Nov २५, २०२१ १८:५३ Asia/Kolkata
  • फ़िलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचार, दुनिया नहीं दे रही है साथ, इस्राईल का दुस्साहस बढ़ा

संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 29 नवम्बर 1977 को बहुमत से इस देश को फ़िलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित और संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों से मांग की है कि इस को अपने अपने कैलेंडरों में जगह हैं और इसको इस तरह से मनाया जाए।

ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की इस कार्यवाही का मक़सद, फ़िलिस्तीनी समाज की समस्याओं की ओर दुनिया का ध्यान ले जाना है लेकिन मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ न केवल फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में कोई स्थान नहीं रखता बल्कि अमरीका और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा इस्राईल के समर्थन की वजह से उसने हमेशा ही फ़िलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के अधिकारों की अनदेखी की है, इस बारे में उचित समय पर हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

29 नवम्बर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अनुसार फ़िलिस्तीन की धरती दो देशों फ़िलिस्तीनी और हेब्रू में विभाजित होती है और फ़िलिस्तीन की 55 प्रतिशत ज़मीन पर इस्राईल का क़ब्ज़ा होगा। प्रस्ताव क्रमांक 181 के नाम से प्रसिद्ध इस प्रस्ताव का पारित होना वास्तव में फ़िलिस्तीनी समाज की समस्याओं के पैदा होने की पहली बीज थी। इस अत्याचारपूर्ण प्रस्ताव ने फ़िलिस्तीन की धरती के तीन तुकड़े कर दिए और फ़िलिस्तीनी समाज के एतिहासिक हिस्से को जो फ़िलिस्तीन के घरों, उनके पूर्वजों और उनके दादा परदादाओं के घरों में इस्राईल को दे दिया गया।

30 साल बाद अर्थात 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इस प्रस्ताव के पास होने की वर्षगांठ के अवसर पर अर्थात 29 नवम्बर को हर साल फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का एलान किया, यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ की इस कार्यवाही का आरंभिक मक़सद, फ़िलिस्तीनी समाज की समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करना था लेकिन फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से पास किए गये प्रस्ताव के 44 साल गुज़रने के बावजूद दुनियावासियों के मन में अब भी यह सवाल पैदा हो रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ इस्राईली अपराधों पर क्या कार्यवाहियां की हैं? यह वह चुभता हुआ सवाल है जिसने संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन की पोल खोल दी और फ़िलिस्तीनी जनता की दयनीय स्थिति, अत्याचारों के जारी रहने और एक मज़लूम राष्ट्र के ख़िलाफ़ इस्राईल के भयावह अपराधों को आज तक देखा जा सकता है।

 

पिछले 7 से अधिक दश्कों के दौरान घटने वाली घटनाएं, अतिग्रहण, हमलों और अपराधों पर नज़र डालते से पता चलता है कि फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के नाम एलान करके उन ज़ुल्मों को ख़त्म नहीं किया जा सकता जो इस राष्ट्र पर किए गये हैं। इन वर्षों के दौरान इस्राईल ने संयुक्त राष्ट्र संघ के बहुत से मसौदों और प्रस्तावों का उल्लंघन किया और 50 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों के पलायन का ज़िम्मेदार है।

फ़िलिस्तीनी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव क्रमांक 181 के पास होने से पहले 27 हज़ार वर्गकिलोमीटर पर जीवन व्यतीत कर रहा था और इस ज़मीन का असली मालिक था। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद इस्राईलियों ने संगठित अपराध शुरू किए और नये नये अपराध करने लगा। इस्राईलियों ने फ़िलिस्तीनियों को डरा धमका कर और कई युद्ध थोपकर इस ज़मीन पर नाजाएज़ क़ब्जा कर लिया और फ़िलिस्तीनियों को पलायन पर मजबूर कर दिया।

वास्तव में हालिया शताब्दी का सबसे बड़ा ज़ुल्म फ़िलिस्तीनियों पर हो रहा है। इस दर्दनाक घटना में एक मज़लूम राष्ट्र को निशाना बनाया जा रहा है। एक राष्ट्र की ज़मीन, घर, खेत, संपत्ति, इज़्ज़त और उसकी पहचान को निशाना बनाया जा रहा है। यहीं पर ज़ुल्म ख़त्म नहीं होता और इस्राईल ग़ज़्ज़ा के निर्दोष लोगों का कई वर्षों से घेराव जारी रखे हुए है और इस क्षेत्र के निवासियों को सामूहिक रूप से दंडित करने का प्रयास कर रहा है।

ग़ज़्ज़ा का पाश्विक परिवेष्टन और इस क्षेत्र के इंसानों को सामूहिक रूप से सज़ा देना, फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों का खुला नमूना है। ग़ज़्ज़ा पट्टी में सारे अंतर्राष्ट्रीय नियम और क़ानून दम तोड़ रहे हैं। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही के न होने की वजह से इस्राईल अधिक दुस्साहसी हो गया है और वह खुलकर बिना किसी रोक टोक के फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ अपने भयावह अपराधों विशेषकर बच्चों के ख़िलाफ़ घनघोर अपराध बे हिचक अंजाम दे रहा है।

 

