स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. की वफ़ात पर विशेष कार्यक्रम, वर्चस्ववादी शक्तियां ईरान की इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ क्यों षडयंत्र रचती रहती हैं?
स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. वह महान हस्ती थे जिन्होंने ईरान की इस्लामी व्यवस्था की बुनियाद रखी थी और यह व्यवस्था आज पूरी दुनिया विशेषकर मज़लूम व स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए आदर्श बन चुकी है।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने अन्याय के खिलाफ अपना आंदोलन उस समय आरंभ किया जब पूरी दुनिया पूर्वी और पश्चिमी दो ब्लाकों में बटी हुई थी और बहुत से लोग यह समझते थे कि जिसे भी रहना है उसे इन दोनों ब्लाकों में से किसी एक से मिलकर रहना होगा वरना जीवित नहीं रहा जा सकता परंतु स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के आंदोलन का एक नारा न पूरब न पश्चिम था और ईरान की इस्लामी क्रांति न पूर्वी ब्लाक से जुड़ी और न पश्चिमी ब्लाक से। जो देश पूर्व सोवियत संघ के साथ थे उनकी गणना पूर्वी ब्लाक में होती थी जबकि जो देश अमेरिका के साथ थे उनकी गणना पश्चिमी ब्लाक में होती थी। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के आंदोलन का उद्देश्य अत्याचार से संघर्ष था। ईरान की तानाशाही सरकार अमेरिका और ब्रिटेन की कठपुतली सरकार थी। तानाशाह मोहम्मद रज़ा इन देशों के दिशा- निर्देशन में काम करता था। रज़ा शाह वही करता था जो ये देश कहते और चाहते थे। उसके निकट ईरानी जनता और उसकी इच्छाओं का कोई महत्व नहीं था। मोहम्मद रज़ा के अत्याचार थे जिसकी वजह से स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. उसके मुखर विरोधी थे। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने शाह के खिलाफ जो आंदोलन आरंभ कर रखा था उसमें कैप्च्यूलेशन कानून ने आग में घी डालने का काम किया। इस कानून के अनुसार अमेरिकी जो भी अपराध ईरान में करते उन पर ईरान में मुक़द्दमा नहीं चलाया जा सकता था। इस कानून के पारित होने का अर्थ ईरान में अपराध करने के लिए अमेरिकियों के हाथों को खुला छोड़ देना था। इस क़ानून के पारित हो जाने के बाद ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने विभिन्न अवसरों पर शाह की अत्याचारी सरकार के खिलाफ जो भाषण दिया था उससे जनता में जागरुकता व चेतना की लहर दौड़ गयी थी।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. की एक विशेषता यह थी कि वह साम्राज्यवाद के खिलाफ खुलकर बोलते थे। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. इस बिन्दु पर बल देकर कहते थे कि साम्राज्य से मुकाबले के लिए कार्यक्रम बनाना चाहिये और समस्त रास्तों व विचारों की समीक्षा की जानी चाहिये। वह न केवल शाह के अत्याचारों के खिलाफ बोलते थे बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ भी खुलकर बोलते थे। यहां तक कि ईरान की तानाशाही सरकार के सुरक्षा बलों ने 15 खुर्दाद 1342 हिजरी शमसी अर्थात पांच जून 1963 की सुबह में पवित्र नगर कुम में स्थित इमाम खुमैनी रह. के घर पर हमला करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया और तेहरान स्थानांतरित करके उन्हें जेल में डाल दिया। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के गिरफ्तार होने की खबर जब ईरानी शहरों में जंगल की आग की तरह फैल गयी तो कुम, तेहरान, वरामीन, मशहद और शीराज जैसे नगरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। शाह स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह.