Jan १९, २०२२ १३:०३ Asia/Kolkata

ज़ायोनी शासन ने 27 दिसम्बर 2008 को ग़ज़्ज़ा पर हमला किया था और वहां के स्थानीय लोगों का निर्दयता से जनसंहार किया और प्रतिरोध के विरुद्ध उसने मेल्टेड लीड नामक आप्रेशन शुरु किया।

 

बच्चों का जनसंहार करने वाले शासन ने सोचा कि 7 से 10 दिन के भीतर प्रतिरोधकर्ता धड़ों को धूल चटा देगा और उनकी शक्ति को कमज़ोर कर देगा और फिर उनके पास इस्राईल के सामने टिकने की शक्ति नहीं रहेगी।

इस जंग में ज़ायोनी शासन ने अपनी सारी शक्ति झोंक दी गयी और उसे अमरीका का समर्थन भी हासिल हो गया था ताकि हमास को जड़ से उखाड़ के फेंक दे लेकिन हमास ने यह दिखा दिया कि उसके पास इस्राईल और अमरीका से टकराने की ताक़त है और उसने पूरी ताक़त के साथ प्रतिरोध किया।

इस्राईल 22 दिन के बाद अर्थात 19 जनवरी को बेइज़्ज़त होकर ग़ज़्ज़ा से पीछे हटने पर मजबूर हुआ और इसी उपक्ष्य में हमास और ग़ज़्ज़ा की जनता के साहसिक प्रतिरोध की सराहना के लिए ईरान में 19 जनवरी को ग़ज्ज़ा दिवस मनाया जाता है। ग़ज़्जा दिवस का महत्व इसलिए भी ज़्यादा है कि ताकि दुनिया वालों के सामने यह दिखा जा सके कि दुनिया की बड़ी शक्तियों और ज़ोरज़बरदस्ती करने वालों के सामने डटकर उन्हें मिट्टी में मिलाया जा सकता है।

ग़ज़्ज़ा दिवस, विश्व क़ुद्स दिवस की तरह, ग़ज़्ज़ा के मज़लूम लोगों की आवाज़ें दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाने और इस्राईल के अपराधों पर पश्चिमी मीडिया द्वारा पर्दा डालने की कोशिश को उजागर करने का साधन है। दोस्तो आज 19 जनवरी ग़ज़्ज़ा दिवस है। इस अवसर पर एक विशेष कायक्रम के साथ आपकी सेवा में उपस्थित हैं।

 

दोस्तो ग़ज़्ज़ा पट्टी 40 किलोमीटर लंबाई में और 10 किलोमीटर चौड़ाई में भूमध्य सागर के किनारे पर स्थित है और उसकी सीमाएं मिस्र और अवैध अतिग्रहित फ़िलिस्तीन से मिलती है। यह क्षेत्र छोटा सा तो ज़रूर है लेकिन रणनैतिक लेहाज़ से बहुत ही महत्वपूर्ण है। ग़ज़्ज़ा की 11 किलोमीटर की सीमाएं मिस्र के साथ मिली हुई हैं जबकि 51 किलोमीटर की उसकी सीमाएं अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के साथ है और 40 किलोमीटर का इलाक़ा भूमध्य सागर के तट पर स्थित है।         

ग़ज़्ज़ा का सबसे महत्वपूर्ण इलाक़ा ग़ज़्ज़ा शहर है जिसकी आबादी लगभग पांच लाख है और इस शहर की आबादी घनी हुई है जिसकी वजह से यह दुनिया का सबसे घना हुआ इलाक़ा समझा जाता है। इस्राईल से मुक़ाबले में मुसलमानों की फ़्रंट लाइन है और इस्राईल पर हमला करने क लिए सबसे निकट स्थान है इसीलिए ग़ज़्ज़ा का रणनैतिक महत्व बहुत ज़्यादा है। दूसरी ओर ग़ज़्ज़ा पट्टी इस्राईल के लिए भी बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ग़ज़्ज़ा मिस्र से निकट है जो इस्राईल की सुरक्षा और ऊर्जा की नाभि है और इस्राईल इस पर क़ब्ज़ा करके पूरे फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा कर सकता है और ख़ुद को नुक़सान पहुंचने की चिंता से बच सकता है।

