Apr १२, २०२४ ११:०५ Asia/Kolkata
  • मालवीनास द्वीपों पर क़ब्ज़ा ख़त्म होना चाहिए, महत्वपूर्ण स्ट्रेट्स पर ब्रिटेन के पुनः साम्राज्यवादी नियंत्रण का ख़तरा

पार्स टुडे- दुनिया तब तक चैन की सांस नहीं ले पाएगी जब तब साम्राज्यवादी क़ब्ज़ों की कहानी ख़त्म नहीं हो जाती। इस संदर्भ में ज़रूरी है कि मालवीनास, दक्षिणी जार्जियस और दक्षिणी सैंडविच आईलैंड्स इसी तरह उनके आस पास के समुद्री इलाक़ों को अर्जेंटीना का अटूट हिस्सा मानते हुए इस देश की अखंडता पर दुनिया के देश ज़ोर दें।

जब अर्जेंटीना आज़ाद हुआ तो उसके द्वीप भी जो उसकी सरज़मीन का हिस्सा थे आज़ाद हो गए। मगर कुछ ही साल गुज़रे थे कि 1830 के आस पास ब्रिटेन की शाही सरकार ने अर्जेंटीना के कई द्वीपों पर हमला कर दिया। वहां मौजूद अर्जेन्टीनियन अधिकारियों को अपदस्थ और वहां के निवासियों को निर्वासित कर दिया। इसके बाद इन दवीपों का नाम बदलकर फ़ाकलैंड कर दिया।

अर्जेंन्टीना की जनता उस समय से लेकर आज तक इस इंतेज़ार में है कि उसके द्वीप वापस मिलें लेकिन ब्रिटेन की हालत यह है कि इन द्वीपों के बारे में बातचीत शुरू करने तक पर तैयार नहीं है।

बदक़िस्मती की बात है कि साम्राज्यवादी तौर तरीक़ों के अनुसार ब्रिटेन ने इन द्वीपों में असामान्य और अतार्किक रूप से अपने सैनिक तैनात कर रखे हैं। यहां वह सैन्य अभ्यास करता है जिससे इलाक़े में बार बार तनाव पैदा हो जाता है। ब्रिटेन की यह गतिविधियां संयुक्त राष्ट्र संघ और दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनेक प्रस्तावों की ख़िलाफ़वर्ज़ी हैं।

ब्रिटेन ने दक्षिणी एटलांटिक महासागर का सैन्यीकरण करते हुए बड़ी ख़तरनाक योजना पर काम किया। उसने पिछले साल तीसरी सुरक्षा फ़ोर्स अर्जेंटीना के द्वीपों पर तैनात करवा दिया।

ब्रिटेन की सैन्य उपस्थिति महासभा के प्रस्ताव 11/41 से विरोधाभास रखती है। इस प्रस्ताव में सभी देशों, विशेष रूप से उन देशों से मांग की गई है जो सैन्य दृष्टि से मज़बूत हैं कि तवज्जो से काम करें और दक्षिणी एटलांटिक महासागर के इलाक़े को शांति और सहयोग के इलाक़े के रूप में सम्मान दें और वहां सैन्य उपस्थिति कम या समाप्त करें।

इन द्वीपों पर अर्जेंटीना की संप्रभुता के बारे में बातचीत शुरू करने के अपने वचन को नज़रअंदाज़ करने के अलावा ब्रिटेन एकपक्षीय रूप से गतिविधियां कर रहा है। इस इलाक़े में वह प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनके इस्तेमाल में लगा हुआ है।

अर्जेंटीना ने अब तक काफ़ी संयम दिखाया है। उसने ताक़त के इस्तेमाल के विकल्प को हमेशा ख़ारिज किया और विवाद को हल करने के लिए द्विपक्षीय शांति वार्ता पर ज़ोर देता रहा है।

