कार्यक्रम विश्व दर्पणः परमाणु ऊर्जा और ईरान का रुख, तेहरान का एक ऐसा क़दम जिसमें हर दशा में ईरान की होगी जीत
(last modified Sun, 28 Feb 2021 14:17:27 GMT )
Feb २८, २०२१ १९:४७ Asia/Kolkata

इस्लामी गणतंत्र ईरान ने 23 फरवरी सन 2021 को एक बड़ा एलान करते हुए कहा कि वह आज से एनपीटी के पूरक प्रोटोकोल का पालन रोक रहा है। यह उस दिन की दुनिया की एक बड़ी खबर थी। स्वयं ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी एलान करते हुए कहा था कि हम परमाणु समझौते के परिप्रेक्ष्य में पहला क़दम उठाने जा रहे हैं।

 

जापान पर अमरीका के एटम बम के हमले  के बाद पूरी दुनिया में परमाणु हथियार प्राप्त करने के लिए एक प्रतिस्पर्धा शुरु हो गयी। पूर्व सोवियत संघ ने सन 1949 में ब्रिटेन ने 1952 में, फ्रांस ने सन 1960 में और चीन ने सन 1964 में परमाणु हथियार बनाने में सफलता प्राप्त कर ली। इस प्रतिस्पर्धा से जहां दुनिया एक ओर तबाही की ओर बढ़ रही थी वहीं परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता के भी नये नये पहलु सामने आ रहे थे इसी लिए दुनिया ने यह तय किया कि परमाणु हथियारों का प्रसार रोका जाए और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग का रास्ता निकाला जाए। इसके लिए परमाणु अप्रसार संधि तैयार की गयी जिसे एनपीटी कहा जाता है। एनपीटी पहली जूलाई सन 1968 में तैयार की गयी और इसी दिन अमरीका, ब्रिटेन और दुनिया के अन्य 59 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिये। अमरीकी कांग्रेस में पारित होने के बाद 5 मार्च सन 1970 को इस संधि को व्यवहारिक बना दिया गया। चीन ने 9 मार्च सन 1992 में इस पर हस्ताक्षर किया, फ्रांस ने 3 अगस्त सन 1992 में संधि की सदस्यता ग्रहण की। इस समय ईरान सहित दुनिया के 186 देश अंतर्राष्ट्रीय संधि का हिस्सा हैं केवल, इस्राईल, भारत और पाकिस्तान ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं जबकि उत्तरी कोरिया कुछ वर्षों पहले इस संधि से निकल गया है। एनटीपी पर हस्ताक्षर करते हुए तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने कहा था कि यह एतिहासिक दिन हैं और परमाणु युद्ध के ख़तरे को रोकने में यह मील का पत्थर साबित होगा।

बाद में इसी संधि को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए एडिशनल प्रोटोकोल नाम का एक मसौदा पारित किया गया जिसमें 18 अनुच्छेद हैं और उन सभी में सदस्य देशों की अधिक ज़िम्मेदारियों का उल्लेख किया गया है। 18 दिसंबर सन 2003 को ईरान ने भी इस पूरक प्रोटोकोल के पालन को स्वेच्छा से स्वीकार किया। इस तरह से ईरान के परमाणु कार्यक्रम और परमाणु प्रतिष्ठानों तक परमाणु ऊर्जा की अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी आईएईए की पहुंच और निगरानी बहुत बढ़ गयी। यह सिलसिला और परमाणु वार्ता जारी रही। यहां तक कि 14 जूलाई सन 2015 का समय आ गया। 14 जूलाई सन 2015 को विश्व इतिहास में कूटनीति के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई और ईरान तथा विश्व के 6 देशों ने, एक एसे परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसपर कई वर्षों से वार्ता चल रही थी। 14 फरवरी को कई दिनों से रात दिन जाग कर किसी अहम एलान का इतंज़ार करने वाले पत्रकारों का इंतेज़ार खत्म हुआ और एटमी डील हो जाने का एलान, युरोपीय संघ में विदेशी मामलों की प्रभारी फेड्रिका मोगरीनी और ईरान के विदेशमंत्री जवाद ज़रीफ ने कर दिया। पूरी दुनिया ने इस एतिहासिक परमाणु समझौते का स्वागत किया और विशेष रूप से ईरान और अमरीका के राष्ट्रपतियों ने, डाक्टर हसन रूहानी ने इस समझौते पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा था कि, आज का दिन एक युग का अंत और दूसरे युग का आरंभ है,  वहीं बाराक ओबामा ने कहा था कि यह समझौता अमेरिका की कूटनीति की शक्ति का दर्शाता है और यह समझौता एक बहुत बड़ा बदलाव है। 

