Sep ०९, २०२४ १९:०१ Asia/Kolkata
  • फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन, इस्राईल द्वारा किये जा रहे नरसंहार की आलोचना करने के कारण तुलूस विश्वविद्यालय में मैथ के प्रोफ़ेसर को निलंबित कर दिया गया

पार्सटुडे- इस्राईल के ख़िलाफ़ बयान देने के कारण फ्रांस में तुलूस विश्वविद्याल में मैथे के एक प्रोफ़ेसर को पढ़ाने से रोक दिया गया।

फ्रांस में तुलूस विश्वविद्यालय में मैथ के एक प्रोफ़ेसर Benoit Hoo को ग़ज़ा पट्टी में इस्राईल के अपराधों की आलोचना के कारण पढ़ाने से रोक दिया गया है।

 

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़ा में इस्राईल के अपराधों की आलोचना करने के कारण फ्रांस में तुलूस विश्वविद्याल के अधिकारियों ने प्रोफ़ेसर Benoit Hoo के ख़िलाफ़ कार्यवाही का फ़ैसला उस वक़्त लिया जब तुलूज़ विश्वविद्यालय के किसी छात्र ने प्रोफ़ेसर Benoit Hoo की रिकार्डेड ऑडियो को प्रकाशित किया।

 

प्रोफ़ेसर Benoit Hoo ने अपनी रिकार्डेड ऑडियो में ग़ज़्ज़ा पट्टी में इस्राईल द्वारा किये जा रहे अपराधों पर पश्चिमी समाजों की चुप्पी की आलोचना की थी और कहा था कि इस प्रकार का नस्ली सफ़ाया मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा था।

 

पश्चिमी देश हमेशा स्वयं को डेमोक्रेसी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पालना समझते हैं और इस संबंध में फ्रांस भी स्वयं को ध्वजावाहक समझता है परंतु फ्रांस में होने वाली घटनायें इस बात की सूचक हैं कि पश्चिमी देश न केवल डेमोक्रेसी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पालना नहीं हैं बल्कि वे आज़ादी के दमनकर्ता हैं और टेलीग्राम के संस्थापक की गिरफ़्तारी और तुलूस विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर को पढ़ाने से रोक दिये जाने को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

 

फ्रांस के तुलूस विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर प्रोफ़ेसर Benoit Hoo ने अपनी रिकार्डेड ऑडियो में कहा है कि अपनी 35 साल की उम्र में मैंने कभी भी इस प्रकार का नस्ली सफ़ाया नहीं देखा है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय के इस प्रोफ़ेसर ने कहा है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की मौजूदा स्थिति पिछले वर्ष 7 अक्तूबर से आरंभ नहीं हुई है और इस समय ग़ज़ा पट्टी में आम नागरिकों की जो हत्या व नरसंहार किया जा रहा है किसी भी चीज़ से उसका औचित्य नहीं दर्शाया जा सकता।

 

रोचक बात यह है कि फ्रांस के तुलूस विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर Benoit Hoo की फ़ाइल की समीक्षा प्रायोजित अपराध विभाग में हो सकती है।

 

कुछ महीने पहले न्यूयार्क विश्वविद्याल में भी एक प्रोफ़ेसर को फ़िलिस्तीन के मज़लूमों लोगों का समर्थन करने के कारण विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था। रोचक बात यह है कि न्यूयार्क विश्वविद्यालय के जिस प्रोफ़ेसर को निकाला गया उसने 20 वर्षों तक विश्वविद्याल में पढ़ाया था।

 

ज़ायोनी सरकार ने सात अक्तूबर 2023 को पश्चिमी देशों के व्यापक समर्थन से ग़ज़ा पट्टी और जार्डन नदी के पश्चिमी किनारे पर फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों का  विस्तृत पैमाने पर नरसंहार आरंभ कर दिया।

 

प्राप्त ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी सरकार के हमलों में 40 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 94 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी घायल भी हुए हैं।

 

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें। MM

 

कीवर्ड्सः इस्राईल के अपराध, जंगे ग़ज़ा, तुलूज़ विश्वविद्यालय, फ़िलिस्तीन समर्थकों का निष्कासन, फ़्रांस और इस्राईल

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