वर्ष 1967 की छह दिवसीय जंग में ग़ज़्ज़ा पट्टी पर इस्राईल ने क़ब्ज़ा कर लिया था लेकिन सितम्बर 2005 में आख़िरकार इस्राईली सैनिक इस क्षेत्र से पीछे हटने पर मजबूर हो गये और ग़ज़्ज़ा का इलाक़ा फ़िलिस्तीनियों के नियंत्रण में एक बार फिर चला गया। इस्राईल ने हमास सरकार पर अधिक से अधिक दबाव डालने के लिए इस क्षेत्र का ज़मीनी और समुद्री परिवेष्टन कर दिया और मिस्र की सीमा से लगे रफ़्ह पास से ही ग़ज़्ज़ा का दूसरे देशों के साथ ज़मीनी संपर्क था।

 

वर्ष 2008 में इस्राईल ने एक बार फिर ग़ज़्ज़ा पट्टी पर भीषण हमले शुरु कर दिए और इस्राईल के युद्धक विमानों ने अपना क्रूर और अमानवीय चेहरा दिखाते हुए ग़ज़्ज़ा पर भीषण हमले किए। यह हमले 22 दिन तक जारी रहे और इसके परिणाम में बहुत से घर, अस्पताल, स्कूल, मस्जिदें, दवाख़ाने, हास्पिटल, आधारभूत ढांचे और अहम केन्द्र तबाह हुए जिसके दौरान बच्चे और महिलाएं सहित बहुत से आम लोग हताहत और घायल हुए।

पेश किए गये आंकड़ों के आधार पर 22 दिवसीय ग़ज़्ज़ा युद्ध में 1455 लोग शहीद हुए जिनमें 404 बच्चे और 115 महिलाएं शामिल थीं।  इस जंग में घायल होने वालों की संख्या 5303 बताई गयी जिनमें 1815 बच्चे शामिल थे। फ़िलिस्तीनी संगठनों की रिपोर्टों के आधार पर इस्राईल द्वारा ग़ज़्ज़ा पर थोपे गये 22 दिवसीय युद्ध के दौरान 40 अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों को सीधे निशाना बनाया गया या सीधे तौर पर इन पर बमबारी की गयी जिसकी वजही से स्वास्थ्य मंत्रालय के अस्पतालों और चिकित्सा केन्द्रों को 10 मिलियन डालर का नुक़सान हुआ।

इतना सारा नुक़सान उठाने के बावजूद हमास और ग़ज़्ज़ा की जनता ने 22 दिन तक प्रतिरोध करके अतिग्रहणकारियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और इस्राईली सैनिकों को बेइज़्ज़त होकर पीछे हटना पड़ा। वास्तव में इस जंग ने इस्राईल के अजेय होने की कल्पना को ख़त्म कर दिया और दुनिया और दुनिया के स्वतंत्रताप्रेमियों के सामने इस शासन की पाश्विकता पहले से अधिक उभर कर सामने आई।

 

इस जंग ने बहुत से अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और पश्चिमी समाज की पोल खोलकर रख दी जो मानवाधिकारों का दम भरते हैं जबकि ग़ज़्ज़ा के विरुद्ध इस्राईल के पाश्विक हमलों में उसका साथ देने में कुछ स्थानीय सरकारों की करतूतें भी सामने आ गयीं, क्योंकि यह लोग निरंतर इस बात का राग अलापते रहे कि इस्राईल को अपनी रक्षा का पूरा पूरा हक है लेकिन उन्होंने कभी भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि अस्पतालों, मस्जिदों और स्कूलों को निशाना किसी मापदंड के अंतर्गत बनाया गया, यह किस अंतर्राष्ट्रीय नियम और सिद्धांतों से मेल खाता है, वह वर्षों से ग़ज़्ज़ा के परिवेष्टन पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?