समय बीतता गया और समय के साथ ही साथ यह भी स्पष्ट होता गया कि अमरीका, यह प्रयास कर रहा है कि परमाणु समझौते से ईरान को कोई लाभ न मिलने पाए लेकिन ईरान परमाणु समझौते का पालन ज़रूर करे, ईरान ने परमाणु समझौते का पालन किया और इसकी आईएईए ने भी बारम्बार पुष्टि की तो जब अमरीका ने ईरान को परमाणु समझौते के लाभ से रोकने के लिए दसियों आरोप ईरान के सिर मढ़ कर, समझौते से निकलने का एलान कर दिया और यह एलान किया, कई अंतर्राष्ट्रीय समझौते से निकलने का एलान करने वाले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने।  इस एलान का विश्व स्तरपर विरोध हुआ लेकिन ईरान की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दिखायी गयी। राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की ओर से परमाणु समझौते से अमरीका के निकल जाने की घोषणा के बाद देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि अमरीका ने कभी भी परमाणु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं किया और इस बात की पहले से ही अपेक्षा थी कि वह परमाणु समझौते से निकल सकता। अमरीका के निकलने के बाद एक साल तक ईरान ने यूरोपीय पक्षों की ओर से किसी कोशिश का इंतेज़ार किया और ट्रम्प के एलान के ठीक एक साल बाद परमाणु समझौते के अनुसार परमाणु समझौते की अपनी प्रतिबद्धताओं को चरणबद्ध तरीक़े से कम करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी। पूरक प्रोटोकोल के पालन को रोकना उसी प्रक्रिया का एक चरण है। पूरक प्रोटोकोल के पालन को ईरान में रोके जाने के बाद अब ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों तक आईएईए के निरीक्षक की पहुंच सीमित हो गयी और यह सिलसिला तीन महीनों तक जारी रहेगा और उसके बाद भी अगर ईरान पर लगे प्रतिबंध खत्म नहीं किये गये तो फिर आईएईए के निरीक्षकों की पहुंच पूरी तरह से ख़त्म कर दी जाएगी। इस बारे में नार्वे में रहने वाले राजनीतिक टीकाकार हैदर हुसैन का कहना है कि, ईरान हमेशा परमाणु समझौते के प्रति कटिबद्ध रहा है, लेकिन सवाल यह है कि ईरान कब तक एक तरफ़ा तौर पर इस समझौते पर अमल करता रहे।

कुल मिलाकर पूरक  प्रटोकोल को रोकना वास्तव में ईरान की संसद द्वारा उठाया गया एक ऐसा क़दम है जिसमें हर दशा में ईरान की जीत होगी। ईरान के इस क़दम की वजह से अगर पश्चिम और विशेषकर अमरीका को मजबूर होकर प्रतिबंध हटाने पड़े तो यह तो तेहरान की जीत है ही लेकिन अगर इसके बावजूद वह ईरान के खिलाफ लगे प्रतिबंध नहीं हटाते तो इससे ईरान को कम से कम यह फायदा होगा कि अब तक वह जो मुफ्त में सुविधाएं दे रहा था और सहयोग कर रहा था उसका सिलसिला खत्म हो जाएगा। मगर वापसी का रास्ता खुला रहेगा और जैसे ही ईरान पर से प्रतिबंध हटेंगे वैसे ही पूरक प्रोटोकोल सहित ईरान अपने अन्य वचनों का पालन शुरु कर देगा। लेकिन अस्ल बात वही है जो इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कही है कि बातें बहुत हो चुकी अब काम का समय है। काम के बदले काम।

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