Feb ०८, २०२४ २०:२५ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन का अनादर करने वाले गुस्ताख़ व्यक्ति को स्वेडन से बाहर निकालने का आदेश

स्वेडन की इमीग्रेशन कोर्ट ने इराक़ी मूल के सिलवान मोमीका को देश से बाहर निकालने का आदेश दिया है जिसने पिछले साल कई बार क़ुरआन का अनादर करने की हिमाक़त की थी। स्वेडन के इमीग्रेशन अधिकारियों ने अक्तूबर महीने में सिलवान मोमीका का रेज़िडेंस परमिट रिन्यू करने से इंकार कर दिया था मगर सुरक्षा कारणों से उसे देश से बाहर निकालने का विषय स्थागित हो गया था।

अदालत ने यह आदेश तब दिया जब यह साफ़ हो गया कि मोमीका ने इमीग्रेशन फ़ार्म में ग़लत जानकारियां दी थीं। इस गुस्ताख़ ने अदालत के फ़ैसले को ऊपरी अदालत में चैलेंज किया मगर ऊपरी अदालत ने भी उसकी याचिका ख़ारिज कर दी। अदालत ने अप्रैल तक उसे स्वेडन में रुकने की अनुमति देने का फ़ैसला किया है।

सिलवान मोमीका ने स्वेडन की नागरिकता पाने की लालच में ईदुल अज़हा के दिन स्टाकहोम की मस्जिद के सामने क़ुरआन का अनादर किया था। उसने कुछ दिन पहले दावा किया कि पुलिस ने अब उसकी रक्षा करना छोड़ दिया है इसलिए वो कभी भी स्वेडन के मुसलमानों का निशाना बन सकता है। मोमीका इससे पहले भी कई बार क़ुरआन के अनादर की घटना अंजाम दे चुका है और हर बार पुलिस ने उसकी रक्षा की।

लगता है कि इस्लमी देशों यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ़ से पड़ने वाले भारी दबाव के बाद स्वेडन की सरकार और पुलिस को महसूस हुआ कि मोमीका नाम की मुसीबत से निजात पा लेना ही बेहतर होगा।

हालिया  वर्षों में कुछ यूरोपीय देशों ख़ास तौर पर स्कैंडिनेवियन देशों में मुसलमानों के धार्मिक प्रतीकों की अनादर किया गया। वर्ष 2023 में स्वेडन और डेनमार्क में क़ुरआन को जलाने की घटनाएं कई बार हुईं। यह हरकत सिलवान मोमीका जैसे चरमपंथियों के साथ ही कुछ स्थानीय चरमपंथी दलों ने भी की। पुलिस की देखरेख में इन तत्वों ने कुरआन का अनादर किया और दूसरे इस्लामी प्रतीकों का अपमान किया तो पूरे इस्लामी जगत में इस पर भारी आपत्ति जताई गई। बग़दाद में स्वेडन के दूतावास पर हमला भी हो गया।

मुसलमानों की तरफ़ से भारी प्रतिक्रिया और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ के एतेराज़ के बावजूद पश्चिमी देश अब भी इस्लामी प्रतीकों के अनादर की अनुमति दे रहे हैं। यह लगता है कि पश्चिमी देश जान बूझ कर अभिव्यक्ति की आज़ादी और धर्म व धार्मिक प्रतीकों और आस्थाओं के अपमान में गडमड कर रहे हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडो को देखकर लगता है कि पश्चिमी  देश इस विषय को अपने स्वार्थों के तहत हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वरना यह देश होलोकास्ट के मसले में अभिव्यक्ति की आज़ादी को पूरी तरह खा जाते हैं। इस विषय पर कोई भी सवाल उठाने की किसी को अनुमति नहीं देते। पश्चिमी देशों का यही रवैया मानवाधिकारों और आतंकवाद के विषय में भी है।  

 

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