Nov १४, २०२३ १३:०७ Asia/Kolkata

फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के अपराधों में तेज़ी आने और ज़ायोनी शासन के नरसंहार के लिए पश्चिमी देशों के व्यापक समर्थन के कारण दुनिया में यहूदी-विरोधी भावना में वृद्धि हो गयी है इसीलिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉ ने एक पत्र में अपने देश में यहूदी विरोध भवनाओं में वृद्धि की निंदा की और बेलगाम यहूदी विरोधी भावनाओं में असहनीय वृद्धि पर चेतावनी दी है।

दुनिया में यहूदी विरोधी भावनाओं के बढ़ने के वजह से ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू को सार्वजनिक रूप से एलान करना पड़ा कि हम यह नहीं चाहते कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमारी आलोचना करे, बल्कि हम तो उसका समर्थन चाहते हैं।

हालांकि यूरोपीय देशों के अधिकारियों ने शुरू से ही इस्राईल का समर्थन करते हुए फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की दमनात्मक और हिंसक नीति को इस्राईल का अधिकार क़रार दिया और तेल अवीव का समर्थन करते हुए फ़िलिस्तीन के समर्थकों को धमकाया और उन्हें सज़ाएं तक दी हैं।

लेकिन मामला ऐसा ही हुआ और ग़ज़्ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों की हत्या के कारण यूरोप और अमेरिका में कई लोगों ने इस्राईल की नीतियों की निंदा की और फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित किए।

दुनिया के कई देशों में लोग फिलिस्तीनियों के समर्थन में सड़कों पर उतरे हैं लेकिन फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ यूरोपीय अधिकारियों के कठोर रुख़ की वजह से ही दुनिया विशेषकर यूरोप में नस्लीय और धार्मिक भेदभाव में तेज़ी आई है।

ताज़ा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 7 अक्तूबर के बाद से फ्रांस में 1100 से अधिक यहूदी-विरोधी घटनाएं दर्ज की गयी हैं जो मैक्रॉ के अनुसार पूरे वर्ष की तुलना में पिछले कुछ हफ्तों में फ्रांस में रहने वाले यहूदियों के खिलाफ घृणा की घटनाओं में तीन गुना वृद्धि का इशारा है।

जर्मन चांसलर ओलफ़ शुल्त्स ने कहा कि वह अपने देश में हाल ही में हुई यहूदी विरोधी घटनाओं से शर्मिंदा और क्रोधित हैं।

उन्होंने चेतावनी दी कि उनकी सरकार यहूदियों के खिलाफ ऐसी नफरत बर्दाश्त नहीं करेगी।

दरअसल, हालिया हफ्तों में पश्चिमी देशों ने अपनी नीतियों और इस्राईल के प्रति समर्थन से दुनिया के लोगों पर यह साबित कर दिया है कि वे आज़ादी के अपने नारों पर बाक़ी नहीं हैं क्योंकि उन्होंने फ़िलिस्तीन का समर्थन करने वाले लेखकों और पत्रकारों को भी हाशिये पर डाल दिया है और पश्चिम की इसी नति की वजह से पश्चिमी समाज में जनता में रोष उत्पन्न हो गया।

फ्रांस सहित अधिकांश यूरोपीय देशों में यह क़ानून है कि त्वचा के रंग, नस्ल, धर्म, उम्र और विकलांगता के कारण किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह लोगों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों से वंचित करे लेकिन पश्चिमी देशों की वर्तमान वास्तविकता से पता चलता है कि ये क़ानून ज़्यादातर काग़ज़ों पर ही रह गए हैं और यह आंकड़े न केवल फ्रांस में बल्कि पूरे यूरोप में नस्लीय और धार्मिक हिंसा में वृद्धि को दर्शाते हैं। (AK)

 

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