के अस्तित्व को अपनी तानाशाही सरकार के लिए सबसे बड़ा खतरा समझता था और वह यह समझता था कि अगर इमाम खुमैनी रह. ईरान में रह गये तो हमारी सरकार का तख्ता पलट सकता है। इसलिए उसने इमाम ख़ुमैनी रह. को सबसे पहले तुर्की निष्कात किया फिर वहां से उन्हें कुछ समय के बाद इराक के पवित्र नगर नजफ और फिर वहां से फ्रांस निष्कासित कर दिया परंतु जागरुकता व चेतना की जो लहर उठ चुकी थी उसे इमाम ख़ुमैनी रह. को गिरफ्तार और निष्कासित करके समाप्त नहीं किया जा सकता था। घुटन और दमन के वातावरण में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. विश्व के वर्चस्ववादियों और साम्राज्यवादियों को संबोधित करके कहते थे" शक्तियों, बड़ी शक्तियों और उनके नौकरों व पिछलग्गूओं को जान लेना चाहिये कि अगर ख़ुमैनी अकेले भी रह गये तब भी अत्याचार, कुफ्र और अनेकेश्वरवाद से संघर्ष का उनका जो रास्ता है उसे वह बाक़ी रखेंगे।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. किसी गुट या दल के हितों की बात करने के बजाये हमेशा इस्लामी मूल्यों व सिद्धांतों की बात करते और उन पर बल देते थे यही कारण है कि समस्त लोग शाह और उसकी तानाशाही सरकार के खिलाफ एक पंक्ति में थे। इस संबंध में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. स्पष्ट शब्दों में कहते थे हमारा दायित्व है कि हम अन्याय व अत्याचार के मुकाबले में डट जायें, हमारी ज़िम्मेदारी यह है कि हम अत्याचार से संघर्ष करें, उसका विरोध करें। हमें इस बात से नहीं डरना चाहिये कि कहीं हम नाकाम न हो जायें। पहली बात तो यह है कि हम विफल व नाकाम नहीं होंगे ईश्वर हमारे साथ है और दूसरी बात यह है कि अगर थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि हम विफल हो जायेंगे तो यह विदित विफलता व नाकामी होगी और आध्यात्मिक रूप से हम विफल नहीं होंगे और आध्यात्मिक सफलता इस्लाम के साथ है, मुसलमानों के साथ है और हमारे साथ है।“स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. की यही प्रेरणायदायक बातें और उनकी आध्यात्मिक विशेषतायें ईरान में बहुत बड़े परिवर्तन की भूमिका बनीं और आज ईरान की इस्लामी क्रांति पूरी दुनिया के अत्याचाग्रस्त राष्ट्रों के लिए आदर्श बन गयी है। आज उस महान हस्ती के स्वर्गवास की बरसी मनाई जा रही है जिसका संदेश है कि अत्याचारियों के मुकाबले में न तो नतमस्तक होना चाहिये और न ही साम्राज्यवादियों की धौंस- धमकी से प्रभावित होना चाहिये। आज उस महान हस्ती की बरसी मनाई जा रही है जिसके लिए मानवीय मूल्य सर्वोपरि थे। आज उस महान हस्ती की बरसी मनाई जा रही है जिसने शाह की अत्याचारी सरकार का अंत कर दिया। ईरान के शूरवीर जवानों, मर्दों और महिलाओं ने स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने नेतृत्व में अपने पावन लहू से तानाशाही सरकार की बुनियादों को धाराशायी और असंभव प्रतीत होने वाली चीज़ को संभव करके दिखा दिया।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने न केवल ईरान से शाह की अत्याचारी सरकार का अंत कर दिया बल्कि ईरान में अमेरिका और ब्रिटेन के प्रभाव को भी खत्म कर दिया। आज अमेरिका और ब्रिटेन ईरान की इस्लामी व्यवस्था से जो दुश्मनी कर रहे हैं उसकी एक वजह यह है कि 43 साल या इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले ये देश ईरान के तानाशाह को अपना सेवक थे। ईरान की राष्ट्रीय सम्पत्ति को वे लूट रहे थे। ईरान को वे अपना उपनिवेश समझते थे। ईरान की राष्ट्रीय सम्पत्ति पर अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते थे।स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. की एक विशेषता यह थी कि वह हमेशा दुनिया के समस्त मुसलमानों का एकजुट होने का आह्वान करते थे। क्योंकि वह बहुत अच्छी तरह जानते थे कि मुसलमानों की सबसे बड़ी ताकत एकता में है और अगर मुसलमान एकजुट हो गये तो इस्लामी समाज की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है और अगर मुसलमान अलग- अलग रहे तो कयामत तक विश्व की वर्चस्ववादी शक्तियां उनका दोहन व शोषण करती रहेंगी और एकता के लिए आह्वान वह चीज़ है जो विश्व की साम्राज्यवादी शक्तियों को लेशमात्र भी पसंद नहीं है क्योंकि ये शक्तियां बहुत अच्छी तरह जानती थी कि अगर दुनिया के मुसलमान एकजुट हो गये तो इस्लामी जगत के स्रोतों की वे जो लूटघसोट कर रहे हैं वह बंद हो जायेगा। दूसरे शब्दों में उनकी आमदनी का मार्ग व स्रोत बंद हो जायेगा और उनकी अर्थव्यवस्था का आधार धराशायी हो जायेगा।