वेनेज़ोएला पर वॉशिंग्टन का दबाव कितना कारगर?
वेनेज़ोएला में राजनैतिक तनाव ऐसी हालत में बढ़ता जा रहा है कि वॉशिंग्टन वेनेज़ोएला के क़ानूनी राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के विरोधियों का खुल कर समर्थन कर, मादुरो की वामपंथी सरकार को गिराने और इस देश में विद्रोह कराने की कोशिश में है।
इस परिप्रेक्ष्य में वॉशिंग्टन ने ख़्वान ग्वाएडो को वेनेज़ोएला के राष्ट्रपति के रूप में मान्यता देते हुए अपने घटकों से भी इसी तरह का क़दम उठाने की अपील की।
अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इलियट अब्राम्स को वेनेज़ोएला के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया ताकि वह इस देश में अमरीकी साज़िशों पर पूरी तरह नज़र रख सकें।
वेनेज़ोएला के ख़िलाफ़ अमरीकी गतिविधियां ऐसी हालत में जारी हैं कि ये गतिविधियां सभी अंतर्राष्ट्रीय नियम व क़ानून के ख़िलाफ़ और एक स्वाधीन देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप समझी जाती हैं। यही वजह है कि दुनिया के बहुत से देशों ने मादुरो की सरकार के विरोधियों को वॉशिंग्टन की ओर से समर्थन की निंदा की, अमरीकी समर्थन को संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र के ख़िलाफ़ बताया और देशों की स्वाधीनता व संप्रभुता के सम्मान पर बल दिया।
लैटिन अमरीकी समीक्षक अमीरो फ़ून्ज़ ने 24 जनवरी को प्रेस टीवी से इंटरव्यू में बल दिया कि अमरीकी सरकार ने मादुरो सरकार के ख़िलाफ़ तानाशाही व्यवहार इसलिए अपना रखा है क्योंकि मादुरो की सरकार देश के मज़दूर व श्रम वर्ग तथा जनता के हितों की रक्षक है जो स्वाभाविक रूप से अमरीका व ट्रम्प के हितों के ख़िलाफ़ है। वेनेज़ोएला तेल से समृद्ध देश है और अगर वह विकसित हो गया तो वह लैटिन अमरीकी क्षेत्र में अमरीकी चौधराहट के लिए संभावित ख़तरा बन जाएगा।
अमरीका और उसके घटक अंतर्राष्ट्रीय नियम व क़ानून की अनदेखी करते हुए वेनेज़ोएला में अपने हित में राजनैतिक बदलाव लाने के लिए हस्तक्षेप जारी रखना चाहते हैं। यह ऐसा विषय है जिससे वेनेज़ोएला में राजनैतिक हालात जटिल हो गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि इस तरह की गतिविधियों से वेनेज़ोएला सहित लैटिन अमरीका में साम्राज्य विरोधी आकांक्षाएं नहीं दब सकतीं।(MAQ/T)