कार्यक्रम विश्व दर्पणः कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर आशाएं और आशंकाएं
कोरोना वायरस की महामारी ने पूरी दुनिया में उथल पुथल मचाकर रख दी है। इस बीमारी से निपटने के लिए दुनिया के 50 से अधिक देशों में कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है और कुछ देश एसे भी हैं जहां एक साथ कई कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा है। छह वैक्सीन ऐसे हैं जिन पर काम काफ़ी आगे बढ़ चुका है जिनमें एक वैक्सीन फ़ायज़र और बायोएनटेक कंपनी का टोज़ीनामेरान वैक्सीन है दूसरा माडर्ना कंपनी का एमआरएनए-1273 वैक्सीन है।
इसी तरह एक वैक्सीन सिनोफ़ार्म कंपनी का है जिसका नाम बीबीआईबीपी-कोरवी है और एक अन्य वैक्सीन सिनोवैक कंपनी का है जिसका नाम कोरोना वैक है। आक्सफ़ोर्ड और आस्ट्रज़ेनिका का वैक्सीन भी चर्चा में है। भारत में भी कई वैक्सीन डेवलप किए जा रहे हैं। रूस का वैक्सीन भी चर्चा में रहा। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भी इस बारे में बताया है। इस्लामी गणतंत्र ईरान भी अपना वैक्सीन डेवलप कर रहा है। ईरान में इस समय कोरोना वायरस के सात वैक्सीन डेवलप किए जा रहे हैं। ईरान वैक्सीन की संख्या की दृष्टि से दुनिया में 11वें नंबर पर है। ईरान की फ़रमाने इमाम ख़ुमैनी नामक संस्था बरकत नामक नालेज बेस्ड कंपनी के साथ मिलकर वैक्सीन डेवलप करने में कामयाब हो गए हैं जिसका इंसानी ट्रायल भी शुरू हो चुका है। ईरान ने अमेरिका द्वारा एकपक्षीय और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भी कोरोना वैक्सीन बनाने के रास्ते में बड़ी कामयाबी हासिल की है, जिसको लेकर दुनिया भर के मीडिया में ख़ूब चर्चा हो रही है।
इस बीच इस्लामी क्रान्ति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनई का एक बेहद महत्वपूर्ण बयान सामने आया है जिसमें उन्होंने कोरोना वायरस के वैक्सीन के बारे में बड़े महत्वपूर्ण निर्देश दिए। सुप्रीम लीडर ने कहा कि ईरान में जो कोरोना वैक्सीन तैयार हो रहा है उस पर गर्व किया जाना चाहिए। इससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है। कई चैनलों से कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है और एक प्रोजेक्ट तो मानव ट्रायल के चरण तक पहुंच गया है और कामयाब रहा। सुप्रीम लीडर का आगे कहना था कि वैक्सीन बनाया गया और उसका सफल मानव ट्रायल किया गया और अब इसे और अधिक प्रभावी रूप में तैयार किया जाएगा। अब तक कामयाब रहा है और आगे भी कामयाब रहेगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस पर संबंधित अधिकारियों का आभार जताया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया जिस पर व्यापक रूप से बहस छिड़ गई। सुप्रीम लीडर का कहना है कि अमरीकी यह कह रहे हैं कि उन्होंने कोरोना का वैक्सीन बना लिया है तो सवाल यह उठता है कि जब कोरोना का वैक्सीन उन्होंने बना लिया है तो इस महामारी के चलते इस समय भी अमरीका में इतनी भयानक दुर्दशा क्यों है। अभी कुछ दिन पहले चौबीस घंटे में अमरीका में चार हज़ार लोग कोरोना से हताहत हो गए। जब वह कोरोना का वैक्सीन बनाना जानते हैं अगर फ़ायज़र कंपनी वैक्सीन बना सकती है तो यह वैक्सीन वह हमें क्यों देना चाहते हैं वह ख़ुद क्यों नहीं इस्तेमाल कर रहे हैं कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें न हों। वह कभी कभी अपने वैक्सीन दूसरे राष्ट्रों पर आज़माते हैं ताकि उसका रिज़ल्ट देखें। सुप्रीम लीडर का कहना है कि ब्रिटेन का भी वही हाल है। उन पर भरोसा नहीं है इस लिए ब्रिटेन और अमरीका से तो वैक्सीन नहीं लिया जाना चाहिए। फ़्रांस के बारे में भी मेरी अच्छी राय नहीं है। इसकी वजह यह है कि संक्रमित ख़ून की सप्लाई की घटना में वह लिप्त रह चुके हैं। सुप्रीम लीडर ने संक्रमित ब्लड को लेकर फ़्रांस के ख़राब रिकार्ड की जो बात कही वह बहुत महत्वपूर्ण है। यह बहुत बड़ी घटना की ओर संकेत है। 