May ०६, २०२४ १३:२६ Asia/Kolkata
  • इतालवी राजनयिकः अमरीका नई वैश्विक सच्चाई को समझने में ग़लती कर रहा है

मिडिल ईस्ट आई ने एक यूरोपीय डिप्लोमैट के हवाले से लिखा हैः अमरीका ने दुनिया की सच्चाई से अपना नाता तोड़ लिया है और अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियां वर्तमान घटनाक्रमों को लेकर हास्यास्पद तर्क पेश कर रही हैं।

इराक़ में पूर्व इतालवी राजदूत मार्को कार्नेलस मिडिल ईस्ट आई में प्रकाशित आर्टिकल का विश्लेषण करते हुए कहते हैः

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने हाल ही में वैश्विक ख़तरों के बारे में अपनी वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की है। यह दस्तावेज़ सीआईए, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी, संघीय जांच ब्यूरो और अन्य एजेंसियों के सामूहिक विश्लेषण और निष्कर्ष को दर्शाता है।

इस रिपोर्ट में कहा गया हैः

अगले वर्ष अमेरिका को महान शक्तियों के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, अधिक तीव्र और अप्रत्याशित अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों और व्यापक परिणामों वाले कई क्षेत्रीय संघर्षों से प्रेरित वैश्विक व्यवस्था का सामना करना पड़ेगा। एक महत्वाकांक्षी लेकिन चिंतित चीन, एक जुझारू रूस, ईरान जैसी कुछ क्षेत्रीय शक्तियां और अधिक शक्तिशाली खिलाड़ी लंबे समय से चले आ रहे नियमों, अंतरराष्ट्रीय प्रणाली और अमरीका की प्राथमिकताओं के सामने गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं।

इस दस्तावेज़ में ईरान, रूस और चीन को वैश्विक प्रणाली के सामने चुनौती पेश करने वाले दुष्ट देशों के रूप में पेश किया गया है।

इस तरह का विश्लेषण कोई अजीब बात नहीं है। लेकिन यहां समस्या यह है कि रिपोर्ट में किस तरह की वैश्विक व्यवस्था की ओर इशारा किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कंवेन्शन में दर्ज मानवाधिकार या अमरीका के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था। अमरीका और उसके यूरोपीय घटकों के बीच कोई अंतर नहीं है, सभी बड़े मुग़ालते में जी रहे हैं।

अमरीका की रणनीति, डबल स्टैंडर्ड लिबरल आइडियालोजी पर निर्भर है। ग़ज़ा की त्रासदी इसका सबसे स्पष्ट सुबूत है। इसका ख़ुलासा हम एक जुमले में कर सकते हैः

हमारे दोस्तो के लिए सबकुछ है, लेकिन दुश्मनों के लिए सिर्फ़ नियम।

अमरीका को सच्चाई स्वीकार करनी होगी

इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों में चीन, रूस, ईरान और हुज़्बुल्लाह, हमास और अंसारुल्लाह जैसे संगठनों को दोषी ठहराया गया है। हालांकि इस तरह का हास्यास्पद दृष्टिकोण न केवल ग्लोबल साउश देशों द्वारा रद्द कर दिया गया है, बल्कि उन्होंने इसे चुनौती पेश की है। सिर्फ़ यूरोप और पूर्वी एशिया के कुछ ही देश, वैश्विक व्यवस्था के लिए अमरीका के वर्चस्व को स्वीकार करते हैं।

विश्व व्यवस्था एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय प्रणाली में बदल रही है। पूरे इतिहास में, साम्राज्यों का उदय हुआ और फिर पतन हुआ। अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए इतिहास के इन नियमों के साथ तालमेल बिठाना बुद्धिमानी होगी। अब वह दोराहे पर खड़े हैः इतिहास के फ़ैसले को स्वीकार करें, जैसा कि ब्रिटेन ने 1945 से धीरे-धीरे ऐसा किया, या इसका घोर विरोध करें।

इस रिपोर्ट में ग़ज़ा संकट के बारे में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के ग़लत विचारों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलती है। जैसा कि इसके एक भाग में कहा गया हैः ग़ज़ा संकट को देखना होगा, जो हमास के भीतर एक बहुत शक्तिशाली ग़ैर-सरकारी आतंकवादी समूह द्वारा शुरू किया गया था। इस क़दम को ईरान की महत्वाकांक्षाओं और संयुक्त राज्य अमेरिका को कमज़ोर करने के लिए चीन और रूस द्वारा प्रोत्साहित संकट के रूप में देखना होगा। इससे साबित होता है कि एक क्षेत्रीय संकट कैसे दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को जटिल बना सकता है।

इससे पता चलता है कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियां, ग़ज़ा युद्ध का सही और गंभीर विश्लेषण नहीं कर सकती हैं। यह एक राष्ट्रीय स्वतंत्र संग्राम है, जो दशकों से इस्राईल के क्रूर अत्याचारों और बर्बरता के ख़िलाफ़ शुरू हुआ है। अमरीका अवैध क़ब्ज़े वाले शासन को हथियारों से लैस करता रहा है, जिसके ख़िलाफ़ यह आंदोलन शुरू हुआ है। अमरीका का समर्थन सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि यूएन सेक्युरिटी काउंसिल में भी वह इसका समर्थन कर रहा है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता, इस्राईल को अब तक युद्ध अपराधी घोषित कर दिया गया होता।

अमरीका की वैश्विक स्थिति कमज़ोर होने का असली कारण, उसके विरोधी देशों की कथित कार्यवाहियां नहीं हैं, बल्कि वाशिंगटन का वह दोहरा चरित्र है, जो ग़ज़ा में इस्राईल के ज़ुल्म और नरसंहार को अटूट समर्थन देता है। सुरक्षा परिषद में बाइडन प्रशासन ने युद्धविराम के प्रस्ताव का विरोध किया और इसे ग़ैर-बाध्यकारी बताकर प्रस्ताव के अर्थ और प्रभाव को ही ख़त्म कर दिया। msm

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