आज इन्हीं वर्चस्ववादी देशों ने इस्लामी जगत के देशों को एक दूसरे का दुश्मन बना रखा है और उनके इस कार्य का परिणाम यह निकला है कि वे इनमें से कुछ देशों को अपने हथियार बेच रहे हैं और इन्हीं हथियारों से निर्दोष मुसलमानों की हत्या हो रही है। यमन में जो कुछ हो रहा है उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. की एक विशेषता यह थी कि वह फिलिस्तीन और फिलिस्तीनियों के समर्थन और मस्जिदुल अक्सा की आज़ादी पर बहुत बल देते थे। स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने ही रमज़ान महीने के अंतिम शुक्रवार को कुद्स दिवस के रूप में मनाये जाने का एलान किया था और 43 वर्षों से अधिक समय से हर साल रमज़ान महीने के अंतिम शुक्रवार को पूरी दुनिया में फिलिस्तीनियों और मस्जिदुल अक्सा के समर्थन में रैलियां निकाली जाती हैं और इन रैलियों में बहुत से ग़ैर मुसलमान भी भाग लेते और अमेरिका और इस्राईल के खिलाफ नारे लगाते हैं।दुनिया की साम्राज्यवादी शक्तियां युद्ध और हिंसा में ही अपना हित देखती हैं। अगर वे इस्लामी देशों को एक दूसरे का दुश्मन व विरोधी न बनाती तो वे अपने हथियारों को कहां और किसे बेचतीं? आज फार्स की खाड़ी के कुछ देश वर्चस्ववादी देशों के युद्धक विमानों, हथियारों, मिसाइलों, और दूसरे संसाधनों की मंडी बने हुए हैं। दूसरे शब्दों में फार्स खाड़ी के देशों की मंडियों की वजह से हथियारों का निर्माण करने वाली साम्राज्यवादी देशों की कंपनियां चल रही हैं। दूसरे शब्दों में वर्चस्ववादी शक्तियों ने फार्स की खाड़ी के देशों को अपना डेरीफार्म बना रखा है।ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक समस्त मुसलमानों से एकता का आह्वान करते थे। अगर दुनिया के समस्त मुसलमान एकजुट हो जाते तो फिलिस्तीन जैसी समस्या का समाधान बहुत पहले हो चुका होता। अगर दुनिया के मुसलमान एकजुट जाते तो आज फार्स खाड़ी के कुछ देश साम्राज्यवादी देशों के हितों की मंडी न बनते।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सफल होने से पहले तक बहुत से मुसलमान और ग़ैर मुसलमान यह सोचते थे कि इस्लाम धर्म को आदर्श नहीं बनाया जा सकता परंतु ईरान की इस्लामी क्रांति स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. के मार्गदर्शन में सफल हुई और उन्होंने इस्लामी मूल्यों को समाज में लागू करके बता दिया कि इस्लाम एक सामाजिक धर्म है और उसकी शिक्षाओं पर अमल करके इंसान अपने जीवन को लोक- परलोक में सफल बना सकता।बहरहाल ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रह. के स्वर्गवास को 33 साल का समय बीत रहा है। आज उनकी मज़ार पर लाखों ईरानी और ग़ैर ईरानी जमा हैं और हर साल लोग उनकी मज़ार पर इसी प्रकार इकत्रित होते और उनके मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा रहते हैं। स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. आज हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनकी शिक्षायें व आकांक्षायें हमारे मध्य हैं और लोगों के दिलों में वे हमेशा ज़िन्दा रहेंगी। आज उनकी मज़ार पर जहां लाखों ईरानी जमा हैं वहीं हज़ारों विदेशी भी जमा हैं और विदेशियों का जमा होना इस बात का परिचायक है कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. के विचार व शिक्षायें देश की सीमा के अंदर सीमित नहीं हैं और वे दूसरे देशों तक पहुंच गयी हैं और वहां उन्होंने बहुत से लोगों को प्रभावित किया है और यह वह चीज़ है जिससे विश्व की साम्राज्यवादी शक्तियां चिंतित व भयभीत हैं और वे ईरान की इस्लामी क्रांति और उसके मूल्यों व शिक्षाओं को साम्राज्य के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा समझती हैं इसलिए वे ईरान की इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ नित- नये षड़यंत्र रचती रहती हैं।
दोस्तो ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक के स्वर्गवास के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में श्रृद्धासुमन अर्पित करते हैं।
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