1980 के दशक में फ़्रांस ने एचआईवी से संक्रमित ख़ून ईरान को सप्लाई कर दिया। संक्रमित ख़ून ईरान, इराक़, सऊदी अरब सहित दस देशों को सप्लाई किया गया जहां बड़ी संख्या में बीमार एचआईवी से संक्रमित होकर मौत की नींद सो गए। इसलिए फ़्रांस पर संदेह जताना तर्कसंगत है।इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता वैक्सीन और जनता के स्वास्थ्य को लेकर बहुत गहराई से हालात और परियोजनाओं पर नज़र रख रहे हैं। उनका कहना मानना है कि देश के भीतर तैयार किया जाने वाला कोरोना वैक्सीन बहुत महत्वपूर्ण है और इसके अलावा अगर किसी अन्य देश से वैक्सीन ख़रीदना है तो यह वैक्सीन किसी भरोसेमंद देश से ख़रीदा जाए।
अमरीका पर संदेह करने के भी ठोस कारण हैं। अमरीका में दवाओं को लेकर कुछ नियम और मानक हैं जिनके आधार पर रेमडेसीवीर दवा को कोरोना के बीमारों को देने की मंज़ूरी मिली मगर कुछ महीनों में ही पता चल गया कि इस दवा का कोरोना वायरस के बीमारों पर कोई असर नहीं हो रहा है। बाद में डब्ल्यूएचओ ने एलान किया कि रेमडेसीवीर दवा के प्रयोग का परिणाम निराशाजनक रहा है। इसलिए इन मानकों के आधार पर किसी वैक्सीन पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता बल्कि एहतियात से काम करने की ज़रूरत है। अमरीका में चौदह दिसम्बर को टीकाकरण शुरू हो गया था ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार अब तक फ़ायज़र और मोडर्ना कंपनियों ने 70 लाख डोज़ इंजेक्ट कर दिए हैं। मगर आज भी अमरीका में कोरोना संक्रमण और मौतों की दर दुनिया भर में सबसे ज़्यादा है वहीं दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन को लेकर हो रही चर्चा और ईरान को इस क्षेत्र में मिली बड़ी सफलता के बारे में तेहरान में रह रहे डॉक्टर फ़रहान फ़रीद ने भी पार्स टुडे हिन्दी के साथ बातचीत में विस्तार से बताया है। हार्वर्ड युनिवर्सिटी में एक डाक्टर थे जिनका नाम था रिचर्ड पियरसन स्ट्रांग उन्होंने प्लेग के बारे में बड़ा लंबा अनुसंधान किया। उन्होंने 1906 में फ़िलिपीन में अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाते हुए 24 क़ैदियों पर उनको बताए बग़ैर ही वैक्सीन का टेस्ट कर डाला जिसके नतीजे में 13 क़ैदियों की जान चली गई। सन 1932 में अमरीका के स्वास्थ्य विभाग ने सिफ़लिस या उपदंश नामक रोग के स्तर का पता लगाने के लिए जो टेस्ट किया वह अमरीका की मेडिकल मोरैलिटी के क्षेत्र में सबसे घृणित और बदनाम प्रोजेक्ट साबित हुआ। इस प्रोजेक्ट के तहत अलाबामा राज्य में पोस्टर चिपकाए गए कि काले लोग अगर अपने शरीर को ख़राब ख़ून से मुक्त करना चाहते हैं तो उनका विशेष उपचार किया जाएगा। इसमें लिखा था कि टेस्ट और इलाज बिलकुल मुफ़्त है। कई साल बाद एसोशिएटेड प्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह अमरीकी सरकार का बेहद नैतिकताहीन काम था जिसके लिए समाज के सबसे वंचित वर्ग को प्रयोगशाला के चूहे की तरह इस्तेमाल किया गया। इस प्रकार की घटनाओं की सूची बहुत लंबी है जिससे यह सबक़ मिलता है कि आंख खुली रखना बहुत ज़रूरी है।
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