दुनिया के नेतृत्व का सपना तो दूर की बात है अमरीका अब विनाश की कगार पर जा खड़ा हुआ है, इसे बचाएगा कौन? यह नवम्बर के चुनाव नतीजों से पता चलेगा
(last modified Tue, 16 Jun 2020 15:26:23 GMT )
Jun १६, २०२० २०:५६ Asia/Kolkata
  • दुनिया के नेतृत्व का सपना तो दूर की बात है अमरीका अब विनाश की कगार पर जा खड़ा हुआ है, इसे बचाएगा कौन? यह नवम्बर के चुनाव नतीजों से पता चलेगा

फ़्रांस के अख़बार लोमोंड ने अमरीकी-फ़्रांसीसी लेखक गाई सोरमैन का एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें सोरमैन का कहना है कि अमरीका के सपने ध्व्सत होते जा रहे हैं, अब अमरीका के भीतर आमदनी, हेल्थ केयर और एजुकेशन के क्षेत्रों में असमानता साफ़ नज़र आने लगी है इसका मतलब यह है कि यह देश अब अपने हाथों से ही अपना गला घोंट रहा है।

अमरीका की स्थापना उन संयुक्त सिद्धांतों के आधार पर की गई थी जो इस देश के संविधान में लिखे हुए हैं और जिनकी बुनियाद है सौभाग्य के लिए संघर्ष। इसका मतलब यह है कि हर नागरिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से अपनी हालत सुधार सकता है चाहे उसका संबंध किसी भी समुदाय और संस्कृति से हो।

इस सपने ने दुनिया भर से अलग अलग धर्मों, समाजों और संस्कृतियों के लोगों को अपनी ओर आकृष्ट किया। अर्थ व्यवस्था का आकार बढ़ा तो लोगों को अवसर मिले और सबको अपना सपना अपनी पहुंच के भीतर नज़र आने लगा लेकिन जब समाज में जगह जगह टूट फूट नज़र आने लगी और भेदभाव ने समाज की शक्ल ही बदल दी तो पूरी तसवीर ही बदल गई।

इस समय जब कोरोना वायरस की महामारी फैली है तो भेदभाव का नतीजा और भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। संक्रमित होने वालों में गोरों की संख्या कम और अश्वेतों की संख्या ज़्यादा है। यह केवल संयोग नहीं है बल्कि यह अश्वेतों की सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा का आइना और नतीजा है।

कहने को तो दास प्रथा ख़त्म हो गई है और नस्ली भेदभाव ग़ैर क़ानूनी है मगर अफ़्रीक़ी और लैटिन अमेरिकी मूल के लोगों को आज भी तीसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है। इनमें कुछ थोड़े से लोग हैं जिनकी हालत बेहतर हो गई है बाक़ी आज भी दुर्दशा में जीवन गुज़ार रहे हैं उन्हें रोज़ाना गोरों की ओर से अपमान का सामना करना पड़ता है।

दो बड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं जिनसे पूरे अमरीका में आग लग गई। एक घटना न्यूयार्क मैनहटन की है जहां एक काले युवक ने गोरी महिला को इस बात पर टोका कि उसने अपने कुत्ते को वहां नहीं रखा जहां उसे रखना चाहिए तो महिला ने पुलिस बुला ली और अफ़्रीक़ी मूल के अमरीकी को जो मुंह में आया कहा। इसी दिन मिनियापोलिस में पुलिस अफ़सर ने जार्ज फ़्लायड की हत्या कर दी।

इन दोनों तसवीरों से यह भी पता चला कि अमरीका में बेरोज़गारी का क्या हाल है और यह भी साफ़ हो गया कि पुलिस कितनी हिंसक है।

ट्रम्प की बात करें तो वह संकट के समय के सबसे ख़राब राष्ट्रपति साबित हुए हैं। 1930 के दशक में फ़्रैंकलिन रोज़वेल्ट ने और 2008 में बाराक ओबामा ने संकट की घड़ी में बड़ी सफलता से हालात को संभाला मगर ट्रम्प तो ख़ुद ही पुलिस और नस्लवादी विचार के लोगों को हिंसा पर उकसा रहे हैं। जब कोरोना ने देश में 1 लाख से अधिक लोगों की जान ले ली तो ट्रम्प को गोल्फ़ खेलने की सूझी, उनके मुंह से हमदर्दी के दो शब्द नहीं निकले।

अब अमरीकियों की ज़िम्मेदारी यह है कि ट्रम्प दोबारा चुने जाएं या न चुने जाएं, अपना भाग्य बनाने की कोशिश करें और एक बार फिर सामाजिक बराबरी की ओर लौटें।

इस समय जब हालात विस्फोटक हो चले हैं और फ़ेडरल गवर्नमेंट ग़ायब है तो मान लेना चाहिए कि अमरीका का सपना ध्वस्त हो चुका है। अब दुनिया के नेतृत्व का अमरीकी सपना किसी को भी साकार होता नज़र नहीं आ रहा है। अब देश विनाश की कगार पर पहुंच चुका है। शायद इसे बचा लेने का समय बाक़ी हो लेकिन बचाएगा कौन यह तो नवम्बर के चुनाव का नतीजा बताएगा।

स्रोतः लोमोंड

 

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