिका नहीं निभाई थी। इराक़ पर अमेरिकी आक्रमण और इस देश पर कब्ज़े के कारण पैदा हुई अराजकता से, अल-क़ाएदा से कहीं अधिक क्रूर आतंकवादी समूह, जिसे दाइश के नाम से जाना जाता है, इराक़ और फिर सीरिया में उभरकर सामने आया। इस आतंकी गुट ने पश्चिम एशियाई क्षेत्र में ऐसे भयानक आतंकवादी कृत्यों को अंजाम दिया कि जिसके बारे में दुनिया का हर इंसान सोचकर भी सहम जाता है। यह सब ऐसी स्थिति में था कि जब अफ़्रीका में अल-क़ाएदा से जुड़े हुए आतंकवादी समूह निरंतर जघन्य अपराधों और हत्याओं को निरंतर अंजाम दे रहे थे।

अब जबकि 11 सितंबर 2001 की आतंकवादी घटना को 22 वर्ष बीत चुके हैं, यह बात पूरी तरह सिद्ध हो चुकी है कि अमेरिकियों ने दुनिया में आतंकवाद को नष्ट करने के दावे के साथ जो "आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध" शुरू किया था, उसने ही दुनिया में आतंकवाद के प्रसार को बढ़ावा दिया। जिस तरह से अमेरिकियों ने आतंकवादी समूहों से निपटने का ढोंग किया, उससे सबसे ज़्यादा आम जनता को नुक़सान उठाना पड़ा है। आम नागरिकों की हत्या के साथ-साथ ही अमेरिका की अन्यायपूर्ण कार्यवाहियां इस बात का कारण बनने लगीं कि बहुत सारे लोग आतंकवादी गुटों के समर्थन में भी आगे आने लगे। वास्तविक्ता यह थी कि अमेरिका जानबूझकर ऐसा कर रहा था ताकि आतंकी गुटों को मज़बूत कर सके और उनके द्वारा अपने हितों को साध सके। अमेरिका की इस गंदी और मानवता विरोधी नीतियों का शिकार सबसे ज़्यादा महिलाएं, पुरुष और बच्चे हुए। जिन्होंने अपनी जान, संपत्ति और सम्मान खो दिया और मौत से बचने के लिए विस्थापन का दर्द सहा। यह भी ऐसी स्थिति में कि जब अमेरिकी नागरिकों को भी अपनी सरकार की मानवता विरोधी नीतियों की क़ीमत दिखावटी "आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध" के रूप में चुकानी पड़ी। हालांकि 11 सितंबर, 2001 के बाद न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर आतंकवादी हमलों जितनी बड़ी और व्यापक घटना संयुक्त राज्य अमेरिका में कभी नहीं दोहराई गई, लेकिन विदेशी आतंकवादी ख़तरों पर अमेरिकी ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों ने इतना ज़्यादा ध्यान दिया कि घरेलू आतंकवादी समूहों के अमेरिका में हो रहे विकास पर उनका ध्यान ही नहीं गया। अब यह कहा जा रहा है कि अमेरिकियों की सुरक्षा को अल-क़ाएदा जैसे आतंकी समूहों की तुलना में घरेलू नस्लवादी चरमपंथियों से अधिक ख़तरा है। वहीं यह भी निश्चित है कि 11 सितंबर 2001 के बाद दुनिया अधिक असुरक्षित हो गई है और अमेरिकियों ने इस स्थिति में एक बड़ी भूमिका निभाई है। (RZ)

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