हथियार, युद्ध और भेदभाव द्वारा इस्लामोफ़ोबिया का औचित्यः कई विचार
(last modified Thu, 02 May 2024 05:14:56 GMT )
May ०२, २०२४ १०:४४ Asia/Kolkata
  • इस्लामोफ़ोबिया के लिए युद्ध और भेदभाव का सहारा लिया जा रहा है         
    इस्लामोफ़ोबिया के लिए युद्ध और भेदभाव का सहारा लिया जा रहा है         

इस्लामोफ़ोबिया का मानना है कि मुसलमानों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्यवाहियां की जा सकती हैं।  उसके अनुसार इस्लाम स्वभाविक रूप पश्चिमी मूल्यों के लिए ख़तरा है।

पार्सटुडे-पूर्वी ब्लाक के बिखरने के बाद संयुक्त राज्य अमरीका ने इसका मुक़ाबला करने और अपनी अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका को पुनः परिभाषित करने के लिए एक विदेशी तत्व को परिभाषित करने का काम किया।  अमरीकी राजनेताओं के दृष्टिगत इस्लामोफ़ोबिया को हालीवुड के माध्यम से अधिक ख़तरनाक दिखाया गया।

उपनिवेशवादियों के दिमाग़ की उपज है इस्लामोफ़ोबियाः

ईरान के रेडियो और टेलिविज़न सेंटर में इस्लामी अनुसंधान, कला संचार एवं वर्चुअल स्पेस के निदेशक एहसान आज़र कमंद कहते हैं कि पश्चिमी देशों में इस्लामोफ़ोबिया को उपनिवेशवादी विचारधारा ने जन्म दिया है।  इस्लाम से भय, पिछले सौ वर्षों के दौरान इस्लाम की राजनीतिक छवि को बिगाड़ कर पैदा किया गया।  जब इस्लामी जगत में आधुनिकतावाद और बौद्धिक आंदोलन आरंभ हुआ तो पश्चिम ने इस्लामोफोबिया का सहारा लिया।  कुछ लोगों का यह मानना था कि अगर मुसलमान इसी तरह से अपनी पहचान को बचाते हुए आगे बढ़ते हैं तो यह काम पश्चिमी देशों के लिए बहुत ख़तरनाक होगा।

इस्लामोफ़ोबिया में अमरीका की भूमिकाः

राजनेताओं द्वारा एक शत्रु की आवश्यकता के बारे में यूनिवर्सिटी फेकेल्टी मेंबर बशीर इस्माईली कहते हैं कि दो ध्रुवीय व्यवस्था के विघटन के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका एक महाशक्ति के रूप में बाक़ी रह गया किंतु वहां पर पहचान का संकट पैदा हो गया।

इस बीच कुछ अमरीकी विचारकों ने इस देश की विदेश नीति को एक नया रुख़ देने के लिए बहुत प्रयास किये किंतु ग्यारह सितंबर 2001 की घटना ने जितना काम कर दिखाया उसकी तुलना में अमरीकी विचार लाख प्रस्ताव देने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए।

अमरीकी नेताओं ने इस घटना का दुरूपयोग करते हुए कम्यूनिज़्म के विघटन के बाद वाशिग्टन की विदेश नीति में भटकाव के पश्चात एक नई स्ट्रैटेजी को विश्व मे व्यापक स्तर पर फैलाया।  विश्व व्यापार संगठन और पेंटागन पर ग्यारह सितंबर 2001 की संदिग्ध घटना के बाद स्वयं और दुनिया को लेकर अमरीकी दृष्टिकोण हमेशा के लिए बदल गया।  यह हमला अमरीका की घरेलू और विदेश नीति में एक नई सोच को लागू करने की भूमिका बना जो था इस्लामोफोबिया का औचित्य पेश करना।

हालीवुड में पहचनवाने के केन्द्रः

प्रोफेस अली दाराई ने इस्लामोफ़ोबिया के लिए कुछ बिंदुओं का उल्लेख किया है जिनपर हालीवुड केन्द्रित रहा है। यही वहज है कि उसको अमरीका की मीडिया कूटनीति का मज़बूत आधार माना जाता है।

1-इस्लाम को न बदलने वाली संरचना के रूप में पेश करना।

2-इस्लाम को इस प्रकार से पेश किया जाता है कि मानो अन्य संस्कृतियों से उसकी कोई समानता नहीं है।

3-यह बताया जाता है कि इस्लाम, पश्चिमी संस्कृति में निम्न श्रेणी का है।

4-इस्लाम को केवल एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में पेश किया जाता है जिसका उपयोग केवल राजनीति और रणनीति में किया जा सकता है।

इस्लामोफ़ोबिया का मानना है कि मुसलमानों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्यवाहियां की जा सकती हैं।  उसके अनुसार इस्लाम स्वभाविक रूप पश्चिमी मूल्यों के लिए ख़तरा है।

इस्लाम के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध में हालीवुड की शैलीः

इमाम ख़ुमैनी युनिवर्सिटी एक फैकेल्टी मिंबर सैयद हुसैन शरफुद्दीन इस बारे मे कहते हैं कि उसकी विध्वंसकारी नीति में अपमानित करना, दोष मढ़ना और मज़ाक उड़ाना शामिल है।  स्वभाविक सी बात है कि इस प्रकार की शैली दर्शकों और पाठकों के मन में एक प्रकार की घृणा को जन्म देती है जो उसके अवचेतन में बाक़ी रहती है।

 

पश्चिमी सिनेमा में हमेशा यह दिखाया जाता है कि मुसलमान औरत बहुत कमज़ोर और गुमराह है जिसका काम केवल बच्चे पैदा करना है

मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रतः

अंतरसांस्कृतिक संबन्धों में घृणा के प्रभुत्व के माडल की व्याख्या के बारे में आरज़ू मोराली की बात को तेहरान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाक्टर सईद रज़ा आमेली कहते हैं कि पश्चिमी समाजों पर छाई संस्कृति, घृणा को बढ़ावा देती है।  मुसलमानों के बारे में पश्चिम में नफ़रत का माहौल हालिवुड, वहां के क़ानूनों, संचार माध्यमों और शिक्षा व्यवस्था ने बनाया है।

मनोरंजन उद्योग में मुसलमानों को विशेष धार्मिक मान्यताओं का स्वामी बताया जाता है।  उनको घटिया इंसान दिखाया जाता है।  वहां पर ईरानियों, पाकिस्तानियों या अन्य मुसलमानों को सुनियोजित ढंग से ग़लत दिखाया जाता है।  यह काम इस उद्योग के अस्तित्व से ही जारी है।  अब हो यह रहा है कि हम मानवता के स्थान से गिर रहे हैं।  वे अब एक विशेष वर्ग के ख़िलाफ़ हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं।

जब फ़िल्म, "अमरीकी स्नाइपर" प्रदर्शित हुई तो उस समय कोई यह नहीं कह सकता था कि यह फ़िल्म मुसलमानों की हत्या पर उकसाती है किंतु अब हम देखते हैं कि इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद कम से कम अमरीका और कनाडा में मुसलमानों के विरुद्ध गोलीबारी की कई घटनाएं घटीं।  वहां पर सड़को पर मुसलमानों पर गोलियां चलाई गईं।  वे किसी स्नाइपर की तरह मुसलमानों को मार रहे थे। 

वैसे केवल "अमरीकी स्नाइपर" ही नहीं है जो मुसलमानों की हत्या पर उकसाती है बल्कि वर्षों पहले से ही मुसलमानों को, नॉन-ह्यूमन बीइंग के रूप में पेश करने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

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