Sep २०, २०२४ १५:०६ Asia/Kolkata
  • साम्राज्यवाद के दो उदाहरण: क्या हैरिस की जीत से वास्तव में दुनिया के दक्षिणी हिस्से को लाभ होगा?
    साम्राज्यवाद के दो उदाहरण: क्या हैरिस की जीत से वास्तव में दुनिया के दक्षिणी हिस्से को लाभ होगा?

पार्सटुडे- अमेरिका की दोनों ही राजनैतिक पार्टियां डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, अमेरिकी साम्राज्यवाद के विकास में रुचि रखती हैं और उन्होंने अमेरिका के आर्थिक आधिपत्य और एकाधिकार को बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया है।

जैसे-जैसे अमेरिकी चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, ग्लोबल साउथ की कई मशहूर हस्तियों पर कमला हैरिस के समर्थन में आवाज उठाने का दबाव डाला जा रहा है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया क्षेत्र में एक बड़ी विचारधारा ने यह तर्क भी उठाया है कि हैरिस के चुनाव से अमेरिका में लोकतंत्र और दक्षिणी दुनिया के हितों को लाभ हो सकता है। इस समर्थन की वजह यह क़रार दिया जाता है कि ट्रम्प अमेरिकी लोकतंत्र और दक्षिणी दुनिया के हितों के लिए ख़तरा हैं।

हालांकि यह तर्क अमेरिका के घरेलू हितों के लिहाज से उचित लग सकता है, लेकिन किसी को यह पूछना चाहिए कि क्या हैरिस की जीत से हक़ीक़त में ग्लोबल साउथ को फ़ायदा होगा?

दोनों साम्राज्यवादी पार्टियां, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, अमेरिकी साम्राज्यवाद के विकास में रुचि रखती हैं और उन्होंने अमेरिकी आर्थिक आधिपत्य को बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर रही हैं।  दोनों पार्टियों ने इस साम्राज्यवादी विस्तार को उचित ठहराने के लिए "मिशनरी लोकतंत्र" की विचारधारा का इस्तेमाल किया है, जैसा कि अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमले के दौरान देखा गया है।

उदाहरण के लिए, 2002 में, अधिकांश डेमोक्रेटिक सीनेटरों ने भी इराक़ पर हमला करने के लिए वोटिंग की थी।

रिपब्लिकन के विपरीत, डेमोक्रेट ने "बहुपक्षीवाद" के नज़रिए का अधिक समर्थन किया और एकतरफा कार्रवाई के बजाय, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ और नैटो जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और संगठनों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की लेकिन ये फ़र्क़ ज्यादातर तरीक़ों तक में ही सीमित थे और ग्लोबल साउथ के लिए उनके प्रभाव ज़्यादा अलग नहीं थे।

हालिया महीनों में रिपब्लिकन्स का बड़ा पलायन, एक दिलचस्प घटना थी: कई पूर्व रिपब्लिकन राजनेता डेमोक्रेट का समर्थन करने लगे हैं। सबसे प्रमुख शख्सियतों में से एक डिक चेनी और उनकी बेटी लिज़ चेनी हैं, जो मध्यपूर्व में युद्धोन्मादी नीतियों के मुख्य समर्थक रहे हैं।

इस बड़े पैमाने पर तब्दीली की वजह यह है कि रिपब्लिकन अब ट्रम्प पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उन्होंने पश्चिमी गठबंधनों को कमज़ोर कर दिया है और अमेरिकी विदेश नीति के पारंपरिक सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहे हैं।

इसके विपरीत, बाइडेन और अब हैरिस प्रशासन ने अधिक हमलावर और सैन्यवादी नीतियां अपना रखी हैं। ट्रम्प द्वारा नैटो को कमज़ोर करने के बाद बाइडेन ने इजराइल के लिए अपना पूर्ण समर्थन जारी रखा है और नैटो को मज़बूत किया।

इसके साथ ही, बाइडेन ने चीन को रोकने के लिए अभूतपूर्व क़दम उठाए हैं। ये नीतियां जॉर्ज बुश की नीतियों से काफी मिलती-जुलती हैं जिनका लक्ष्य रूस को अलग-थलग करना और चीन को कंट्रोल करना था।

साम्राज्य के दो मॉडल दरअसल, नवम्बर के चुनावों में साम्राज्य के दो मॉडल प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं: एक डेमोक्रेट और रिपब्लिकन का पारंपरिक मॉडल है, जो वैश्विक पूंजीवाद और बहुपक्षीय सैन्य गठबंधनों के ज़रिए अमेरिकी आधिपत्य और एकाधिकार को बनाए रखना चाहता है।

दूसरा ट्रम्प मॉडल है, जो "अमेरिका फर्स्ट" और दुनिया से अलगाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है। यह नज़रिया अपने कुछ कार्यक्रमों में अधिक आक्रामक नीतियों को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को कम करने और घरेलू स्तर पर अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करने पर ज़ोर देता है।

आख़िर में, यह कहा जा सकता है कि ग्लोबल साउथ के लिए, ये दोनों पैटर्न हानिकारक लगते हैं, और जबकि डेमोक्रेट अपनी साम्राज्यवादी नीतियों को जारी रखना चाहते हैं और ट्रम्प का दृष्टिकोण, ग्लोबल साउथ को अकेला छोड़ देता है।

 

स्रोत: Bello, Walden. 2024. How Should the Global South Look at the US Elections?. Counterpunch

 

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