वर्ष 1948 से ही फ़िलिस्तीन की धरती पर ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े के साथ ही अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के नस्लभेदी और शैतानी नीतियों की परिधि में निहत्थे मासूम बच्चों के जनसंहार का मामला शुरू हुआ और 1989 नामक बच्चों की रक्षा के कन्वेन्शन के सामने आने के बावजूद यह घृणित काम नहीं रुका और फ़िलिस्तीनी बच्चों की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती चली गयी और इसने फ़िलिस्तीनी बच्चों से उनका बचपना छीन लिया जबकि दुनिया के दूसरे बच्चे अपने बचपने का आनंद ले रहे हैं।

फ़िलिस्तीन पर नाजाएज़ क़ब्ज़े के बाद से निहत्थे बच्चों और महिलाओं पर लगातार ज़ुल्म सहित फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार, उन मुद्दों में से है जिनके बारे में अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से कोई गंभीर कार्यवाही नहीं की गयी यहां तक कि इस्राईल की संयुक्त राष्ट्र संघ की निंदा तक नहीं की गयी। वर्ष 1967 से लेकर अब तक 18 साल से कम उम्र के 50 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी बच्चे और नौजवान गिरफ़्तार किए जा चुके हैं और अब भी इस्राईल की भयावह जेलों में सैकड़ों फ़िलिस्तीनी बच्चे और नौजवान विषम परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और पश्चिमी की संस्थाओं ने कभी भी मज़लूम फ़िलिस्तीनी बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया चूंकि भेदभाव की यह राजनीति वर्षों से जारी है और यह दोहरा रवैया कोई नई बात नहीं है।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर अपने एक महत्वपूर्ण संबोधन में इसी सच्चाई की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि आज दुनिया कोरोना से मरने वालों की संख्या एक एक करके गिन रही है लेकिन उनमें से किसी ने यह नहीं पूछा या कोई यह नहीं पूछता कि उन देशों में लाखों शहीदों, बंदी बनाए गये और लापता लों का जिनम्मेदार कौन है जहां अमरीका और पश्चिमी देशों ने जंग की आग भड़काई है। अफ़ग़ानिस्तान, यमन, लीबिया, इराक़, सीरिया और अन्य देशों में बिना किसी वजह के और अकारण बहने वाले ख़ून का ज़िम्मेदार कौन है?

सर्वोच्च नेता कहते हैं कि फ़िलिस्तीन में इन सारे अपराधों, तबाहियों, बर्बादियों और अत्याचारों का ज़िम्मेदार कौन है? क्यों कोई इस्लामी जगत के इन लाखों मज़लूम बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को क्यों नहीं गिनता? क्यों कोई मुसलमानों के जनसंहार पर सांत्वना पेश नहीं करता? क्यों लाखों फ़िलिस्तीनी सत्तर सालों से अपने घर बार से दूर रहें और शरणार्थियों का जीवन व्यतीत करें? क्यों मुसलमानों के पहले क़िब्ले बैतुल मुक़द्दस का अपमान किया जाए? क्यों तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं अपने दायित्वों पर अमल क्यों नहीं कर रही हैं, तथाकथित मानवाधिकार संस्थाएं क्या मर गयी हैं? महिलाओं और बच्चों की रक्षा के नारों में, यमन और फ़िलिस्तीन के बच्चों और महिलाओं को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा है? हालात यह बन गये हैं, पश्चिम की अत्याचारी सरकारें और उनसे जुड़ी हुई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं और जनमत की हालत बहुत ही बुरी है।

 

फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के बारे में पास होने वाले प्रस्ताव को 44 साल हो गये लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ, फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के अपराधों पर हमेशा से ही चुप रहा है और कभी कभी उसकी इसी चुप्पी की वजह से फ़िलिस्तीनियों पर ज़ुल्म के पहाड़ टूट पड़ते हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शनों और संयुक्त राष्ट्र संघ की कमेटियों में इस्राईली प्रतिनिधि के चुने जाना या फ़िलिस्तीन की कुछ धार्मिक और एतिहासिक चीज़ों को हेब्रू भाषा में पास किया जाना, संयुक्त राष्ट्र संघ की कमज़ोरी की निशानी और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस शासन के अपराधों में संयुक्त राष्ट्र संघ की भागीदारी का चिन्ह है।

 

फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस का संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एसी स्थिति में पास हुआ कि जब इन वर्षों के दौरान फ़िलिस्तीनियों पर इस्राईल के अपराध जारी रहे और संयुक्त राष्ट्र संघ इन वर्षों के दौरान भी फ़िलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों, लाखों फ़िलिस्तीनियों के पलायन होने और अपने घर बार से बेदख़ल होने के विषय पर ख़ामोश ही नज़र आया।

 

फ़िलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ख़मोशी, दोहरी नीतियो का चिन्ह है और यह संयुक्त राष्ट्र संघय जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था की कमज़ोरी और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों पर इस्राईल के साथ देने का खुला चिन्ह है।  इसी परिधि में यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से फ़िलिस्तीनी जनता से एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का एलान केवल एक नारा है और यह संस्था इस नारे को व्यवहारिक करने का तनिक भी इरादा नहीं रखती।

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