वास्तव में ग़ज़्ज़ा दिवस उन सारे षड्यंत्रकारियों और साज़िशकर्ताओं को जवाब है और इस्राईल की धूर्तता और उसके धोखा देने को नकाराने के अर्थ में है।  ग़ज़्ज़ा दिवस एक गंभीर मांग के रूप में फ़िलिस्तीनियों के छीने गये अधिकारियों को वापसी के लिए प्रतिरोध और संघर्ष का प्रतीक है। अपने घरों की ओर वापसी, पूरे फ़िलिस्तीन का अतिग्रहण ख़त्म करने और अपने भविष्य निर्धारण का हक़, इन अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई विश्व क़ुद्स दिवस पर के अवसर पर अपने भाषण में इस वास्तविकता को बयान करते हुए फ़िलिस्तीन की आज़ादी के संघर्ष के लए नया अध्याय खोलने, प्रतिरोध के नये मोर्चों के समाने आने और संघर्षकर्ताओं के हित में शक्ति के संतुलन को मोड़ने की ओर इशारा करते हैं और क्षेत्र की घटनाओं की संपूर्ण समीक्षा करते हुए कहते हैं कि खेद की बात यह है कि ज़्यादातर अरब सरकारों ने भी पहले प्रतिरोध के बाद धीरे धीरे घुटने टेक दिए और अपने इंसानी, इस्लामी, राजनैतिक और अरब भाईचारे की ज़िम्मेदारी और दायित्वों को भूलते हुए दुश्मनों के लक्ष्यों का साथ देने लगी।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता फ़िलिस्तीन के भविष्य निर्धारण में प्रतिरोध के लक्ष्य और उसके महत्व की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि इस संघर्ष का लक्ष्य, फ़िलिस्तीन की सारी धरती की स्वतंत्रता और सारे फ़िलिस्तीनियों की अपनी धरती की ओर वापसी है। इस आधार पर इस ज़मीन पर सरकार का गठन, सत्य की प्राप्ति की निशानी नहीं है बल्कि वास्तविकता की निशानी है क्योंकि आज लाखों फ़िलिस्तीनी एक बार फिर आत्म विश्वास को हासिल कर चुके हैं और इस महान संघर्ष को अपनी शक्ति के बल पर नया रूप दे सकते हैं और अल्लाह की मदद से अंतिम सफलता हासिल करने में यक़ीन हासिल कर सकते हैं।

इस बिन्दु में कोई संदेह नहीं है कि साम्राज्यवादियों और ज़ायोनियों का मुख्य लक्ष्य, मुसलमानों की नज़र में फ़िलिस्तीन के मुद्दे को कम करना और इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में पहुंचा देना है। इसी परिधि में अमरीका और इस्राईल की नीतियां, प्रतिरोध के मोर्चे में ही नयी झड़पें शुरु करना और फ़िलिस्तीनियों को आपस में भिड़ाने के लिए आंतरिक युद्ध की आग भड़काना है ताकि इस्राईल और उसके समर्थको को मौक़ा मिल जाए। यही काम उन्होंने दाइश को बनाकर इराक़, सीरिया और यमन में किया है। सेन्चुरी डील की तथाकथित योजना इसी का एक हिस्सा है जिसे अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के काल में फ़िलिस्तीनी और इस्राईल के विवाद को ख़त्म करने के लिए पेश किया गया था। यह अमरीका का एक और पैंतरा था।

सेन्चुरी डील अमरीका, इस्राईल और सऊदी अरब की साज़िशों का ही हिस्सा है जिसका मक़सद  क्षेत्रीय सुरक्षा के समीकरण को बदलना और इस्लामी जगत पर भरपूर नियंत्रण करना है। इस्राईल की राजधानी के रूप में बैतुल मुक़द्दस को आधिकारिक रूप से स्वीकार करना, वेस्ट बैंक के 30 प्रतिशत हिस्से को इस्राईल को दे देना, फ़िलिस्तीनी नागरिकों की स्वदेश वापसी का विरोध करना और फ़िलिस्तीनियों का निरस्त्रीकरण, इस योजना के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।

 

फ़िलिस्तीनी राष्ट्र अब तक बहुत परेशानियां बरदाश्त कर चुका है और उसने इस्राईल के सामने घुटने नहीं टेके और ख़ाली हाथ से अपनी पवित्र धरती की रक्षा कर रहा है ताकि वह दोबारा आज़ाद हो जाए। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस्लामी देशों की अंतर संसदीय संघय की 13वीं बैठक में शामिल होने वाले मेहमानों को संबोधित करते हुए इस वास्तविकता की ओर इशार करते हैं और कहते हैं कि यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि ज़ायोनीर शासन से मुक़ाबले का कोई फ़ायदा नहीं है बल्कि अल्लाह की इजाज़त और उसकी कृपा से ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में संघर्ष का परिणाम निकलेगा जैसा कि प्रतिरोध ने अतीत के वर्षों में प्रगति की है।  

जी हां दोस्तो 19 जनवरी के दिन को ग़ज़्ज़ा दिवस के नाम दिया जाना, दुनिया के सामने इस्राईल के अपराधों को उजागर करने और फ़िलिस्तीन जनता के मज़लूम होने को दर्शाना है ताकि पूरी दुनिया एक आवाज़ होकर पश्चिम के सारे समर्थन के बावजूद फ़िलिस्तीनियों के साथ हो जाए।

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