अर्जेंटीना और ब्रिटेन के बीच मालवीनास द्वीप समूह को लेकर हुई जंग को 40 साल से अधिक समय बीत चुका है मगर लैटिन अमेरिका का यह देश अपनी अखंडता और संप्रभुता पर ज़ोर देते हुए द्वीपों को वापस लेने के लिए लगातार प्रयासरत रहा है।

मालवीनास द्वीपों पर जिसका नाम ब्रिटेन ने फ़ाकलैंड रख दिया है ब्रिटेन और अर्जेंटीना का विवाद लगभग दो शताब्दियों से जारी है। अगर सही तारीख़ की बात की जाए तो इस विवाद की शुरुआत 1820 में हुई। इन विवादित द्वीपों से लंदन की दूरी 12 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा है मगर फिर भी लंदन का दावा है कि एक ब्रितानी नाविक ने पहली बार 1592 में इस जगह की खोज की और लगभग एक शताब्दी बाद 1690 में पहले ब्रिटिशर ने इस सरज़मीन पर क़दम रखा।

दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन साम्राज्यवादी खोज की रट लगाए हुए है मानो वहां के अस्ली निवासी मिट चुके हों और यूरोपीयों ने खोज करके इन द्वीपों को दुनिया से जोड़ा हो।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रिटेन ने मालवीनास द्वीप समूह पर क़ब्ज़ा इसलिए किया है कि वह इस अहम जलमार्ग और स्ट्रेट को अपने कंट्रोल में रखना चाहता है।

इन द्वीपों पर अपने मालेकाना हक़ का दावा करके ब्रिटेन दक्षिणी ध्रुव और इस इलाक़े की फ़िशरी के बड़े भाग का मालिक बन जाना चाहता है। यहां के तटीय इलाक़ों में पानी के भीतर गैस और तेल के भंडारों की वजह से इन द्वीपों की स्ट्रैटेजिक अहमियत और भी बढ़ गई है। ऊर्जा से समृद्ध इलाक़े को अपने नियंत्रण में रखने की लालच में ब्रिटेन पुराने ज़माने से इस इलाक़े पर कब्ज़ा जमाए हुए है।

ब्रिटेन के नियंत्रण वाले मालवीनास द्वीपों की स्थिति, इस रास्ते से ब्रिटेन माज़लान स्ट्रेट पर नियंत्रण रखना चाहता है जो मालवीनास द्वीप और शेष लैटिन अमेरिकी महाद्वीप के बीच स्थित है।

 

मालवीनास या ब्रिटेन द्वारा रखे गए नाम के अनुसार फ़ाकलैंड द्वीप समूह लैटिन अमेरिका के इलाक़े में एटलांटिक महासागर में है। इसकी राजधानी स्टानली है। इस इलाक़े में दो बड़े द्वीप पूर्वी फ़ाकलैंड और पश्चिमी फ़ाकलैंड हैं। जबकि इसमें लगभग 776 छोटे द्वीप शामिल हैं। इन सब को मिलाकर इनका क्षेत्रफल 12 हज़ार 173 वर्ग किलोमीटर है। यह द्वीप समूह अर्जेंटीना के पूर्वी तटों से 483 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि इस इलाक़े से ब्रिटेन की दूरी 12 हज़ार किलोमीटर के आसपास है।

ख़ुशी की बात यह है कि दुनिया में जागरूकता बढ़ी है और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों पर दबाव बढ़ा है जिससे हालात अब उस दिशा में जाएंगे कि मालवीनास पर ब्रिटेन का क़ब्ज़ा समाप्त होगा और यह द्वीप समूह उसके असली मालिकों को वापस मिलेगा। इस के लिए दुनिया के स्वाधीन और आज़ाद सोच रखने वाले देशों के आपसी सहयोग की ज़रूरत है। ईरान मालवीनास द्वीप समूह की आज़ादी की बात करता है तो इसका एक सबब साम्राज्यवादी क़ब्ज़े पर अंकुश लगाकर दुनिया को अधिक टिकाऊ शांति व स्थिरता की ओर ले जाना है।

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