इस्राईल के बारे में बाइडेन की नीति कैसी होगीॽ
बाइडेन की हुकूमत में अमरीका की विदेश नीति के चीन के बढ़ते प्रभाव, योरोपीय व अमरीकी मामलों में रूस के हस्तक्षेप और ट्रम्प प्रशासन की ओर से ईरान के ख़िलाफ़ भड़काई गयी दुश्मनी को नाकाम बनाने पर केन्द्रित होगी।
इससे लगता है कि बाइडेन सरकार इस्राईल-फ़िलिस्तीन तनाव को दूर करने के लिए कोई बड़ा क़दम नहीं उठाएगी।
इस बात की संभावना है कि बाइडेन, इस्राईल की ओर से कॉलोनियों के जारी निर्माण पर- जो अवैध और शांति के मार्ग में रुकावट हैं- अमरीका के पहले वाले नज़रिये पर वापस आ जाएं, लेकिन लगता नहीं है कि इस संबंध में वह और ब्लिंकन कुछ करेंगे। वह बहुत करेंगे तो फ़िलिस्तीन में ‘स्टेटस को’ का समर्थन करेंगे, जिसका मतलब होगा इस्राईल बिना किसी रुकावट के फ़िलिस्तीन की अतिग्रहित भूमि को इस्राईल में शामिल करने के टार्गेट को हासिल करने की दिशा में बढ़ता रहे और फ़िलिस्तीनी अपनी ही भूमि पर स्टेटलेसनेस अर्थात राष्ट्रीयताहीनता का शिकार रहें।
बाइडेन प्रशासन की ओर से अरब राष्ट्रों के साथ इस्राईल के संबंध सामान्य बनाने की प्रक्रिया का समर्थन होने की संभावना है जो ट्रम्प के शासन में उनके दामाद की ओर से शुरू की गयी, लेकिन इस बात के मद्देनज़र कि कुश्नर ने अपनी यह कोशिश सऊदी अरब और यूएई के निकट सहयोग से आगे बढ़ाई, इसलिए संबंध सामान्य बनाने की प्रक्रिया की रफ़्तार धीमी हो सकती है, क्योंकि सऊदी अरब और यूएई के साथ अमरीका के संबंध का दायरा छोटा हो सकता है। इसकी एक वजह यह है कि बाइडेन ईरान के साथ परमाणु समझौते में लौटने का पहले ही एलान कर चुके हैं।
ईरान डील के सामने चुनौती
ईरान के बारे में नीति वह क्षेत्र है जिस पर बाइडेन सरकार का न सिर्फ़ गल्फ़ के घटकों बल्कि इस्राईल के साथ भी टकराव होगा। नेतनयाहू ने परमाणु समझौते पर दस्तख़त से पहले इसके ख़िलाफ़ बहुत प्रचार किया था। ट्रम्प के सत्ता में आते ही नेतनयाहू ने ट्रम्प से इस समझौते को रद्द करने के लिए कहा, जिसे उन्होंने अंजाम दिया।
बाइडेन बारंबार कह चुके हैं कि वह अमरीका को अस्ली जेसीपीओए समझौते में वापस लाना चाहते हैं। वह ईरान के साथ ऐसा संबंध चाहते हैं जिसमें विवाद कम हो।
इस्राईल, ट्रम्प की मदद से ऐसा होने से रोकने की कोशिश में लगा है। ईरान के बड़े परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़्रीज़ादे की हालिया हत्या का लक्ष्य बाइडेन की ईरान से संबंध बनाने की कोशिश को ख़त्म करना है। इस्राईल को लगता है कि इस हत्या और जनवरी में अमरीकी ड्रोन से जनरल क़ासिम सुलैमानी की हत्या से ईरान में सिद्धांतवादी परमाणु वार्ता की ओर लौटने का विरोध करेंगे।
ब्लिंकन और बाइडेन के इस्राईली लॉबी से निकट संबंध के मद्देनज़र वे अपने एजेंडे और इस्राईल की आक्रमक मांगों को ठंडा करने में उलझे रहेंगे।
इसके अलावा उन्हें इस्राईल को ईरान में शासन बदलने की कोशिश और परमाणु प्रतिष्ठान पर हमले सहित, ख़तरनाक सैन्य खेल से भी रोकना होगा। ओबामा ने नेतनयाहू को इस तरह के हमले की ओर से क़ाबू कर रखा था, लेकिन इस्राईली नेता ने डेमोक्रेट राष्ट्रपतियों और उनकी चेतावनियों को अहमियत नहीं दी।
सवाल यह है कि क्या जो बाइडेन इस्राईल को रोक सकते हैंॽ अगर ऐसा करते हैं तो क्या इस्राईली नेता इस नज़रअंदाज़ी को क़ुबूल करेंगेॽ या वे हत्या, विध्वंस यहां तक कि शायद ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले की नीति जारी रखेंगेॽ यह सब चुनौतियां हैं, जिससे पता चल जाएगा कि बाइडेन कितने मज़बूत हैंॽ
रिचर्ड सिल्वलस्टेन के विचार,
साभारः अलजज़ीरा
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